महंगाई से राहत

कोरोना संकट के साथ ही महंगाई की मार झेल रहे लोगों की दिक्कतें कम होती नजर नहीं आ रही हैं। ईंधन की महंगाई के साथ खाद्य पदार्थों, खाद्य तेल व दूध की महंगाई ने हर आम आदमी का बजट बिगाड़ दिया है। केंद्रीय कर्मचारियों के लिये तो सरकार ने महंगाई भत्ता ग्यारह फीसदी बढ़ा दिया है, लेकिन सवाल है कि निजी व असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों को राहत कैसे मिलेगी?

बुधवार को कैबिनेट के फैसले में कोरोना संकट के चलते डीए पर लगी रोक को हटाकर उसे 17 फीसदी के बजाय 28 फीसदी कर दिया गया है। निस्संदेह केंद्र सरकार का यह कदम उन 48 लाख कर्मचारियों व 65 लाख पेंशन धारकों को बड़ी राहत देगा, जो महंगाई की तपिश महसूस कर रहे थे।

लेकिन सवाल यह भी है कि कोरोना संकट के चलते जब हर आम आदमी की आय का संकुचन हुआ है और वह महंगाई से हलकान है, तो क्या उसे राहत पहुंचाने के लिये सरकारों की तरफ से कोई गंभीर पहल नहीं होनी चाहिए। वह भी तब जब देश में थोक महंगाई दर लगातार उच्च स्तर पर बनी हुई है। जून में कुछ कमी के दावों के साथ यह 12.07 फीसदी बनी हुई।

वहीं ईंधन व जिंसों के दाम में तेजी जारी है। चिंता की बात यह भी है कि पिछले एक दशक में थोक महंगाई दर दो अंकों में नहीं देखी गई। साथ ही इसमें लगातार तीन माह तक बढ़त का क्रम भी नहीं रहा जबकि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर गत वर्ष जून, 2020 में ऋणात्मक 1.8 रही थी।

लेकिन इसके बावजूद केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से महंगाई पर रोक लगाने की दिशा में कोई गंभीर पहल होती नजर नहीं आ रही है। कयास लगाये जा रहे हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के निष्क्रिय होने के बाद देश में जमाखोरी बढ़ने की प्रवृति ने महंगाई बढ़ाने में भूमिका निभायी है।

हाल ही में एसबीआई की आर्थिक कमेटी ने खुलासा किया था कि पेट्रोल-डीजल की महंगाई ने हर आम आदमी के बजट को हिला दिया है। लोगों को कोविड महामारी के चलते चिकित्सा खर्च बढ़ाना पड़ा है लेकिन पेट्रोल-डीजल की महंगाई के कारण उन्हें अपने स्वास्थ्य सहित कई जरूरी खर्चों में कटौती करनी पड़ी है। वहीं जिंसों की कीमतों में वृद्धि के कारण लोगों का मासिक बजट गड़बड़ा गया है।

फलत: लोग या तो अपनी बचत में कटौती कर रहे हैं या फिर अपने खर्च पूरा करने के लिये बचत की रकम की मदद ले रहे हैं। निस्संदेह वैश्विक स्तर पर पेट्रोल डीजल के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जिसके चलते देश में पेट्रोल सौ रुपये से अधिक बिक रहा है।

मगर केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से जनता को राहत देने की कोई कवायद नहीं की जा रही है। केंद्र व राज्य पेट्रोलियम पदार्थों पर बेहिसाब टैक्स लगाकर अपना खजाना भरते हैं। यहां तक कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में भारी गिरावट आई तो सरकार ने उसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया।

बाकायदा केंद्र सरकार ने कुछ टैक्स लगाकर इसे महंगा ही किया। ऐसे वक्त में जब मुद्रास्फीति की दर छह फीसदी से अधिक है तो महंगाई की तपिश महसूस होनी स्वाभाविक है। यह दर सरकार द्वारा लक्षित चार फीसदी से काफी अधिक है। ऐसे में यदि लोग महंगाई के चलते अपने जरूरी खर्चों में कटौती करते हैं तो इससे कोरोना संकट में पस्त हुई अर्थव्यवस्था को भी गति नहीं मिल पायेगी।

विपक्षी दल व आम लोग पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाये गये टैक्सों पर कटौती करने की मांग लंबे अर्से से करते रहे हैं। इसके खिलाफ कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल देशव्यापी आंदोलन करते रहे हैं। ऐसे में आगामी मानसून सत्र में महंगाई विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा बन जाये तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।

दरअसल, महंगाई सिर्फ पेट्रोल व डीजल की ही नहीं है खाद्य तेल, दूध और जिन्सों की महंगाई भी लोगों को मुश्किल में डाल रही है। पर्यटन, सेवा, शिक्षा और होटल समेत तमाम व्यवसायों में आय का गहरे तक संकुचन हुआ है। ऐसे में महंगाई की मार बेचैन करने वाली है।

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