खींचतान का कोई अंत नहीं

पाकिस्तान में पिछले एक हफ्ते में जो कुछ घटा, वह प्रत्याशित था। अप्रत्याशित था तो सिर्फ इतना कि सारे रहस्य और तनाव के बीच अंत किसी फुस्स फुलझड़ी-सा हुआ। भारतीय पाठकों को यह अजीब लगेगा कि तीन महीने तक पाकिस्तानी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया सिर्फ एक सेनाध्यक्ष की तैनाती के ईद-गिर्द घूमता रहा और वह तैनाती थी सेनाध्यक्ष के रूप में किसी लेफ्टिनेंट जनरल की तरक्की। उन्हें यह भी दिलचस्प लगेगा कि इस बीच बहसों के दौरान भारत का जिक्र इस टिप्पणी के साथ आता रहा कि ज्यादातर भारतीय तो अपने वर्तमान सेनाध्यक्ष का नाम तक नहीं जानते और पाकिस्तानी इस नियुक्ति को राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बनाए हुए हैं। हर वह व्यक्ति, जो पाकिस्तानी समाज व राजनीति में दिलचस्पी रखता है, जानता है कि क्यों सेनाध्यक्ष का पद वहां सबसे ताकतवर और गृह, विदेश या रक्षा संबंधी अनेक मामलों में अंतिम फैसला लेने वाला ओहदा होता है। देश में खास तरह का तनाव तो पिछले आठ महीनों से चल रहा था, जब इमरान खान की सरकार राष्ट्रीय असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के चलते गिर गई थी। एक अपरिपक्व खिलाड़ी की तरह हर बार गलत चाल चलने वाले इमरान ने इस बार जीवन की सबसे बड़ी गलती की और खुलेआम फौज पर हमले करना शुरू कर दिया। यह किसी से छिपा नहीं कि एक राजनेता के रूप में इमरान की छवि को सेना ने ही पिछले दो दशकों में बाकायदा एक प्रोजेक्ट के तहत गढ़ा था। 2018 के आम चुनावों में उनकी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के लिए दूसरे दलों से जीत सकने वाले उम्मीदवारों को तोड़ने या निर्वाचन बूथों के अधिकारियों को प्रभावित करने से लेकर धन व बाहुबल की व्यवस्था तक की जिम्मेदारी सेना ने उठाई थी। इसके बावजूद उन्हें स्पष्ट बहुमत न मिला, तो सेना ने अपने प्रभाव वाले कई क्षेत्रीय दलों से पीटीआई का गठबंधन करा इमरान की सरकार बनवा दी। पर जल्द ही सेना को महसूस होने लगा कि इमरान किसी गरम आलू की तरह हैं, जिन्हें देर तक मुंह में नहीं रखा जा सकता और उगलने में भी कम रुसवाई नहीं है। 
तीन साल में जब देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई और कूटनीतिक महाज पर पाकिस्तान एकदम अलग-थलग पड़ गया, तब सेना को होश आया कि सारी असफलताओं का ठीकरा तो उसी पर फूट रहा था। यह एहसास होने पर कि उन्होंने सदन के बहुमत का विश्वास खो दिया है, इमरान ने बेशर्मी से फौज से जरूरी संख्या बल जुटाने की मांग शुरू कर दी और जब सेना ने खुद को अराजनीतिक और न्यूट्रल कहा, तो इमरान और उनकी सोशल मीडिया सेल ने फौज को जानवर, मीर जाफर, मीर बाकी और न जाने क्या-क्या कहा।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker