वर्तमान का अध्यात्म
पॉल ब्रन्टन ब्रिटेन के एक जाने-माने पत्रकार व लेखक थे। उनकी विशेष रुचि रहस्यवाद और दर्शन में थी। बाल्यकाल में ही उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर हो गया था। वह एक ऐसे संत की तलाश में थे, जो उनके मन में उठ रही बहुत सारी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं को शांत कर सके।
यही चाहत उन्हें भारत खींच लाई। भारत आने के बाद ब्रन्टन ने अपने लिए आत्म-साक्षात्कार प्राप्त गुरु की तलाश में अनेक योगियों, साधु-संतों, बाबाओं से मुलाकात की। इसी कड़ी में उसकी मुलाकात एक असाधारण अलौकिक शक्तियां प्राप्त संन्यासी चंडीदास से हुई।
बिना किसी भूमिका के ब्रन्टन ने स्वामी चंडीदास से सीधा प्रश्न किया, ‘भारत के योगियों के जीवन और उनके द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान में मेरी विशेष रुचि है। आप योगी कैसे बने और आपने क्या आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया है? कृपया मुझे बताकर कृतार्थ करें।’ स्वामी चण्डीदास ने अपने अतीत के बारे में उदासीनता दिखाते हुए कहा, ‘मनुष्य का अतीत केवल राख के ढेर की तरह है।
मुझे इस राख के ढेर में हाथ डालने के लिए मत कहो। मुझे अपने अतीत से कोई लेना-देना नहीं है। न तो मैं अतीत में जीता हूं, न ही भविष्य में। तुम्हारे दूसरे प्रश्न का उत्तर है—अतीत और भविष्य और कुछ नहीं, बस चलचित्र की तरह केवल परछाइयां मात्र हैं। यह ज्ञान मैंने प्राप्त कर लिया है।