गलवान के बीर

पूर्वी लद्दाख में स्थित गलवान घाटी में एक साल पहले निहत्थे भारतीय जवानों ने जिस वीरता के साथ चीनी हमले को नाकाम किया, उसके लिये सदा उन्हें याद किया जाएगा। हमने बीस जवानों को खोया था, लेकिन जमकर मुकाबला करते हुए चीनी सेना को भी बड़ी क्षति पहुंचायी।

हालांकि, चीन ने अपने हताहतों की संख्या नहीं बतायी थी, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में इस तरह की खबरें तैरती रही हैं कि चीनी जवानों की क्षति भारत से ज्यादा रही थी। कमोबेश लद्दाख की गलवान घाटी में एक साल पहले हुई झड़पों के बावजूद बहुत कुछ नहीं बदला है। इलाके में तनाव जारी है और विश्वास की कमी बरकरार है।

सेना प्रमुख भी कह चुके हैं कि सभी विवाद के बिंदुओं का समाधान किये बिना तनाव दूर करना संभव नहीं है। भारत इस बाबत व्यापक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहता है। यद्यपि दोनों पक्षों के बीच ग्यारह दौर की चर्चा इन मुद्दों को लेकर हो चुकी है।

पैंगोंग त्सो इलाके से वापसी के अलावा चीन अन्य इलाकों से पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे में चिंता जतायी जा रही है कि आगे की राह टकराव भरी हो सकती है। निस्संदेह, गलवान के घटनाक्रम ने चीन की अविश्वसनीयता को और पुख्ता किया है। साथ ही देश को चीन के प्रति सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति नये सिरे से पारिभाषित करने के लिये बाध्य किया है।

वहीं चीन को अहसास भी कराया है कि वॉर व व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते। हालांकि, तमाम जटिलताओं के चलते चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि जैसे भारत चीन के धोखे से हैरान हुआ, वैसे ही चीन भी भारत की सामरिक प्रतिक्रिया से हैरान हुआ।

हाल-फिलहाल में सीमा की स्थिति में तत्काल बदलाव के कोई संकेत नहीं हैं और चीन की साम्राज्यवादी सैन्य नीति देश की सुरक्षा के लिये नये सिरे से चुनौती पैदा कर रही है, जिसके निहितार्थों को लेकर गंभीर मंथन की जरूरत है।

बहरहाल, भारत ने गलवान घटनाक्रम को चीनी अतिक्रमण के एक सबक के रूप में लेते हुए आधुनिक हथियारों, सैन्य उपकरणों के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया है। साथ ही सड़क व रेल मार्ग के विस्तार को प्राथमिकता बनाया है। इसके अलावा बुनियादी सैन्य ढांचे को विस्तार दिया गया है।

जाहिरा तौर पर भारतीय सेना को लंबे समय तक चीनी मंसूबों का मुकाबला करने के लिये हरदम तैयार रहने की जरूरत है। ताकत और संपन्नता के बूते जिस तरह अपने तमाम पड़ोसियों को आतंकित करने का प्रयास चीन करता रहा है, वह हमारे लिये सबक व सतर्कता का विषय भी होना चाहिए।

यही वजह है कि लद्दाख की कड़ाके की सर्दी के मुकाबले के लिये भारतीय सैनिकों के लिये आवास व कपड़ों की उपलब्धता हेतु रक्षा प्रतिष्ठान स्थायी रूप से प्रयास कर रहे हैं। निस्संदेह, इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की नीति के कुछ अंतर्विरोध भी सामने आए हैं, जिसके चलते कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाये हैं। वक्त की नजाकत भी है कि देश में सैन्य प्रयासों के साथ ही राजनीतिक स्तर पर एकता का प्रदर्शन किया जाये।

निस्संदेह, चीन इस वक्त हमारे सबसे बड़े विरोधी के रूप में उभरा है। इसे इस नजरिये से देखा जाना चाहिए कि यह भारतीय राष्ट्र के सामने बड़ी समस्या है, यह महज किसी राजनीतिक दल विशेष की समस्या नहीं है। केंद्र के लिये जरूरी है कि वह इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को विश्वास में लेने में हिचकिचाहट न दिखाये। किसी मुद्दे पर रचनात्मक आलोचना करना स्वस्थ परंपरा है।

लेकिन देश के समक्ष मौजूद गंभीर चुनौती की संवेदनशीलता से खिलवाड़ करना राष्ट्रहित में नहीं है। सही मायनों में राष्ट्रीय सरोकारों से जुड़े विषयों पर ‘वन नेशन, वन वॉयस’ के नारे को सार्थक बनाने की जरूरत है।

पिछले दिनों एक सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा किया गया था कि गलवान घाटी के घटनाक्रम के बाद बड़ी संख्या में भारतीयों ने एक साल से कोई भी चीनी उत्पाद नहीं खरीदा। जो चीन के लिये भी सबक है कि वॉर व कारोबार की रणनीति एक साथ नहीं चल सकती।

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