राजनीति का पराभव

पुडुचेरी में कांग्रेस गठबंधन सरकार के गिरने से पहले राज्य में जो राजनीतिक उलटफेर हुआ वह हमारी राजनीतिक विद्रूपताओं का आईना ही कहा जायेगा। यूं तो उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव की लंबी दास्तां कई वर्षों से उजागर हो रही थी। लेकिन उपराज्यपाल और सरकार की विदाई एक साथ होने के समीकरणों ने आम आदमी को चौंकाया है। बहरहाल, विश्वासमत में हार जाने के बाद मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी, कांग्रेस-द्रुमुक व निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे के बाद तय हो गया है कि आसन्न चुनाव उपराज्यपाल की देखरेख में ही होंगे। वहीं नारायणसामी ने मनोनीत तीन विधायकों को स्पीकर द्वारा मतदान का अधिकार देने को लोकतंत्र की हत्या बताया, जिसके लिए पुडुचेरी की जनता आसन्न चुनावों में भाजपा व उसके सहयोगी दलों को सबक सिखायेगी। दरअसल, कांग्रेस-डीएमके गठबंधन के कई विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार अल्पमत में आ गई थी। बल्कि विपक्ष में सरकार से ज्यादा विधायक थे। वहीं नारायणसामी आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार ने पूर्व उपराज्यपाल तथा विपक्षी दलों के साथ मिलकर उनकी सरकार को लगातार अस्थिर किया है। इसके बावजूद कांग्रेस के विधायक पांच साल तक पार्टी में एकजुट रहे तथा इस दौरान हुए सभी उपचुनाव भी जीते, जिसका निष्कर्ष यही है कि पुडुचेरी की जनता हमारे साथ है। केंद्र ने राज्य की विकास योजनाओं के लिए धन न उपलब्ध करा पुडुचेरी की जनता से छल किया है। दरअसल, वी. नारायणसामी सरकार का संकट उस वक्त शुरू हुआ जब विश्वास मत से एक दिन पूर्व रविवार को सत्ताधारी कांग्रेस व डीएमके गठबंधन के दो विधायकों ने इस्तीफा दे दिया, जिससे सदन में सत्तारूढ़ गठबंधन में विधायकों की संख्या ग्यारह रह गई थी जबकि विपक्ष के पास चौदह विधायक थे। इससे पूर्व कांग्रेस के चार विधायक पहले ही इस्तीफे दे चुके थे। इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच उपराज्यपाल किरण बेदी की विदाई ने सबको हैरत में डाला।

हालांकि, किरण बेदी अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी थीं, लेकिन उनको हटाये जाने की टाइमिंग ने कई सवालों को जन्म दिया। उनके जाने के बाद तेलंगाना की राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन को पुडुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया। नारायणसामी लगातार आरोप लगाते रहे थे कि किरण बेदी चुनी गई सरकार को काम नहीं करने दे रही हैं।

उन्होंने किरण बेदी की मनमानी के खिलाफ उपराज्यपाल भवन के सामने वर्ष 2019 में छह दिनों तक धरना दिया था। यहां तक कि पिछले दिनों जब वे उपराज्यपाल को हटाने के लिये राष्ट्रपति को ज्ञापन देने गये तो उन्होंने उससे पहले उपराज्यपाल भवन के सामने धरना दिया। बेदी की विदाई पर उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति से कहकर उन्हें हटाया है।

राजनीतिक पंडित कहते हैं कि भाजपा ने किरण बेदी को अप्रैल-मई में तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर हटाया है ताकि यह संदेश न जाये कि सरकार गिराने के खेल में केंद्र व किरण बेदी शामिल रहे हैं। कुल मिलाकर पुडुचेरी में पांच साल चले उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री के बीच टकराव से लोगों में केंद्र के प्रति जो नकारात्मक धारणा बनी, उसे दूर करने के प्रयास के रूप में उनकी विदाई को देखा जा रहा है।

बहरहाल, पुडुचेरी का राजनीतिक घटनाक्रम हमारी राजनीति में सिद्धांतों के पराभव की हकीकत को दर्शाता है कि क्यों कुछ विधायकों ने सरकार में रहने के बावजूद सरकार गिराने में भूमिका निभाई। क्यों उनकी राजनीतिक निष्ठाएं सरकार के अंतिम वर्ष में बदलती नजर आईं। क्यों उन्होंने उस जनादेश से छल किया जो उन्हें सरकार में बैठने के लिये एक राजनीतिक दल के विधायक के रूप में मिला था।

क्या उनके निजी हित जनविश्वास और पार्टी हित से बड़े हो गये थे कि उन्होंने सरकार गिराने को प्राथमिकता दी? वे कौन से कारण थे जिन्होंने उन्हें पाला बदलने के लिये बाध्य किया? सही मायनों में ये सैद्धांतिक राजनीति के मूल्यों में गिरावट का भी परिचायक है कि वोट किसी और पार्टी के नाम पर लिया और भला किसी और पार्टी का किया।

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