ट्रीटमेंट और टीके का जिक्र

देश में कोरोना की दूसरी लहर में एक लाख के करीब संक्रमितों का सामने आना बताता है कि स्थिति गंभीर है। नये रोगियों की यह संख्या दुनिया के नंबर वन व दो पर संक्रमित देशों के नये मरीजों से ज्यादा है जो स्थिति के विस्फोटक होने का संकेत है।

यह ठीक है कि टेस्टिंग ज्यादा हो रही है, इसलिये संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। वैसे बात यह भी है कि जांच की सुविधा बड़े महानगरों व शहरी इलाकों में ही है। तमाम लोग जांच को भी आगे नहीं आते, ऐसे में वास्तविक संख्या मौजूदा आंकड़ों से कहीं ज्यादा हो सकती है। स्थिति बताती है कि हम महामारी की चपेट में हैं

। जिन चार राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में चुनाव हुए हैं वहां भी स्थिति विस्फोटक हो सकती है। एक मार्च से एक अप्रैल के बीच पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में संक्रमितों की संख्या में सैकड़ों गुना वृद्धि हुई है। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के फोरम ने मुख्य सचिव व चुनाव आयोग को पत्र लिखकर गंभीर स्थिति से बचाव के लिये कदम उठाने का आग्रह किया है।

इन्हीं चिंताओं के बीच दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात व केंद्रशासित चंडीगढ़ समेत कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगाने की घोषणा हुई है। बहस का विषय है कि नाइट कर्फ्यू संक्रमण रोकने में कितना कारगर होता है। दरअसल, रात में लोग मौज-मस्ती के लिये क्लबों-होटलों आदि ऐसी जगह निकलते हैं, जहां भीड़भाड़ ज्यादा होती है। सरकारों की मंशा फालतू बाहर निकलने की प्रवृत्ति को रोकना ही होता है।

वैसे इन घोषणाओं का मकसद लोगों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना होता है कि स्थिति गंभीर हो रही है, सतर्क रहें। निश्चित रूप से संक्रमण रोकने की दिशा में यह महत्वपूर्ण संदेश है। कुछ लोग लॉकडाउन लगाने की भी बात कर रहे हैं। लेकिन यह कदम पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था के लिये घातक हो सकता है। ऐसे में जान के साथ जहान बचाने की भी जरूरत है।

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब देश में टीकाकरण अभियान में तेजी आ गई है और आठ करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग भी चुका है तो संक्रमण इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है। स्पष्ट है कि हमने कोरोना से डरना छोड़कर फरवरी माह में सामाजिक सक्रियता बढ़ा दी थी। कुछ त्योहारों ने भी इसमें भूमिका निभायी।

महानगरों और जहां शासन-प्रशासन सख्त था वहां तो लोग कमोबेश मास्क व शारीरिक दूरी का पालन किसी हद तक कर भी रहे थे, लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में लोग भूल गये थे कि कोरोना किस चिड़िया का नाम है। फिर फरवरी में जब लगातार संक्रमण के मामलों में कमी आई तो साल भर की घुटन के बाद लोग खुली हवा में सांस लेने निकल पड़े।

सामाजिक सक्रियता में अप्रत्याशित तेजी देखी गई। दरअसल, इस संक्रमण में मौसम परिवर्तन की बड़ी भूमिका रही है। दो मौसमों के संधिकाल में हमेशा ही खांसी, जुकाम और बुखार की शिकायत रही है। वैसे भी देश में कई तरह के फ्लू सक्रिय रहे हैं।

इन्हीं कारकों ने कोरोना संक्रमण की तेजी को उर्वरा भूमि दी है। निस्संदेह इस समय एक व्यक्ति से संक्रमित होने वाले लोगों की बढ़ती संख्या चिंता बढ़ाने वाली है। जब तक यह संख्या कम नहीं होगी, कोरोना का खात्मा नहीं माना जायेगा।

ऐसे में जिन लोगों को टीका लग चुका है, उन्हें भी मास्क, सुरक्षित शारीरिक दूरी और हाथ धोने को जीवनशैली में शामिल कर लेना चाहिए। महामारी ने बताया है कि सेहत ही सबसे बड़ा धन है। हमें अपने खानपान-जीवनशैली में बदलाव का संदेश भी मिला है।

बहरहाल, तेज संक्रमण और टीकाकरण अभियान में तेजी के बाद भी विश्व की तमाम वित्तीय संस्थाओं द्वारा भारत की विकास दर में अप्रत्याशित वृद्धि के जो आंकड़े दिये हैं, वे उत्साह बढ़ाने वाले हैं। साथ ही हमारी कोरोना के खिलाफ जंग को भी मान्यता देते हैं।

ऐसे में प्रधानमंत्री के पांच सूत्री फार्मूले जांच, संक्रमण संपर्कों का पता लगाने, बचाव, इलाज और टीकाकरण को अपनाकर ही कोरोना को हराया जा सकता है।

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