असली शान
बाबा आमटे की मां अधिक पढ़ी-लिखी न थी, लेकिन बुद्धिमान बहुत थी। वह बातों को बड़े सुंदर ढंग से समझाती थी। एक बार उन्होंने अपने पुत्र आमटे को एक जापानी गुड़िया दी। वह गुड़िया जितनी बार भी गिरती थी, उतनी बार ही उठ खड़ी होती।
उन्होंने अपने पुत्र को गुड़िया देते हुए समझाया, ‘बेटा, इस गुड़िया को तुम गिराते-गिराते थक जाअोगे, लेकिन यह गुड़िया हर बार उठ खड़ी होगी। इसी तरह जीवन में तुम्हें बार-बार गिरना पड़ेगा, तो तुम्हें भी इस गुड़िया की भांति बिना थके-हारे बार-बार उठना होगा।
शर्म गिरने या हारने में नहीं है बल्कि असली शान गिरकर तुरंत उठ खड़े होने में है तथा हार न मानना ही जीवन का दूसरा नाम है।’ मां की बात बाबा आमटे ने अच्छी तरह से गांठ बांध ली। वे गम्भीर बीमारी के बाद भी कुष्ठ रोगियों के लिए आश्रम चलाते रहे।