मन तुझसा खिल जाए वसंत

वसंत उमंग है, उल्लास है, आस है। ऐसी ऋतु है, जब मानो पूरे परिवेश में ही कुछ खास है। तितलियों और भंवरों का आनंद में डूब जाना वसंत है। आम के वृक्ष का बौराना वसंत है। अपनों के मन का खिल जाना वसंत है। प्रकृति की गोद में फूलों का खिलखिलाना वसंत है। धरा का शृंगारित हो मुस्कुराना वसंत है। कोयल की कूक और कलियों का खिलना वसंत है। यानी सब कुछ उमंग और उत्साह से भरा। मनमोहक और मानवीय भावों से सजा। पर हमारे मन का मौसम अब एक सा ही रहता है। यांत्रिक जीवन जीते-जीते मानो हम भावशून्य होते जा रहे हैं। संवेदनाएं छीज रही हैं। ऐसे में कौन नहीं चाहेगा कि प्रेमपगे अहसासों वाली यह ऋतु मन का भी मौसम बदले।

मन के हर अहसास को खुलकर जीने का संदेश लिए है वसंत। खासकर प्रेम को जीने और उसे विस्तार देने का संदेशा अपने साथ लाती है यह ऋतु। यूं भी वसंत तो पर्याय ही है प्रेम और प्रकृति के उल्लास का। जिसमें प्रकृति का कण-कण खिल उठता है।

इसीलिए वसंत, क्यों ना मेरा मन भी तुझसा हो जाए? खिला-खिला और उमंगों से भरा। जैसे प्रकृति हर्षाते हुए सब कुछ स्वीकार करती है। जैसे तुम्हारा आगमन प्रकृति को वासंती रंग से सराबोर कर देता है, ऐसे ही ऊर्जामयी वासंती भावों से मेरा मन भी लबरेज रहे। मन का ऐसा सुहावना मौसम जीवन के सफ़र को आसान कर देता है। ऊर्जा और उल्लास के साथ जीना सिखाता है। आज के उलझनों भरे समय में मेरे मन को यह पाठ पढ़ाओ वसंत।

वसंत, तुम्हारे आने से हर ओर उल्लास छा जाता है। मुस्कुराते-गुनगुनाते हुए धरती नए रंग में रंग जाती है। हालांकि, कुदरत के ऐसे रंग एक नियत समय तक ही रहते हैं। फिर मौसम को बदलना ही होता है। लेकिन आने वाली शुष्क ऋतु की चिंता के बजाय प्रकृति का रोम-रोम बस आज को जीता है। प्रकृति का यह भाव तो यही कहता है कि खिले रंग और खुशियां हमेशा नहीं रहते, पर जब तक हैं, उन्हें जी भरकर जीया जाये। वसंत ऋतु के बाद मौसम को बदलना ही होता है।

फूल मुरझाते भी हैं और पत्ते भी शाख से गिरते हैं। लेकिन जब तक तुम रहते हो वसंत, कुदरत हर पल को मुस्कुराते हुए जीती है। मैं भी यूं ही आज को जीना सीखूं। आने वाले कल की फ़िक्र में आज के रंग फीके ना करूं। क्या छूट जाएगा कि फिक्र के बजाय वर्तमान की खुशियां और खिलखिलाहटें समेटूं। सकारात्मक पहलुओं को तलाशते हुए खुशी के चटक रंगों से अपनी झोली भर लूं।

बदलाव जीवन का सच है। इसीलिए वसंत मैं तुझ सी गतिशीलता अपना सकूं। सम्पूर्ण धरा के सौंदर्य को निखारने वाला यह खूबसूरत पड़ाव मुझे यह सिखाये कि ठहरी सी शीत ऋतु के बाद वसंत और वसंत के सुहावने दिनों के बाद तपाने वाली गर्मी का मौसम आता है। यही जीवन की गतिशीलता है। तो हर उतार-चढ़ाव को जीते हुए आगे बढ़ते जाने में ही आनंद पाने की कोशिशें करनी होंगी। जिंदगी कहीं ठहरती नहीं। ऋतु चक्र की तरह सुख-दुःख के मौसम आते-जाते रहते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा गतिशील बने रहना ही मायने रखता है। वसंत, तपती धूप हो या खिलते फूलों का मौसम, जीवन गतिशील रहे, यह भाव भी सिखाओ।

फूलों का खिलना, भंवरों का झूमना, तितलियों का मंडराना और सुवासित सुगंध का पूरे वातावरण में फैल जाना। तुम कितनी ही चीज़ों को एक साथ जोड़ देते हो वसंत। धरती की उत्सवीय गोद में मानो सब को न्योता देकर बुलाते हो। एक कड़ी बन जाते हो प्रकृति के हर हिस्से के बीच। मैं भी ऐसे ही जुड़ाव का कारण बनूं। रिश्तों में अपनेपन की सुगंध फैलाऊं।

तितलियों और भंवरों की तरह जीवन को उत्सवीय रूप में देखूं। सजी सुंदर धरा के कण-कण में जैसे सुंदरता दिखती है, वैसे ही जीवन के हर हिस्से में, हर अवसर पर सकारात्मकता और सौंदर्य तलाशूं। ताकि आपसी लगाव का एक पुल बन सकूं। अमराई की भीनी-भीनी खुशबू की तरह अपने आंगन को महकाऊं। रिश्तों में तुम्हारे प्रतीक केसरिया रंग के उल्लास और जीवंत भाव को जी सकूं।

चटकती कलियों और गेहूं की लहलहाती बालियों की तरह मैं भी उल्लास में डूब जाऊं, वसंत। सरसों के खेतों में बिखरी पीले रंग की खिलखिलाहट मेरे चेहरे पर भी सजी रहे। टेसू के ऊर्जामयी रंग विचार और व्यवहार में उतर आयें। पेड़ों पर खिलती नयी कोंपलों में जीवन की उम्मीदों की दस्तक सुनाई दे। गुनगुनी धूप मन-जीवन को सहजता की चमक से लबरेज कर दे।

मन जीवन को स्नेह से सिंचित करने की सीख मिले। शृंगारित धरा के समान जीवन को संवारने की सीख मिले। सुनो वसंत, अबके बरस तुम्हारे ऐसे सुंदर रंगों से मेरा मन भी रंग जाए। ताकि मैं भी मुस्कुराहटों के वासंती रंग बिखेर सकूं।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker