उच्च शिक्षण संस्थानों का साथ लीजिए 

भारत विकसित होने की राह पर है। अभी हाल में प्रधानमंत्री ने आने वाले पचीस वर्षों में भारत को विकसित देश बनाने का नारा भी दिया है। भारत में इस वक्त दुनिया के किसी भी विकसित देश से कई गुना ज्यादा विकास परियोजनाएं चल रही हैं। गरीबों की जीवन शक्ति, विकास की चाह रखने वालों में क्षमता निर्माण, आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, महिला शक्ति निर्माण, सामाजिक संयोजन, आर्थिक समाहितीकरण की अनेक योजनाएं भारत सरकार संचालित कर रही है। साथ ही, जलशक्ति, गतिशक्ति, गरीब कल्याण, किसान कल्याण, इकोनॉमिक कॉरिडोर, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी आंतरिक सुरक्षा, ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक परियोजनाएं केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा संचालित की जा रही हैं। इन सभी परियोजनाओं का लक्ष्य भारत को विकासमान महाशक्ति बनाना तो है ही, साथ ही इनसे भारत में विकास का महाआख्यान गढ़ने की कोशिश भी है, जो देश में विकासात्मक हस्तक्षेप और विकास की आकांक्षा व प्रेरणा विकसित कर सके। लेकिन विडंबना यह है कि विकास के इस अभियान के ईद-गिर्द अभी ज्ञान निर्माण का कार्य नहीं हो सका है। भारतीय राज्य खुद ही अभियान चला रहा है और अभियान को लागू होते हुए खुद ही देख रहा है। इसमें ‘एक तीसरे पक्ष’ की जरूरत है। वह पक्ष हमारे देश के ‘उच्च शिक्षा संस्थान’ हो सकते है, जो अपने-अपने क्षेत्रों के विकास कार्यों और इनसे होने वाले सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक बदलाव का आकलन कर सकते हैं। वे हमारी विकास प्रक्रिया के उपयोगी दस्तावेजीकरण को अंजाम दे सकते हैं। 
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में 1,000 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं, जिनमें 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 416 राज्य विश्वविद्यालय, 125 डीम्ड यूनिवर्सिटी, 361 निजी विश्वविद्यालय, 159 राष्ट्रीय महत्व के शोध संस्थान, जिनमें अनेक आईआईटी व आईआईएम शामिल हैं। ये सभी देश के विभिन्न भागों में फैले हैं। वन क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्र, मरुस्थल, सामूहिक क्षेत्र, हर जगह कोई न कोई उच्च शिक्षा का संस्थान है। इनके साथ कॉलेजों को जोड़ दिया जाए, तो संख्या लाखों तक जा सकती है। उच्च शिक्षा के ये संस्थान भारत में विकास की ‘तीसरी आंख’ बन सकते हैं, जो निरपेक्ष होकर विकास की इस गति को देख सके और उसकी समुचित व्याख्या कर सके। 
दुनिया के अनेक देशों में विश्वविद्यालय अपने-अपने मुल्क में विकास के ‘थिंक टैंक’ के रूप में सक्रिय हैं। दुनिया में ऐसे अनेक विश्वविद्यालय हैं, जो अपने समाज और देश में विकासपरक हस्तक्षेप के कारण हो रहे सामाजिक बदलावों के ‘आर्काइव’ और डाटा केंद्र के रूप के सक्रिय तो हैं ही, साथ ही, अपने-अपने समाज में विकास के प्रकाश स्तंभ और विचार केंद्र के रूप में भी कार्यरत हैं। 
भारत में उच्च शिक्षा संस्थान मूलत: शिक्षा व डिग्री देने के केंद्र के रूप में कार्यरत हैं। यह ठीक है कि इस प्रक्रिया में वे ऐसे छात्र पैदा करते हैं, जो विकास के इस अभियान में मानवीय शक्ति व एजेंसी के रूप में कार्य कर सकें, किंतु इससे भी आगे बढ़कर इन्हें भारत में विकास के विचार केंद्र के रूप में भी विकसित होने की अपेक्षा की जानी चाहिए। भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने वजूद में यह एक नया आयाम शामिल करने की जरूरत अभी बाकी है। हमारे उच्च शिक्षा संस्थान विकास के विचार केंद्र एवं तीसरी आंख बन सकें, यह हमारे समय की एक बड़ी जरूरत है। 
विकास के प्रयास सिर्फ आर्थिक-प्रशासनिक क्रिया ही नहीं, वरन एक विचार, दर्शन व विवेक के बड़े फ्रेम की भी मांग करते हैं। यह कार्य कोई राजसत्ता अकेले नहीं कर सकती। अभी तक बिना बौद्धिक विचार एवं आकलन के विकास का महायज्ञ किसी भी राष्ट्र में सफलतापूर्वक पूरा नहीं हो सका है। भारत जब आज विकसित राष्ट्र बनने की जद्दोजहद की रहा है, तब भारतीय विश्वविद्यालय इस प्रक्रिया के मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते। उन्हें विकास का न सिर्फ अध्ययन करना होगा, बल्कि विकास में हरसंभव सहयोग भी करना होगा। जिन देशों में तेज आर्थिक विकास हुआ है, उनमें विश्वविद्यालयों की भूमिका व्यापक है। आज हम जहां भी हैं, वहां राज्य या सरकार सक्रिय है। उसकी सक्रियता कई रूपों में है। उनमें एक है – विकास परियोजनाओं का संचालन व उनसे बन रहा लाभार्थी समुदाय। हम जहां भी हैं, वहां के हमारे आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में कुछ न कुछ घटित हो रहा है। हमारे दैनिक जीवन में हो रहे इन बदलावों का दस्तावेजीकरण और उन पर गहन शोध की जरूरत है। यह कार्य राजसत्ता अकेले नहीं कर सकती, इसके लिए उच्च शिक्षा संस्थानों को साथ लेना होगा। 
शायद इसकी जरूरत आज महसूस की जाने लगी है। भारत सरकार का शिक्षा विभाग देश के कई बड़े विश्वविद्यालयों, आईआईटी एवं आईआईएम का एक संयुक्त पुल तैयार कर रहा है, जो देश के विकास के प्रयासों का नीतिगत आकलन तो करेगा ही, उनके सामाजिक प्रभावों का भी अध्ययन करेगा। साथ ही, ये केंद्रीय महत्व के शिक्षा संस्थान भारत सरकार के विभिन्न विभागों के साथ मिलकर अपने को ‘विकास के थिंक टैंक’ के रूप में स्थापित कर सकेंगे। शिक्षा  मंत्रालय विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर भारत में विकास दृष्टि, उनका आकलन और उनके सामाजिक प्रभावों पर अध्ययन करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है। इसे ‘ज्ञान की विरासत’ निर्माण के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker