क्या खूबी है इस लौह में जिसमे सदियों बाद भी नहीं लगी जंग ?

दिल्लीः

इतिहास के गर्भ में न जाने ऐसे कौन-कौन से रहस्य हैं, जो हम कभी समझ ही नहीं पाए. जो इमारतें और स्मारक आज हम शान से घूमने जाते हैं, उन जगहों (Amazing Places) को बनाने और संवारने में न जाने कितनी मेहनत और तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा, ये कभी सोचा है आपने ? कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद (Quwwat-ul-Islam Mosque) के कॉम्प्लेक्स में लगा हुआ एक लौह स्तंभ भी ऐसा ही उदाहरण है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि राजधानी दिल्ली में मेहरौली का लौह स्तंभ (Iron Pillar) है, जिस पर बारिश-धूप का असर नहीं हुआ और इस पर कभी भी ज़ंग नहीं लगी. आखिर 1600 साल पहले इस खंभे में ऐसी किस तकनीक का इस्तेमाल किया गया होगा कि कभी भी खंभे में ज़ंग नहीं लगी. ये बात वैज्ञानिकों और पुरातत्ववेत्ताओं के लिए भी आश्चर्यजनक है कि आखिर शुद्ध लोहे का होने के बाद भी खंभा सदियों से बिना ज़ंग लगे धूप और बारिश कैसे सह रहा है?

कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में लगा ये लौह स्तंभ कुल 6 टन का है और ये 7.21 मीटर ऊंचा और 41 सेंटीमीटर व्यास वाला है. माना जाता है कि ये 1500-1600 साल पुराना है और इसे सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय ने स्थापित कराया था. वे गुप्त साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से थे. तब से इतिहा में न जाने क्या-क्या हुआ , लेकिन इतने सालों से खुले आकाश के नीचे लगे होने के बाद भी इस लौह स्तंभ पर कोई भी आंच नहीं आई है. न तो इस पर ज़ंग लगी है और न ही ये कहीं से टूटा-फूटा है. इसकी कारीगरी और इसमें इस्तेमाल की गई धातु को लेकर सालों तक रिसर्च हुई और आखिरकार साल 2003 में इस रहस्य पर से पर्दा हट पाया कि स्तंभ का लोहा खराब क्यों नहीं होता.

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