सही दिशा भी मिले

पचास वर्षों में हमने अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं, परंतु क्या हमने वास्तव में अपनी क्षमता का पूरा उपयोग किया है? हम जनता की आशाओं और आकांक्षाओं से पूरी तरह अवगत हैं।

…क्या हम इन आवश्यकताओं को पूरा कर पाए हैं? क्या संसाधनों से भरपूर इस देश ने जनता की आवश्यकताओं को पूरा किया है? मैं समझता हूं कि आपने ठीक ही कहा है कि भारत तो समृद्ध है, किंतु इसकी जनता निर्धन है।

मैं उन भाग्यशाली लोगों में से हूं, जिन्हें 15 अगस्त, 1947 के दिन जनता के आनंद और उत्साह को देखने का अवसर प्राप्त हुआ था, परंतु क्या हम यह कह सकते हैं कि जनता का वही आनंद व उत्साह अभी भी बना हुआ है? आज उस भावना का अभाव है।

क्या हमें इसकी समुचित समीक्षा और आत्म-निरीक्षण नहीं करना चाहिए?…स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश का विभाजन हुआ और इस विभाजन से पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के अनेक लोगों का भारी नुकसान हुआ। करीब अस्सी लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए।

पचास वर्ष के पश्चात आज भी हम उनका पूरी तरह पुनर्वास नहीं कर पाए हैं।… यह एक ऐसा दायित्व है, जिसके निर्वहन की जिम्मेदारी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ली थी। उन्होंने इस देश की जनता को आश्वासन दिया था कि भारत में आए प्रत्येक भाई-बहन को समान सम्मान और अवसर दिया जाएगा।

परंतु महोदय, दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ। यह हमारे शरीर में, हमारी सामाजिक व्यवस्था में कष्टकारक घाव है। यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि सांप्रदायिकता की जड़ें कितनी गहरी हो गई हैं और भारत जैसा देश सांप्रदायिकता के आधार पर कैसे विभाजित हुआ था?

इसलिए मैं समझता हूं कि दुर्भाग्यवश लाखों विस्थापित इस विभाजन के शिकार हुए? यह एक ऐसी समस्या है, जिसका संतोषजनक समाधान ढूंढ़ा जाना बाकी है।


हम गांधी जी की बातें कर रहे हैं, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी जी ने ऐसे भारत की कल्पना की थी, जिसमें प्रत्येक की आंखों से आंसू पोंछने के लिए लोक सेवा और सामाजिक सेवा की व्यवस्था होगी।

.. मैं यह अनुभव करता हूं और इस सम्मानित सभा को यह बताना चाहता हूं कि इस देश के लिए गठित यह प्रशासनिक ढांचा अर्थात अर्द्धसंघीय प्रशासन देश के अनुरूप सिद्ध नहीं हुआ है। हमने केंद्र को मजबूत करने के बारे में सोचा था, क्योंकि उस समय यह सोचा गया था कि केवल एक मजबूत केंद्र ही देश को विघटित होने से बचा सकता है।

परंतु दुर्भाग्यवश, इसके परिणामस्वरूप वर्षों से अधिक से अधिक सत्ता कुछ लोगों के पास केंद्रित होती जा रही है।…इस विशाल देश के इतने अधिक राज्यों में से केवल एक या दो क्षेत्र ही विकसित क्यों हुए हैं।

केवल एक या दो क्षेत्रों में ही संसाधन क्यों उपलब्ध हैं? हमारे पूर्वोत्तर भारत अथवा पूर्वी भारत या मध्य भारत के नागरिकों ने क्या गुनाह किया है? उन्हें ऐसे ही अवसर क्यों नहीं दिए जाने चाहिए?


आज आप कहते हैं कि लोग उन क्षेत्रों में जाएंगे, जहां पर्याप्त बुनियादी ढांचागत सुविधाएं हैं। लेकिन इन सुविधाओं के लिए कौन जिम्मेदार रहा है? क्या हमारा अखिल भारतीय दृष्टिकोण है? क्या हमने कभी वास्तविक योजना प्रक्रिया के बारे में सोचा है, जो इस देश के प्रत्येक क्षेत्र में निरंतर विकास लाएगी?

आज इसीलिए क्षेत्र बंटे हुए हैं, लोगों के बीच अविश्वास है, आतंकवाद की समस्याएं हैं। इस देश के विभिन्न क्षेत्रों के नौजवान इतने अधिक अंसतुष्ट हैं कि वे हथियारों का सहारा ले रहे हैं।

वर्गों की स्थिति, स्तर और मान्यता के बारे में जातीय समस्याएं हैं। सारे देश में एक प्रकार की पहचान संबंधी समस्याएं पैदा हो गई हैं, जिससे हमारे देश के विकास में मदद नहीं मिली है।… 
हम क्या कर रहे हैं? क्या मैं पूछ सकता हूं कि हमने लोगों को नौकरियां देने के लिए क्या किया है?

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker