नई विश्व व्यवस्था की ओर 

यूक्रेन पर अकारण हमले के लगभग एक महीने बाद साफ है कि युद्ध उस तरह से नहीं चल रहा है, जैसी कल्पना व्लादिमीर पुतिन ने की थी।

हालांकि, अभी रूसी आक्रमण को दलदल कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह साफ है कि यूक्रेन के सैनिकों व नागरिकों ने जिस तरह से उग्र प्रतिरोध किया है, उसके चलते रूस अपने सैन्य और सियासी मकसद से अभी तक दूर है।

युद्ध से पहले वाशिंगटन में विदेश नीति के हलकों में दो प्रमुख धारणाएं थीं- पहली धारणा यह थी कि रूसी सेनाएं कुछ ही दिनों, शायद 48 घंटों से भी कम समय में यूक्रेन की सेना को पछाड़ देंगी और मॉस्को के अनुकूल शासन की स्थापना हो जाएगी।

 दूसरी धारणा यह थी कि रूसी दुस्साहस चीन के मौन समर्थन से एक नई दो-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की शुरुआत करेगा, जिसमें एक तरफ, संयुक्त राज्य अमेरिका व उसके सहयोगी होंगे और दूसरी तरफ, रूस व चीन होंगे।


मॉस्को द्वारा आक्रमण के महीने भर बाद रूस की पहली धारणा अमान्य हो गई है। यूक्रेन द्वारा दिए गए आक्रामक जवाब के चलते रूसी हमलावर कई मोर्चों पर ठिठक गए हैं।

यूक्रेन की राजधानी कीव को गिराने में रूस अब तक असमर्थ रहा है और रूसी पक्ष का नुकसान लगातार बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि अब तक के युद्ध में 7,000 या इससे अधिक रूसी सैनिक मारे गए हैं।

इसके अतिरिक्त, पश्चिमी पर्यवेक्षकों के अनुसार, रूस को टैंक, लड़ाकू जेट और मिसाइलों के मामले में भी खासा नुकसान हुआ है।

भयंकर बमबारी व मिसाइल हमलों के बावजूद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का पश्चिम-समर्थक प्रशासन न सिर्फ कायम है, बल्कि इसे यूरोप और दुनिया भर के देशों में भारी समर्थन मिल रहा है।

वास्तव में, एक पूर्व कॉमेडियन व व्यवसायी जेलेंस्की पश्चिमी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में एक नायक बन गए हैं। हाल के एक जनमत सर्वेक्षण में 64 प्रतिशत अमेरिकियों ने कहा कि वे जेलेंस्की के रुख से इत्तेफाक रखते हैं।

इस वजह से अमेरिका में प्रशासन, रक्षा और रणनीतिकारों को यह विश्वास हो चला है कि पुतिन ने युद्ध की तैयारी करते समय यूक्रेनी प्रतिरोध और पश्चिम के संकल्प को कम आंका था।

जाहिर है, पुतिन ने न सिर्फ यूक्रेनी संकल्प, बल्कि अमेरिका व उसके सहयोगियों की दृढ़ता का भी गलत आकलन किया था।


आज तक के नतीजों को देखते हुए उचित ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विश्व व्यवस्था में बदलाव उस तरह से सामने नहीं आया है, जैसा रूस या चीन की मर्जी थी।

लगता है, पिछले कई दशकों में महाशक्ति के दर्जे के लिए रूस का दावा मुख्य रूप से उसकी कल्पित सैन्य शक्ति पर टिका था। 
कोई संदेह नहीं कि युद्ध जितना लंबा चलेगा, पुतिन और दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली ताकत मानी जाने वाली रूसी सेना के लिए उतना ही नुकसानदेह होगा। रूस की प्रतिष्ठा काफी हद तक क्षतिग्रस्त हुई है और इसीलिए पुतिन व उनके लोग परमाणु हथियारों की चर्चा ज्यादा करने लगे हैं।


युद्ध की शुरुआत में पारंपरिक धारणा यही थी कि पुतिन द्वारा छेडे़ गए युद्ध का बड़ा लाभार्थी चीन होगा। जिस तरह से युद्ध हो रहा है, उसे देखते हुए शायद चीन अभी भी एक लाभार्थी होगा, लेकिन उस तरह से नहीं, जैसा पहले सोचा गया था।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने निस्संदेह यूक्रेन में पुतिन की गलतियों से सबक सीख लिया है। अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों की वजह से ही बीजिंग दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सका है।

अब वह निश्चित रूप से ताइवान या यहां तक कि भारत के उत्तर व पूर्वोत्तर में हस्तक्षेप करते समय पहले से अधिक सतर्क रहेगा। गौर कीजिए, अब एक नई विश्व व्यवस्था उभर रही है।

राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे आकार देने के लिए अपने देश को प्रतिबद्ध किया है। 21 मार्च को बिजनेस राउंड टेबल के भाषण में उन्होंने कहा, ‘चीजें बदल रही हैं, व एक नई विश्व व्यवस्था बनने जा रही है और हमें इसका नेतृत्व करना है।

… हमें यह करने के लिए बाकी आजाद दुनिया को एकजुट करना होगा।’ नाटो, जो डोनाल्ड ट्रंप के वर्षों में पीछे हट गया था, व्लादिमीर पुतिन की बदौलत एकजुट इकाई के रूप में लौट आया है।

नाटो का हर सदस्य देश मौके पर आगे आया है, इनमें स्लोवाकिया जैसे राष्ट्र भी शामिल हैं, जो शीत युद्ध के समय सोवियत खेमे में शुमार थे।


राष्ट्रपति जो बाइडन बुधवार को नाटो, जी 7 और यूरोपीय संघ के आपातकालीन शिखर सम्मेलन के लिए ब्रुसेल्स पहुंचे। वह नाटो और यूरोप के साथ मिलकर रूस पर नए-नए प्रतिबंध लगाने में जुटे हैं।

बाइडन की कोशिश है कि तेल व गैस के लिए मास्को पर यूरोपीय सहयोगियों की निर्भरता कम हो जाए। जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया है, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के चलते खुद रूस के लिए कई अनपेक्षित और बहुत दुखद परिणाम हुए हैं।

रूसी ऑपरेशन की संभावित नाकामी का एक अन्य अनपेक्षित परिणाम यह भी है कि तथाकथित ताकतवर या निरंकुश लोगों का विजयी मार्च दुनिया में धीमा पड़ सकता है। 


अमेरिकी राजनीतिक विज्ञानी फ्रांसिस फुकुयामा लिखते हैं, रूसी आक्रमण ने पहले ही दुनिया भर के ऐसे लोगों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जो हमले से पहले पुतिन के प्रति किसी न किसी रूप में सहानुभूति रखते थे।

लेकिन युद्ध की राजनीति ने खुले तौर पर उनके सत्तावादी झुकाव को जाहिर कर दिया है। प्रसिद्ध पुस्तक द एंड ऑफ हिस्ट्री ऐंड द लास्ट मैन  के लेखक फुकुयामा लिखते हैं, ‘पुतिन की हार से दुनिया में उदार लोकतंत्र की वापसी हो सकती है, जो कई वर्षों से पीछे हटता जा रहा है।

’ वह कहते हैं, ‘रूस की पराजय आजादी के नए जन्म को संभव बना देगी, और हमें वैश्विक लोकतंत्र की दुर्गंध भरी गिरावट से बाहर निकाल देगी। बहादुर यूक्रेनी समुदाय का आभार!’


युद्ध ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनेताओं और लोगों को एक तरह से एकजुट कर दिया है, यह स्थिति 9/11 के बाद से नहीं देखी गई थी।

युद्ध ने दुनिया भर में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्थन जगाया है। यह वैसी नई विश्व व्यवस्था नहीं है, जैसी पुतिन ने इस युद्ध को शुरू करते समय चाही थी, बल्कि यह वह नई व्यवस्था है, जिसकी दुनिया को जरूरत है।

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