एक युग का अवसान

मुलायम सिंह यादव का बिछोह राजनीति के एक युग का अवसान है। वह बहुत नेकदिल सच्चे इंसान थे। मैं यह मानता हूं, वह संबंधों का मर्म समझते हुए रिश्तों को शिद्दत से निभाने वाली विरल शख्सियत थे। याद नहीं पहली भेंट उनसे कब हुई थी, परंतु राजनीति के आरंभिक दिनों से ही उनसे एक निकट का नाता हो गया था। बाद के दिनों में यह नाता और गहरा होता गया। प्यार और सम्मान के गहरे अर्थों में समाहित होता चला गया। राजनीतिक दल को ध्यान में रखें, तो हम दोनों भले ही सदा अलग-अलग रहे, परंतु जो अपनापन और प्यार, सम्मान उन्होंने दिया, उसे मैं कभी भुला नहीं सकता। 
मुझे याद है, आपातकाल के दौरान उन्होंने भी बहुत कष्ट झेले थे और जेल में रहे थे। भारतीय जनता पार्टी बनने के पश्चात उत्तर प्रदेश में भाजपा और लोकदल का राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा बना था, इसके अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव थे और महामंत्री मैं था। हमने बहुत से स्तरों पर साथ-साथ काम किया। राजनीति में रहते हुए इस बात को मैंने निकट से अनुभव किया कि उनमें न केवल उत्तर प्रदेश की गहरी भौगोलिक व सामाजिक समझ थी, बल्कि उनकी राजनीतिक दृष्टि भी बहुत व्यापक थी। अपने कार्यकर्ताओं के प्रति उनके मन में गहरा लगाव भी मैंने शुरू से ही देखा, महसूस किया। शायद इसी गुण के चलते वह अपनी पार्टी को सत्ता तक पहुंचा पाए। चुनावों के दौरान भी उनसे जब-तब संवाद होता रहता था और इस दौरान विमर्श से सदा नई राहें भी खुलती रहती थीं। राष्ट्रवाद से उनका गहरा लगाव भी मैंने निरंतर महसूस किया। अक्सर मैं मजाक में उनसे कह दिया करता कि आपको हमारी पार्टी में होना चाहिए था, तब वह हंसकर रह जाते थे। वह कुछ कहते नहीं थे, परंतु जानता हूं, बहुत से स्तरों पर उनकी दृष्टि राष्ट्र और समाज के सांस्कृतिक सरोकार से जुड़ी हुई थी।
राजनीति में जमीन से जुड़े उन जैसा नेता इस समय बहुत कम रह गए हैं। ऐसे में, मुलायम सिंह लोगों को और अधिक याद आएंगे। वह जन-जन से जुड़ाव रखने वाले सही मायने में जमीनी नेता थे। उन्हें सब ‘नेताजी’ ऐसे ही नहीं कहते थे, वह नेतृत्व के अद्भुत गुण रखने वाले नेता थे और सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे। इसीलिए हर कोई उनके नेतृत्व में कार्य करने के लिए भी तत्पर रहता था। याद है, उत्तर प्रदेश में जब मायावती मुख्यमंत्री थीं, तब मैं उस समय सार्वजनिक निर्माण विभाग का मंत्री हुआ करता था। इटावा में तब हमने सार्वजनिक निर्माण विभाग से भवन बनवाए थे। उन्हीं दिनों समाजवादी पार्टी का एक अखिल भारतीय सम्मेलन वहां होने वाला था। उन्होंने फोन करके सम्मेलन में आने वाले लोगों के लिए वह भवन उपलब्ध कराने और दूसरी कुछ छोटी-मोटी व्यवस्थाएं करने के लिए आग्रह किया। उनकी छवि ऐसी थी कि उनका आग्रह न मानने का सवाल ही नहीं उठता था। मैं स्वयं वहां गया और त्वरित ढंग से अपने प्रमुख सचिव से कहकर सारी व्यवस्थाएं कराईं। मुझे याद है, बाद में मुलायम जब भी मिलते, तो इस प्रकरण का जिक्र जरूर छेड़ते थे। इस तरह की मदद कोई ऐसी बड़ी बात नहीं थी, लेकिन यह उनका व्यक्तित्व था कि वह भी किसी स्तर पर कोई सहयोग करता, तो उसको कभी भूलते नहीं थे।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker