वाजिब हक देना होगा

मानव और मानव के बीच जो भेदभाव और अंतर बरता जाता है, वह एक भयंकर विषवृक्ष है, जिसे स्वतंत्र भारत में कभी पनपने का हमें मौका ही न देना चाहिए। किंतु अपने समाज का वर्तमान ढांचा ही कुछ ऐसा है कि बाध्य होकर हमें और हमारे नेताओं को रक्षण और संरक्षण के सिद्धांत को स्वीकार करना पड़ रहा है।

मैं जानता हूं कि इस व्यवस्था को हमने खुशी से नहीं रखा है। हम चाहते हैं कि यह व्यवस्था हमेशा के लिए ही उठा दी जाए, किंतु भारतीय समाज के कतिपय वर्ग ऐसे हैं, हरिजन बंधु और आदिवासी मित्र, जो शताब्दियों से यहां उत्पीड़न सहते आ रहे हैं… जिससे डरकर वह इन रक्षणों की मांग कर रहे हैं।

उनकी यह मांग ठीक है। उनको रक्षण मिलना चाहिए और इतना पर्याप्त रक्षण मिलना चाहिए कि जिससे वह समाज के अन्य वर्गों के समक्ष आ सकें। ऐसा होने पर ही मानव और मानव के बीच बरते जाने वाले इस भयंकर भेदभाव का अंत होगा, अन्यथा नहीं। ..देश में और भी बहुत से ऐसे वर्ग हैं, जिनकी अवस्था आज अपने हरिजन और आदिवासी बंधुओं से किसी तरह भी अच्छी नहीं है।

देश के कुछ भागों में तो अवस्था इतनी खराब है कि इन लोगों की हालत हरिजनों और आदिवासियों से भी गई बीती है। …ब्राह्मण लोग जो अपने को मानव समाज के उच्चतम स्तर पर अवस्थित मानते हैं, उनमें भी बहुत से ऐसे हैं, जो अछूत हैं। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि ब्राह्मणों में भी अछूत वर्ग वर्तमान है और इसे अब्राह्मणों से भी छोटा समझा जाता है।

आखिर इन सब बातों का मतलब क्या होता है? ये सब व्यर्थ की बातें हैं। किसी को हम छोटा समझते हैं और किसी को बड़ा। मानव समाज में इस तरह का भेदभाव कभी न रहने देना चाहिए। किंतु हमारा समाज इस भेदभाव को बनाए हुए है। हमारे समाज के लिए यह दुर्भाग्य की ही बात है। यही कारण है, जो हमारे मित्र रक्षण, संरक्षण, आरक्षण आदि की मांग कर रहे हैं।


…रक्षण और नियंत्रण के कारण ही भ्रष्टाचार फैलता है। मैं आपके सामने इसके दो उदाहरण रखता हूं। केंद्रीय शासन ने इस बात का ऐलान किया था कि अनुसूचित जातियों, अनुसूचित आदिम जातियों और सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछडे़ हुए वर्गों के लोगों को अध्ययन के लिए वह छात्रवृत्तियां देगी। पिछड़े हुए वर्गों में ‘किसान’ भी माना जाता है।

‘किसान’ शब्द का आम अर्थ कृषक और कोई भी आदमी कृषक हो सकता है, चाहे वह ब्राह्मण हो या कायस्थ हो या और कोई भी हो। किंतु संयुक्त प्रांत में ‘किसान’ शब्द एक सीमित अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। कृषक वर्ग के उस व्यक्ति को, जो पिछड़ा हुआ है, वहां किसान कहा जाता है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा श्रीमान कि इस छात्रवृत्ति के आवेदन पत्र देने वाले छात्रों में कुछ ऐसे भी थे, जो समुन्नत वर्ग के थे, पर आवेदन उन्होंने इस आधार पर दिया था कि उनके पूर्वज किसान थे और वह भी खेती-बाड़ी का ही काम करते हैं, इसलिए उन्हें यह छात्रवृत्ति मिलनी चाहिए। 


इसी तरह, एक बार ऐसा हुआ था कि हरिजन कोष से मिलने वाली छात्रवृत्ति के लिए कुछ ब्राह्मणों ने आवेदन पत्र दिए थे, यह दावा करते हुए कि वे भी हरिजन हैं। इस तरह हम देखते यह हैं कि रक्षण और नियंत्रण की व्यवस्था से भ्रष्टाचार ही फैलता है, …इस व्यवस्था को हमें कभी बढ़ावा नहीं देना चाहिए। किंतु चूंकि हमारा समाज हठधर्मी हो गया है, इसलिए इसका कुपरिणाम हमें भुगतना ही पडे़गा।

हमारे समाज का वर्तमान ढांचा ही कुछ ऐसा है कि उसमें इन खराबियों का पैदा होना अनिवार्य है। वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के कारण ही दलित वर्गों के मन में अविश्वास और आशंका की भावना पैदा हो रही है। उनको डर इस बात का है कि संरक्षण का उपबंध न रहने से प्रशासकीय सेवाओं में उनको समुचित जगह नहीं मिल पाएगी और इसीलिए रक्षण की वह मांग कर रहे हैं।…


कृषक वर्ग, पशुपालक वर्ग और शिल्पी वर्ग को भी, जो भारतीय समाज की रीढ़ हैं, सरकारी नौकरियों में काम करने का मौका मिलना चाहिए, क्योंकि इनको अनुसूचित जनजातियों या अनुसूचित जातियों में शामिल नहीं किया गया है।…आशा है कि …जातिवाद के जहरीले सांप का हम हनन कर देंगे और इस बात के लिए शीघ्र कार्रवाई की जाएगी कि अपना यह महिमा मंडित स्वतंत्र देश उन लोगों के लिए स्वर्ग बन जाए, जो शताब्दियों से यहां असमता का उत्पीड़न सहते आ रहे हैं।

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