श्रीलंका में संकट

उधर सूरज ढल रहा है और इधर अपनी लॉरी में बैठे दयारत्ने अपना गुस्सा छिपा नहीं पा रहे हैं। वह सुबह से ही कोलंबो के बाहरी इलाके कडुवेला के एक पेट्रोल-डीजल पंप पर लंबी कतार में लगे हैं।

यहां अब आम लोग बोलने लगे हैं कि इस सरकार को परवाह नहीं है और देश गलत हाथों में चला गया है। दयारत्ने देश की राजधानी से 350 किलोमीटर दूर पहाड़ी गांव बादुल्ला से हैं।

वह एक स्थानीय कंपनी के लिए आपूर्ति का काम करते हैं। उनके तीन स्कूली बच्चे हैं। दयारत्ने जो कुछ कमाते हैं, उसका अधिकांश हिस्सा बच्चों की पढ़ाई में चला जाता है।

वह कहते हैं, ‘मैंने एक साथ 5,000 रुपये निकाले हैं और आज ही अपने परिवार को भेज दिए हैं, ताकि अगले कुछ दिनों तक परिवार संकट का सामना न कर सके।

मैं तब तक काम नहीं कर सकता, जब तक मुझे डीजल नहीं मिल जाता। मैंने पहले ही परिवार वालों से कह दिया है कि वे किसी तरह चावल और नारियल के सांबोल से काम चलाएं, क्योंकि हम और अधिक खर्च नहीं कर सकते।’

यहां ऑटोरिक्शा चालकों का समूह भी सरकार की निंदा कर रहा है। किराया बढ़ गया है, तो सवारियां मिल नहीं रही हैं। आर्थिक आपदा के चलते लोग गंभीर संकट में हैं।

पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण किराया बढ़ाना पड़ा है, जिससे काम आधा ही रह गया है। लोग पैसे बचाने के लिए कम दूरी की यात्राएं पैदल ही तय करने लगे हैं।

युवा सवालों से भरे हुए हैं कि राष्ट्रपति भला क्या कर रहे हैं? लोग राष्ट्रपति की शिकायत कर रहे हैं कि उन्होंने अपने वादों के बावजूद भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई है। 


श्रीलंकाई लोगों का जीवन गंभीर आर्थिक उथल-पुथल से प्रभावित हो रहा है। भारी कर्ज, खराब नीति नियोजन, कोविड-19 महामारी और हाल ही में यूक्रेन में युद्ध के संयोजन केकारण देश में एक गंभीर विदेशी मुद्रा संकट पैदा हो गया है।

चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। डीजल, मिट्टी के तेल, रसोई गैस, खाद्य पदार्थों और यहां तक कि दवाओं की भी भारी कमी हो गई है।


पिछले कुछ हफ्तों में संकट चरम पर पहुंच गया है। बिजली उत्पादन हाइड्रो, थर्मल और कोयला क्षमता पर निर्भर करता है। चूंकि यह शुष्क मौसम है, जलाशयों में जल स्तर तेजी से घट रहा है और पानी खेती के लिए संरक्षित किया जा रहा है, जिससे डीजल से चलने वाले संयंत्रों पर भारी निर्भरता हो गई है।

ईंधन खरीदने के लिए अमेरिकी डॉलर नहीं है, तो फरवरी महीने से जारी कुछ घंटों की बिजली कटौती 31 मार्च से 13 घंटे की कर दी गई है।
ईंधन और गैस सिलेंडर की दुकानों पर मीलों लंबी कतारें रोजमर्रा की बात हो गई हैं। गुस्सा उबल रहा है और छोटी-छोटी बातों पर भी लड़ाई छिड़ जा रही है।

हाल ही में कतार तोड़ने वाले एक 29 साल के मोटरसाइकिल चालक की हत्या चाकू मारकर कर दी गई। बुजुर्गों के लिए तनाव विशेष रूप से घातक है, मार्च में चार की गिरकर मौत हुई है। सरकार की प्रतिक्रिया क्या है? व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई जगहों पर सशस्त्र सैनिकों को तैनात किया गया है।


कर्मचारियों के पास काम पर जाने के लिए ईंधन नहीं है और घर से काम करने के लिए बिजली नहीं है। डीजल की कमी केचलते लंबी दूरी की कई बसों ने परिचालन बंद कर दिया है। विरोध प्रदर्शन अब स्वत:स्फूर्त हो रहे हैं।

विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति राजपक्षे ‘घर जाओ’ का आह्वान करते हुए बड़े पैमाने पर रैलियां की हैं। सोशल मीडिया पर ‘गोटा गो बैक’ और ‘गो होम राजपक्षे’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। अगले कुछ दिनों में बड़ी विरोध सभा की उम्मीद है।


श्रीलंका की चुनौतियां बहुत बड़ी हैं। अकेले इस वर्ष देश का विदेशी ऋण दायित्व 6.69 अरब डॉलर है। इसमें से एक अरब जुलाई में लौटाना है। इधर पर्यटकों का आना भी बहुत कम हो गया है। विदेश काम करने जाने वालों की संख्या सबसे कम हो गई है।

राजपक्षे प्रशासन ने विनाशकारी नीतिगत फैसलों से स्थिति को और खराब कर दिया है। नवंबर 2019 में राष्ट्रपति राजपक्षे की जीत के बाद शुरू की गई व्यापक कर कटौती ने खजाने को तहस-नहस कर दिया है।


मई 2021 में श्रीलंका ने कृषि-रसायनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था, यह कदम श्रीलंका को 100 प्रतिशत जैविक कृषि वाला दुनिया का पहला देश बनाने के लिए उठाया गया था।

यह कृषि के लिए घातक रहा और सरकार अंतत: पीछे हट गई, लेकिन अब उपज बहुत कम हो गई। कई किसानों ने खेती छोड़ दी है।

कृषि रसायन बाजार में लौट आए हैं, पर अब वे बिना सब्सिडी बहुत महंगे हैं। मुद्रा की खूब छपाई हो रही है, जिससे महंगाई और बढ़ रही है। 30 मार्च को अमेरिकी डॉलर 299 श्रीलंकाई रुपये में बिक रहा था।
प्रशासन की अपनी आंतरिक समस्याएं भी खूब हैं।

राष्ट्रपति राजपक्षे ने हाल ही में अपने भाई, वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के चलते दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। जिन मंत्रियों को हटाया गया है, वह सरकार को उखाड़ फेंकने की कसमें खा रहे हैं।
कई महीनों से आव्रजन विभाग के बाहर लंबी कतारें लग रही हैं। लोगों को विदेश जाने के लिए पासपोर्ट चाहिए। अधिक हताश लोग अन्य मार्गों से भागने की कोशिश कर रहे हैं।

22 मार्च को 16 पुरुष, महिलाएं और बच्चे एक नाव से तमिलनाडु पहुंचे हैं। लोग भुखमरी से भाग रहे हैं। उन्हें इससे बुरा समय याद नहीं है। लोग रोज जो कमाते हैं, उसका लगभग तीन-चौथाई भोजन पर खर्च हो जाता है। 


सरकार की अब तक की रणनीति बांग्लादेश, भारत और चीन से अल्पकालिक द्विपक्षीय ऋण लेने की रही है। भारत ने हाल ही में दवाओं, ईंधन और भोजन के लिए श्रीलंका को एक अरब डॉलर का कर्ज दिया है।

इस सप्ताह भारत से और एक अरब डॉलर अतिरिक्त ऋण की मांग की गई है। दो साल तक विरोध के बाद राष्ट्रपति ने इस महीने पुष्टि की है कि वह वित्तीय सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से संपर्क करेंगे। हालांकि, इनमें से कोई भी त्वरित समाधान नहीं है, जिसकी श्रीलंका को अभी सख्त जरूरत है।

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