आतंक का दौर

पहले ही इस बात की आशंका जतायी जा रही थी कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाक कश्मीर में नये सिरे से आतंकवाद के पोषण की नापाक हरकत कर सकता है। वह एक बार फिर हारी हुई लड़ाई को लड़ने की कोशिश कर सकता है। पहले अल्पसंख्यक नागरिकों की टारगेट किलिंग और फिर सेना व सुरक्षा बलों पर हमले इसी कड़ी का हिस्सा है।

शुक्रवार को फिर खबर आई कि जम्मू के सीमावर्ती जिले पुंछ में आतंकवादियों से चल रही मुठभेड़ में एक जेसीओ समेत दो जवान शहीद हो गये। इसी जटिल भौगोलिक क्षेत्र वाले इलाके में सोमवार को हुई मुठभेड़ में एक जेसीओ समेत पांच जवान शहीद हुए थे।

दरअसल, सर्दियों के आने से पहले पाक आतंकवादियों की घुसपैठ करा देना चाहता है ताकि बर्फबारी से पहले अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे सके। बताते हैं कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को खबर मिली है कि पाक अधिकृत कश्मीर में 21 सितंबर को आईएसआई ने आतंकी संगठनों के साथ बैठक करके भारत में टारगेट किलिंग करने को कहा है, जिसमें करीब दो सौ लोगों की लिस्ट बनायी गयी है।

इसमें कुछ राजनीतिक दलों, कुछ विशेष संगठनों, कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिये मुखर लोगों तथा सुरक्षा बलों व सेना के लिये सूचना जुटाने वाले लोगों को निशाना बनाने के लिये कहा है। दरअसल, टारगेट किलिंग बिना घुसपैठ के स्थानीय आतंकवादियों व अप्रशिक्षित लोगों के जरिये भी करायी जा सकती है।

दरअसल, कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने के बाद घाटी में जिस तरह से देश की मुख्यधारा से जुड़ने की ललक दिखायी दी और लोगों ने जिस तरह राष्ट्रीय पर्वों व योजनाओं में भागीदारी शुरू की, वह पाक व उसके पोषित आतंकवादियों को रास नहीं आयी।

अब वे टारगेट किलिंग व आतंक का नया दौर शुरू करके बहुसंख्यक मुस्लिम व अल्पसंख्यक हिंदू-सिखों को बांटने की साजिश कर रहे हैं। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह भ्रम पैदा करने की कोशिश पाक कर रहा है कि जम्मू-कश्मीर अशांत क्षेत्र है।

दरअसल, अपने मंसूबों पर पानी फिरता देख और एलओसी पर सख्ती के चलते घुसपैठ न हो पाने के कारण पाकिस्तान लंबे समय से ड्रोन के जरिये हथियार व नशीले पदार्थ जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों तक पहुंचाता रहा है।

कई बार सुरक्षा बलों द्वारा खदेड़ने के बावजूद ड्रोन के जरिये हथियार व नशे का सामान गिराने में पाक ड्रोन कई बार कामयाब भी हुए हैं। इस बाबत पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह कई बार चिंता जता चुके हैं। दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को भी अवगत करा चुके हैं।

इस संकट को देखते हुए गृह मंत्रालय ने पंजाब की लगी सीमा में पाक घुसपैठ व ड्रोनों के अतिक्रमण को रोकने के लिये बीएसएफ के कार्यक्षेत्र की परिधि को अंदरूनी सीमा में बढ़ाया है। विडंबना है कि इस राष्ट्रीय संकट को नजरअंदाज करके चुनावी मौसम में इसके खिलाफ पंजाब के राजनीतिक दलों ने राजनीति करनी भी शुरू कर दी है।

हमें इस आसन्न संकट की गंभीरता को महसूस करना है कि देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद करने और आतंकवादियों को आर्थिक मदद के लिये ड्रग्स के हथियार को पाक ड्रोन के जरिये इस्तेमाल कर रहा है। निस्संदेह, आतंक के इस नये दौर का जहां कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों व सेना की चौकसी से मुकाबला किया जाना चाहिए, वहीं उन लोगों को भी संरक्षण दिया जाना चाहिए जो टारगेट किलिंग के खिलाफ कश्मीर में सड़कों पर उतरे हैं।

जाहिर सी बात है कि यदि आतंकवादियों की सप्लाई चेन को तोड़ा जायेगा और उनकी स्थानीय आक्सीजन को समाप्त कर दिया जायेगा तो आतंकवादी ज्यादा समय तक नहीं लड़ पायेंगे। जम्मू -कश्मीर के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके वरिष्ठ राजनेता फारूख अब्दुल्ला का वह बयान स्वागत योग्य है कि कुछ भी हो जाये, कश्मीर भारत का हिस्सा था और हमेशा रहेगा। केंद्र सरकार को आतंकवादियों व पाक के खिलाफ मुखर हो रहे नेताओं की आवाज को भी सुनना चाहिए। केंद्र को राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया को भी तेज करने की जरूरत है।

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