नफरत का बोझ

महात्मा ललितसत्य ने अपने शिष्यों के मन में घृणा और नफरत की आग को जलता देख एक दिन कहा कि वे कल से जब भी प्रवचन सुनने आयें तो अपने साथ एक थैले में बड़े कटहल साथ लेकर आयें। उन पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं।

जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने कटहल लेकर आए। अगले दिन सभी कटहल लेकर आए, किसी के पास चार कटहल थे, किसी के पास छह और प्रत्येक पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था, जिससे वे नफरत करते थे।

ललितसत्य ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये कटहल आप अपने साथ रखें। दो-तीन दिनों के बाद शिष्यों ने आपस में एक-दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके कटहल ज्यादा थे, वे बड़े कष्ट में थे। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और कटहल लेकर महात्मा की शरण ली।

महात्मा जी ने पूछा-विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा? शिष्यों ने अपनी आप-बीती सुनाई, कटहलों की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया।

ललितसत्य ने कहा- जब मात्र सात दिनों में ही आपको ये कटहल बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफरत करते हैं, वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, इससे आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी? इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दें।

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