एनजीटी ने बेतवा नदी पर खनन में लगाई रोक, कब आएगी केन और यमुना की बारी ?
– बुंदेलखंड में बेतवा नदी किनारे खनन पर चला एनजीटी का हतौड़ा, केन और यमुना में सरकार कब चलेगा कोड़ा ? ये नदीखोर हैं पर्यावरण का रोड़ा।
– हमीरपुर की करीब 125 मौरम बालू खदानों पर प्रहार,28 खदान चल रही हैं। खदान बन्दी पर 2 अरब रुपए राजस्व का नुकसान होगा।
– हमीरपुर में बेतवा नदी की कुल लंबाई 134 किलोमीटर हैं। वहीं जालौन के उरई में बेतवा का क्षेत्रफल 450 एकड़ हैं।
– बेतवा नदी पर खनन रोक के साथ इसके किनारे का भूभाग नो-डेवलपमेंट जोन घोषित होगा।
– बाँदा की केन में लगभग 20 खदान हैं। पांच वर्ष के लिए इनका पट्टा हैं। वहीं कुछ 6 माह की लीज पर दी गई हैं।
– बाँदा की केन से लगभग 30 करोड़ रॉयल्टी तो हमीरपुर से 2 अरब तो वहीं उरई से करीब 70 करोड़ राजस्व मिलता हैं।
6 सितंबर,बाँदा। चित्रकूट मंडल के चारों ज़िलों में बेतवा नदी पर खनन कार्य प्रतिबंधित किया गया हैं। एनजीटी ने याचिका संख्या 673/2018 में पारित आदेश पर यह रोक लगाई हैं।
एनजीटी ने अपने आदेश में बुंदेलखंड की बेतवा नदी के दोनों किनारों पर 100 मीटर की परिधि में प्रत्येक जनपद के अंदर मौरम खनन के साथ निर्माण कार्य, अवैध कब्जेधारक को बाढ़ में मुआवजा नहीं देने और प्रदूषण गतिविधियों पर रोक लगा दी हैं।
गौरतलब हैं सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग उत्तरप्रदेश झांसी के बेतवा अभियंता महेश्वरी प्रसाद के मुताबिक हाल ही में यह निर्देश एनजीटी की कार्यवाही पर हुए है। उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड में बेतवा नदी के दोनों किनारों पर हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, जालौन क्षेत्र में बालू निकासी पर रोक लगी हैं।
वहीं बेतवा नदी के दोनों तरफ यह 100 मीटर का क्षेत्रफल नो-डेवलपमेंट जोन घोषित होगा। यहां किसी भी प्रकार का निर्माण प्रतिबंधित किया जाएगा।
इसको फ्लड जोन एरिया बनाया जा रहा हैं। उल्लेखनीय यह हैं कि एनजीटी ने जनहित याचिका में यह अहम आदेश पारित किया है। बेतवा नदी में मगरमच्छ व गाहे बगाहे डॉल्फिन मछलियों की आवाजाही भी रहती हैं।
मौरम निकासी से जलचरों पर बेहद दुष्प्रभाव पड़े हैं। खासकर मगरमच्छ प्रजनन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है। बतलाते चले कि मादा मगरमच्छ रेत या मौरम में ही अंडे देती हैं।
बालू उत्खनन से बेतवा,यमुना और केन में मगरमच्छ कम होते जा रहे है। नदियों में हैवी पोकलैंड व लिफ्टर से किया गया खनन नदी के ईको सिस्टम को नष्ट कर रहा है।
एनजीटी ने याचिका संख्या आदेश ओए 673/2028 में कुछ दिन पूर्व यह सख्त निर्देश दिए है ज़िससे पर्यावरण पैरोकार खुश है। वहीं उन्होंने उत्तरप्रदेश सरकार से न्यायिक हस्तक्षेप होने से पहले ही केन,यमुना नदी में भी अवैध खनन व मौरम पट्टे अब रोकने की अपील की हैं।
पर्यावरणविद मानते हैं कि इन नदियों से आवश्यकता से ज्यादा उत्खनन किया जा चुका है। इस खनन ने नदियों का जलप्रवाह, नैसर्गिक बनावट और जलस्तर पर गहरा असर डाला हैं।
बेतवा में रोक तो केन और यमुना पर कब होगी कार्यवाही
बुंदेलखंड में बेतवा नदी पर एनजीटी के इस आदेश से जहां हमीरपुर के मौरम ठेकेदारों में खलबली हैं वहीं बाँदा में केन-यमुना पर खनन व्यापार करने वाले रसूखदार अब सकते में है।
उन्हें भय हैं कि न्यायालय केन व यमुना पर हो रहे मौरम खनन में रोक न लगा दे। क्योंकि बेतवा जैसी कार्यवाही से यहां भी दबाव बढ़ेगा वहीं केन और यमुना से मौरम डिमांड बढ़ जाएगी।
बड़ी बात यह हैं कि केन नदी में अब मौरम बहुत कम है। पांच साल की मौरम खदानों पर मौरम ठेकेदार बेपरवाह होकर हैवी मशीनों के जरिये एक ही साल के खनन से खदान खाली कर दे रहा है।
बालू खत्म होने पर खदान सरेंडर करता हैं या क़िस्त न देने पर ब्लैकलिस्ट हो जाता हैं। हमीरपुर से खनिज विभाग को वार्षिक करीब 2 अरब 22 करोड़ 51 लाख रुपये राजस्व मिलता हैं। यह बाँदा में 30 करोड़ के आसपास है वहीं जालौन से 70 करोड़ रायल्टी मिल रही हैं।
बाहरी खनन कम्पनियों से स्थानीय माफिया रुपया कमा रहे
बाँदा,हमीरपुर, झांसी, जालौन, ललितपुर में मौरम करोबारी ज्यादातर बाहरी राज्यों से है। बाँदा में मध्यप्रदेश के सबसे ज्यादा खनन ठेकेदार हैं।
यह भोपाल,भिंड मुरैना,ग्वालियर, इंदौर,सतना, होशंगाबाद-पिपरिया वहीं बिहार और यूपी के बनारस, कानपुर, दिल्ली-गाजियाबाद,आगरा,गोरखपुर,अलीगढ़, लखनऊ,चित्रकूट और बाँदा के हैं।
यह मौरम ठेकेदार स्थानीय राजनीतिक संपर्क के लोगों व मजबूत पुराने मौरम कारोबार से जुड़े परिवार के साथ मध्यस्थता करके धंधा कर रहे हैं।
मौरम कम्पनियों की असली कमाई लोकल चलते पुर्जे ही कमाते व खाते है। बाँदा के पूर्व व वर्तमान विधायक और सांसद पुत्र तक इन मौरम खदानों में शामिल है।
वहीं विधायक के गुर्गे और छुटभैये नेता भी डंप की आड़ में नम्बर दो के ट्रैक्टर, ट्रक चलवा रहे है। सफेदपोश लोग अपने भाइयों, रिश्तेदारों व करीबी व्यक्ति के नाम पट्टा कराते हैं और बेतरतीब माल लाल सोने की मौरम खदानों से अर्जित कर रहे है।
यही अकूत दौलत चुनाव में टिकट व प्रचार तंत्र का खर्चा उठाती हैं। बाँदा प्रशासन मौरम कारोबार के चलते शासन से सरकार व माफिया की मंशा अनुरूप पोस्ट किया जाता हैं। प्रशासन की तगड़ी लाइजनिंग से नदियां मृत हो रही हैं।
यूपी-एमपी बुंदेलखंड से करीब 1000 करोड़ रुपया वार्षिक राजस्व सरकारी खजाने में मौरम खनन से जमा होता हैं। वहीं खनिज न्यास फाउंडेशन के तहत जमा धनराशि का रुपया भी खनन प्रभावित गांव के विकास पर खर्च होना दिवास्वप्न हैं।
यूपी खनिज परिहार नियमावली कानून व खनिज डीड की शर्तें यहां माफिया के लिए तब तक लागू नहीं होती जबतक एनजीटी या सर्वोच्च / उच्च न्यायालय का शिकंजा नहीं कसा जाता है। यह एक संघठित व्हाइट कालर अपराध हैं जो नदियों को खोखला कर रहा है।