लहर-दर-लहर

जो लोग बेफिक्र होकर घूमने लगे थे कि कोरोना की दूसरी लहर चली गई है, उन्हें मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी उस बयान को सुनना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर खत्म नहीं हुई है। यह ठीक है कि मई में प्रतिदिन लाखों लोगों के संक्रमण के आंकड़े अब बीती बात है लेकिन रोज तीस-चालीस हजार के बीच संक्रमण के आंकड़े आना हमारी चिंता का विषय होना चाहिए।

देश के बारह राज्यों के 44 जिलों में कोरोना वायरस की संक्रमण दर दस फीसदी से अधिक बनी हुई है। इतना ही नहीं, संक्रमण दर में वृद्धि दर्शाने वाली आर वैल्यू केरल व पहाड़ी राज्यों, मसलन हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर व पूर्वोत्तर में एक से ज्यादा बनी हुई है। ऐसे में सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या ये तीसरी लहर की दस्तक है? केरल, महाराष्ट्र व दिल्ली में लगातार बढ़ते संक्रमण मामलों के बाद ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं।

अमेरिका, यूरोप समेत चीन में तीसरी लहर की दस्तक के बाद भी ऐसी आशंकाएं बढ़ी हैं। ओलंपिक का आयोजन कर रहे जापान में भी संक्रमण में तेजी को देखते हुए आपातकाल लगाना पड़ा है। कोरोना संक्रमण के मूल स्रोत वुहान में फिर संक्रमण के बाद चीन ने एक करोड़ लोगों की जांच की बात कही है।

अमेरिका में पचास फीसदी लोगों के टीकाकरण के बाद भी संक्रमण तेजी से बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर संक्रमित होने वालों में वे लोग हैं, जिन्होंने नागरिक आजादी की दुहाई देकर टीके नहीं लगवाये। विडंबना ही है कि एक ओर दुनिया में गरीब मुल्कों को टीके नसीब नहीं हैं और विकसित देशों के लोग टीके लगवाने से गुरेज कर रहे हैं।

भारत में भी जुलाई के अंत तक ग्यारह फीसदी आबादी को दोनों टीके लगने के बावजूद चिंता यह है कि क्या देश साल के अंत तक अपनी 94 करोड़ वयस्क आबादी को टीका लगा पायेगा? भले ही सीरो सर्वे ने उम्मीद जगाई है लेकिन देश में चालीस करोड़ लोग संक्रमण की दृष्टि से संवेदनशील बने हुए हैं।

यह स्वास्थ्य विज्ञानियों के लिये भी शोध का विषय है कि प्राकृतिक रूप से, टीकाकरण से व कोरोना संक्रमण के बाद कितने लोगों की एंटी बॉडीज विकसित हुई लेकिन आसन्न तीसरी लहर को हकीकत मानते हुए सरकार को निगरानी बढ़ाने और बचाव के उपायों का सख्ती से पालन कराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

वहीं छीछालेदर राजनीति से मुक्त होकर सरकार व विपक्षी दलों को टीकाकरण अभियान को तेज करने में सहयोग देने की जरूरत है। सरकारी तंत्र की अपनी सीमाएं और अज्ञानतावश टीका लगाने से मना करने वाले लोगों को समझाना भी एक चुनौती है। सरकार ने बीते माह बड़ी संख्या में टीके की डोज बुक करायी हैं, अत: टीकों की कमी का संकट पैदा नहीं होना चाहिए।

लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिये टीकाकरण की जो गति देश में होनी चाहिए, उसे अभी हम हासिल नहीं कर पाये हैं। चिंता अभी यह भी है कि यदि डेल्टा वेरिएंट के बाद डेल्टा प्लस या अन्य कोई वेरिएंट पैर पसारता है तो क्या मौजूदा वैक्सीन उस पर कारगर होगी? बहरहाल, इसके बावजूद हमें मास्क पहनने, सुरक्षित शारीरिक दूरी व साफ-सफाई पर तो विशेष ध्यान देना ही होगा। यह ठीक है कि दूसरी लहर के पीक खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सरकारों ने प्रतिबंध या तो हटा लिये हैं या कम कर दिये हैं।

कुछ राज्यों ने स्कूल भी खोल दिये हैं। निस्संदेह, जान के साथ जहान को बचाने की भी जरूरत है। पिछले डेढ़ साल में तमाम कामधंधों की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि अब हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता। लहरों का सिलसिला एक-आध वर्ष और चलने की आशंका डब्ल्यूएचओ जता रहा है। लेकिन छूट का मतलब लापरवाही कदापि नहीं है।

अनावश्यक रूप से भीड़भाड़ व सार्वजनिक आयोजनों पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए। राजनीतिक दलों से भी जिम्मेदार व्यवहार की उम्मीद की जानी चाहिए कि वे चुनाव के मकसद से बड़े आयोजन करने से बचेंगे। कार्यपालिका भी जिम्मेदार बने ताकि न्यायपालिका को बार-बार उलाहने न देने पड़ें।

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