बदलाव के लक्ष्य

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में जिस पैमाने पर बदलाव किये गये, उसने राजनीतिक पंडितों व आम जनता को चौंकाया ही है। दिग्गज मंत्रियों की विदाई और नये चेहरों को शामिल करने की कई तरह से व्याख्या की जा रही है। जहां सहयोगी दलों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई, वहीं अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के राजनीतिक समीकरणों को भी तरजीह दी गई है।

दूसरी ओर कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से निपटने में जो नाकामी सामने आई थी, उसके चलते स्वास्थ्य मंत्री की विदाई हुई। जाहिर है यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि जो मंत्रिमंडल बेहतर ढंग से नहीं संभाल पाएंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा और जो काम करेंगे उन्हें प्रोन्नत किया जायेगा।

निस्संदेह देश कोरोना संकट से जूझ रहा है और यह चुनौती रोजगार व आर्थिक स्तर पर भी है। इस बदलाव से यह संकेत देने का प्रयास किया गया कि मंत्रालय स्तर पर शिथिलता बर्दाश्त नहीं होगी। कहीं न कहीं यह जनता का विश्वास हासिल करने का भी प्रयास है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को समझने वाले जानते हैं कि वे राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल विस्तार करके उस राज्य के महत्वपूर्ण होने का संदेश जनता को देना चाहते हैं।

उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सात सांसदों को मंत्रिपद दिया जाना इसी कड़ी का विस्तार है। इसमें जातीय समीकरणों को भी साधने की कोशिश हुई है। यह जताने का प्रयास किया गया है कि समाज के हर वर्ग व राज्य को मंत्रिमंडल में सम्मान दिया गया है।

वहीं मंत्रियों को संदेश दिया गया है कि जो बेहतर काम करेगा उसे सम्मान मिलेगा, मसलन अनुराग ठाकुर व हरदीप सिंह पुरी को पदोन्नति इसका उदाहरण है। वहीं नई शिक्षा नीति को मुख्य चर्चा में न ला पाने तथा कोरोना दौर में परीक्षा संकट से बेहतर ढंग से न निपट पाने पर शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की विदाई बताती है कि प्रधानमंत्री मंत्रालय की कारगुजारी से खुश नहीं थे।

वहीं घटक दलों जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी और अपना दल को मंत्रिमंडल में जगह देकर राजग की सहभागिता की सार्थकता को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है, जो चुनावी रणनीति की भी जरूरत थी। वहीं जातीय समीकरणों को साधकर समरसता का संदेश दिया गया तो मंत्रिमंडल में ग्यारह महिलाओं को शामिल करके लैंगिक समानता का निष्कर्ष देने का प्रयास किया गया।

दूसरी ओर युवा चेहरों को शामिल करके मंत्रिमंडल को ऊर्जावान दर्शाने का प्रयास किया गया। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मंत्रियों की औसत आयु साठ से कम हो गई, वहीं चौदह मंत्री पचास साल से कम उम्र के हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के अब तीन ही साल बाकी हैं और उत्तर प्रदेश समेत कई महत्वपूर्ण राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं।

वहीं 2024 के लिये तीसरे मोर्चे की हालिया सक्रियता के जवाब में पार्टी भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है, जिसकी झलक मंत्रिमंडल विस्तार में नजर आती है। ऐसे में जहां सुशासन का संकेत देना है, वहीं यह भी बताना है कि कार्य प्रदर्शन की कसौटी पर खरे न उतरने वाले मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने में देरी नहीं लगेगी।

जाहिर है मोदी सरकार पर पिछले आम चुनावों में किये गये वादों को इन तीन साल में पूरा करने का दबाव रहेगा, जिसके लिये मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या बढ़ाकर जवाबदेही सुनिश्चित करने का भी प्रयास हुआ है। कह सकते हैं कि एक तीर से कई निशाने साधे गये हैं। सरकार जानती है कि 2024 के संसदीय चुनाव जीतने के लिये पार्टी को उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बढ़त लेनी होगी।

हाल के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सारे संसाधन झोंकने के बाद मिली हार के सबक भी पार्टी के सामने होंगे। यह वजह है कि यह जम्बो मंत्रिमंडल सामने आया और बारह बहुचर्चित मंत्रियों को हटाया गया। बताते हैं कि जून में सभी मंत्रालयों की समीक्षा करने के बाद मंत्रियों को हटाने और प्रोन्नत करने की रणनीति बनी थी।

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