श्रद्धा में विश्वास

एक बार नारदजी ने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे तपस्वी तप कर रहा है। तपस्वी नारदजी के दिव्य प्रभाव से जाग गया और उन्हें प्रणाम करके पूछा कि उसे प्रभु के दर्शन कब होंगे। नारदजी ने बताया कि इस वटवृक्ष पर जितनी छोटी-बड़ी टहनियां हैं, उतने ही वर्ष उसे और लगेंगे। नारदजी की बात सुनकर तपस्वी बेहद निराश हुआ।

उसने सोचा कि इतने वर्ष उसने घर-गृहस्थी में रहकर भक्ति की होती और पुण्य कमाए होते तो उसे ज्यादा फल मिलता। नारदजी आगे चलकर एक ऐसे जंगल में पहुंचे, जहां एक और तपस्वी तप कर रहा था। वह पीपल के वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। नारदजी के दिव्य प्रभाव से वह उठ खड़ा हुआ और उसने भी प्रभु दर्शन में लगने वाले समय के बारे में पूछा। नारदजी ने कहा कि इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं, उतने ही वर्ष अभी और लगेंगे।

हाथ जोड़कर खड़े उस तपस्वी ने जैसे ही यह सुना, वह खुशी से झूम उठा और बार-बार यह कहकर नृत्य करने लगा कि प्रभु उसे दर्शन देंगे। नारदजी मन ही मन सोच रहे थे कि इन दोनों तपस्वियों में कितना अंतर है। एक को अपने तप पर ही संदेह है। वह मोह से अभी तक उबर नहीं सका और दूसरे को ईश्वर पर इतना विश्वास है कि वह वर्षों प्रतीक्षा के लिए तैयार है।

तभी वहां अचानक अलौकिक प्रकाश फैल गया और प्रभु प्रकट होकर बोले, ‘वत्स! नारद ने जो कुछ बताया वह सही था लेकिन तुम्हारी श्रद्धा और दृढ़ विश्वास में इतनी गहराई है कि मुझे अभी और यहीं प्रकट होना पड़ा।’

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