तलवार की धार पर पाकिस्तान

पाकिस्तान इन दिनों तलवार की धार पर है। हालात क्या करवट लेंगे, कहना बहुत मुश्किल है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान चर्चा के केंद्र में चल रहे हैं। पहली बार इस तरीके से किसी नागरिक नेता ने पाकिस्तान की फौज और रियासत को चुनौती दी है। वर्तमान रियासत और फौज सकते में हैं, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि इस चुनौती को किस तरह संभाला जाए।

पहले यह हुआ करता था कि जैसे ही कोई राजनेता फौज के खिलाफ बातें करता था या फौज को चुनौती देता था, उसे दूध से जैसे मक्खी को फेंका जाता है, वैसे फेंक दिया जाता था। कई बार बिल्कुल रातोंरात फेंक दिया जाता था, तो कई बार घेरे में लेकर खत्म किया जाता था।

नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो इत्यादि नागरिक नेताओं के साथ यही हुआ था। विरोधी नेता कद्दावर न हो, तो पकड़कर सीधे जेल में डाल दिया जाता है। जैसे जावेद हाशिमी नाम के एक नेता थे, उन्होंने फौज के खिलाफ जब कुछ कहा, तो उन्हें 25 साल के लिए जेल में डाल दिया गया था मुशर्रफ के दौर में। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। 

पहली बार हुआ है कि इमरान खान पर हाथ डालने से फौज एक प्रकार से डर रही है। फौज को डर है कि इमरान के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाया या उन्हें जेल में डाल दिया, तो कहीं ऐसा उपद्रव न हो जाए कि जिसे फौज संभाल न पाए। उपद्रव केवल सड़कों पर नहीं, ज्यादा बड़ा खौफ यह है कि फौज के अंदर भी दरारें आ गई हैं।

इमरान खान ने कहा भी है कि फौज का आला कमान मेरे खिलाफ है, लेकिन फौज के मध्य अफसर हैं, मेरे साथ हैं। जनरल के परिवार भी मेरे हक में हैं। फौज को लग रहा है कि उसके कड़े कदमों से कहीं ‘अरब स्प्रींग’ या विद्रोह जैसी स्थिति न पैदा हो जाए। उपद्रव हुआ, तो संभालने के लिए गोलियां चलानी पड़ेंगी, इसमें दो समस्याएं हैं।

इमरान को खैबर-पख्तुनवा प्रांत से भी समर्थन मिल रहा है, लेकिन सबसे प्रभावी समर्थन पंजाब से आ रहा है। गौर कीजिए, पाकिस्तान में बलूच अगर रियासत के खिलाफ खड़े हों, तो उन्हें गोलियों से भून दिया जाता है। सिंधियों और पख्तूनों को भी मारपीट कर शांत कर दिया जाता है, लेकिन पंजाब में ऐसी ज्यादती करना मुश्किल हो जाता है। इमरान खान के साथ आम लोगों का समर्थन दिख रहा है।

उच्च-मध्य वर्ग और मध्यवर्ग का भी समर्थन उन्हें मिल रहा है, इन वर्गों के लोग फौज में हैं, नौकरशाही में हैं, इंजीनियर, डॉक्टर, कारोबारी हैं। अपने ही लोगों पर गोली चलाना या जेल में डाल देना बहुत मुश्किल काम है। इससे उपद्रव की स्थिति और गंभीर हो सकती है। यह आशंका लगातार कायम है कि फौज तख्ता पलट दे, खुद देश की कमान संभाल ले। अभी फौज के जो प्रमुख हैं, वह छह साल से कमान संभाले हुए हैं। वह 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।

पाकिस्तान में अब अगर फौज तख्ता पलटे, तो कोई एक डिक्टेटर या तानाशाह नहीं होगा। एक शब्द प्रचलित है जुंटा, वास्तव में हुंटा शब्द सही है। इस हुंटा में पांच-छह वरिष्ठ जनरल होंगे, जो सत्ता चलाएंगे। इसमें अपनी दुश्वारियां हैं, शासन चलाना आसान नहीं होगा। अब पाकिस्तान में कोई एक जनरल भी सत्ता संभाल ले, तो उसके लिए संभालना मुश्किल होगा। 

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