एक गैर-गांधी अध्यक्ष से बड़ी उम्मीदें
वृद्ध मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए भारी-भरकम कांग्रेस में सामंजस्य और व्यवस्था बहाल करना शीर्ष पद के लिए चुनाव जीतने से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण और कठिन होगा। पार्टी निराशा से गुजरी है और बदहाली की स्थिति में है, उसे एक बड़ी शल्य क्रिया की जरूरत है, लेकिन इसका कमजोर स्वास्थ्य अभी शल्य क्रिया की इजाजत नहीं देता है।
लगभग एक चौथाई सदी के समय में वह पार्टी के पहले गैर-गांधी अध्यक्ष हैं। अब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्हें अपने वरिष्ठ सहयोगियों, खास तौर पर जी-3 (गांधी परिवार) के वफादार और जी-23 नेताओं के भी सहयोग की जरूरत पड़ेगी। उन्हें अपेक्षाकृत युवा और करिश्माई नेता शशि थरूर के समर्थकों के साथ भी सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। खड़गे के समर्थक भी अब उनसे उम्मीद लगाएंगे। अब नए पार्टी अध्यक्ष पर संगठनात्मक सुधारों के नाम पर निजी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के इरादे वाले नेताओं का दबाव होगा। उदाहरण के लिए, 2020 में सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले जी-23 के कई हस्ताक्षरकर्ता यथास्थिति बनाए रखने या ताकत में अपना हिस्सा लेकर मान गए थे। नतीजतन, इन नाराज वरिष्ठों ने खुद को कभी भी उस कॉकस या गुट के रूप में संगठित नहीं किया, जिन्हें पार्टी ने पिछली बड़ी चुनावी हार के बाद देखा था।
साल 1967 और 1969 में भी कई जगह चुनावी हार के बाद युवा तुर्क उपनाम से पहचाने जाने वाले नेताओं का एक समूह बन गया था। अगर हम कुछ नाम लेना चाहें, तो उनमें चंद्रशेखर, मोहन धारिया, कृष्णकांत और चंद्रजीत यादव इत्यादि प्रमुख थे। वे कुछ राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों के लिए अपने साझा नजरिये के साथ परस्पर जुड़ गए थे, जबकि जी-23 समूह के साथ कतई ऐसा नहीं है, जिसे मीडिया ने किसी भी बौद्धिक बैठक की तुलना में कहीं अधिक प्रचारित किया।
ऐसे नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की उम्मीदवारी के ईद-गिर्द लामबंद हो गए और शशि थरूर को एक तरह से अलग-थलग छोड़ दिया। ये नेता अब सामूहिक रूप से या व्यक्तिगत रूप से पार्टी के प्रभावशाली मंचों पर अपने लिए जगह तलाश कर रहे हैं। नई कांग्रेस कार्यसमिति (12 निर्वाचित और 11 मनोनीत स्थान) और अन्य संगठनात्मक मंचों पर ये नेता अपने लिए ठौर खोजेंगे। विशेष रूप से संसदीय बोर्ड और उस केंद्रीय चुनाव समिति में उन्हें पद की तलाश होगी, जो संसदीय/विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता के सांविधानिक पद के लिए कोशिशें होंगी। कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष को एक व्यक्ति-एक पद को ध्यान में रखते हुए फैसला करना है।
शशि थरूर वास्तव में मल्लिकार्जुन खड़गे की व्यापक स्वीकार्यता के मुकाबले पिछड़ गए। शशि थरूर शानदार वक्ता हैं, उनका अकादमिक रिकॉर्ड बेहतरीन है, लेकिन मरणासन्न पार्टी को पुनर्जीवित करने और फिर सक्रिय करने के लिए विचार कौशल के बावजूद उनमें संगठनात्मक अनुभव की कमी रह गई। कांग्रेस में पिछली बार जब अध्यक्ष पद के लिए संघर्ष हुआ था, तब अनुभवी नेता जितेंद्र प्रसाद 7,542 में से सिर्फ 94 वोट हासिल कर सके थे। हालांकि, जितेंद्र प्रसाद के 100 से कम मतों की तुलना शशि थरूर के 1072 मतों से करना गैर-वाजिब होगा, क्योंकि पिछले चुनाव में तो मतपत्र पर दूसरा नाम सोनिया गांधी का था।