तमिल महाकाव्य
कल्कि कृष्णमूर्ति के महाकाव्य पर आधारित फिल्म पोन्नियिन सेल्वन (पीएस-1) ने दक्षिण भारतीय सूबे तमिलनाडु में हलचल मचा दी है। इसका हिंदी संस्करण भी उत्तर भारत में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है। रुझान बता रहे हैं कि बाहुबली को पछाड़कर यह सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन सकती है। बाहुबली भी एक तेलुगु फिल्म थी, जिसने कुछ साल पहले दक्षिण सिनेमा में एक नया रिकॉर्ड बनाया था। दिलचस्प यह भी है कि पीएस-1 बनाने की प्रेरणा निर्देशक मणिरत्नम को बाहुबली से ही मिली, और वह इसे खुलेआम स्वीकार भी करते हैं।
पोन्नियिन सेल्वन पर फिल्म बनाने का सपना कई बड़े अभिनेताओं और निर्देशकों ने देखा, लेकिन अब तक यह साकार नहीं हो सका था, क्योंकि इस मध्यकालीन रचना को परदे पर उतारने के लिए भगीरथ प्रयास की दरकार थी। पूर्व मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन से लेकर कमल हासन व कई अन्य छोटे-बड़े निर्देशकों ने 2,500 पन्नों के इस चलचित्र-सरीखे महाकाव्य को रुपहले परदे पर उतारने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इसीलिए, कुछ निर्देशकों ने इस महाकाव्य के पात्रों को अपने फिल्म में शामिल किया, जैसे अप्रैल, 1999 में रिलीज हुई सुपरस्टार रजनीकांत अभिनीत फिल्म पद्यप्पा में मुख्य अभिनेत्री के साथ-साथ एक अमीर खलनायिका भी है, जो हीरो से बदला लेने की कोशिश करती रहती है।
बहरहाल, तमिलनाडु के बाहर और तमिल साहित्य से अपरिचित लोगों के लिए पोन्नियिन सेल्वन बेशक बाहुबली या उस जैसी फिल्मों की तरह रोमांचक हो और अपने सेट, ग्राफिक्स, विजुअल इफेक्ट्स आदि के कारण सिल्वर स्क्रीन पर कब्जा कर ले, मगर तमिलों के लिए पोन्नियिन सेल्वन जाना-पहचाना नाम है। यहां का कोई भी आदमी, जो थोड़ा-बहुत भी साक्षर है, उसने इसे जरूर पढ़ा होगा। यह उन चंद रचनाओं में एक है, जिन पर खूब चर्चा होती रही है। इसे कल्कि नामक साप्ताहिक पत्रिका के संस्थापक-संपादक कल्कि कृष्णमूर्ति ने 1950 के दशक में धारावाहिक रूप में छापना शुरू किया था, जिसके बाद यह पत्रिका खासा लोकप्रिय हो गई। तब इस अद्भुत लेखन को पढ़ने के लिए पत्रिका के नए अंक का हर कोई इंतजार करता था।
पोन्नियिन सेल्वन चोलों की कहानी है, जिन्होंने दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर राज किया। एक समय था, जब उन्होंने श्रीलंका जैसे समुद्र पार के पड़ोसी देश को भी जीत लिया था। उनके पास इस इलाके की सबसे बड़ी व शुरुआती नौसैनिक शक्तियां थीं और इंडोनेशिया सहित कई देशों तक उनका व्यापार फैला था। हालांकि, इस महाकाव्य के पात्र वास्तविक हैं, पर इसमें कई काल्पनिक आख्यान भी हैं। बावजूद इसके, कल्कि कृष्णमूर्ति का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोला। यह वह दौर था, जब टेलीविजन जैसे दृश्य-माध्यम नहीं थे। सिर्फ हाथ से तैयार रेखाचित्र प्रभावी माने जाते थे। मगर इस धारावाहिक लेखन में शब्दों को इस तरीके से बुना गया था कि उसे हर तरफ से प्रशंसा मिली।