ई-वाहन सुरक्षा

तेलंगाना के सिकंदराबाद में सोमवार देर रात एक इलेक्ट्रिक व्हीकल शोरूम में लगी आग से आठ लोगों की दर्दनाक मौत की घटना ने ऐसे वाहनों की यांत्रिकी और प्रशासनिक लापरवाही, दोनों को सवालों के घेरे में ला दिया है। प्रशासनिक लापरवाही तो आपराधिक स्तर की है, क्योंकि प्रारंभिक ब्योरों के मुताबिक, ई-बाइक का शोरूम रूबी प्राइड लग्जरी होटल के भूतल में चल रहा था।

दुर्घटना के वक्त होटल में कई लोग ठहरे हुए थे। चूंकि यह होटल स्टेशन से सटा हुआ है, इसलिए हादसे के शिकार हुए ज्यादातर लोग बाहरी बताए जाते हैं। जाहिर है, मृतकों के परिजनों व घायलों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से मुआवजे की घोषणा कर दी गई है, जांच के आदेश का कर्मकांड भी पूरा हो गया है।

लेकिन असली सवाल यह है कि इस किस्म के हादसों को रोकने के लिए प्रशासनिक तंत्र अब कितनी ईमानदारी बरतेगा? अगर पिछली घटनाओं से कोई सबक सीखा गया होता, तो क्या एक होटल के नीचे ऐसे शो-रूम चलाने की इजाजत मिली होती? और अगर वह गैर-कानूनी रूप से चल रहा था, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी किसकी थी?  

सिकंदराबाद हादसे का जो सबसे गंभीर पहलू है, वह ई-वाहनों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ महीनों के भीतर ई-वाहनों में आग लगने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अप्रैल में तमिलनाडु में एक ऐसी ही घटना घटी थी, जिसमें ई-बाइक की बैटरी चार्ज करने के दौरान लगी आग में पूरा शो-रूम जलकर राख हो गया था।

इसलिए परिवहन मंत्रालय को अपनी तरफ से सिकंदराबाद हादसे की जांच करानी चाहिए। इस संदर्भ में चिंता की बात यह है कि नामचीन कंपनियों के ई-वाहनों में आग लगने की घटनाएं सामने आई हैं। पर्यावरण पर बढ़ते खतरों, प्रदूषण और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण महानगरों व बड़़े शहरों का भविष्य ई-वाहनों पर निर्भर करेगा। इनकी तरफ आम लोगों का रुझान बढ़ना स्वाभाविक है, फिर खुद सरकार ऐसे वाहनों को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित कर रही है। 19 मार्च तक देश में 10.6 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों का पंजीकरण हो चुका था। ऐसे में, जरूरी है कि इनकी यांत्रिकी में त्रुटि संबंधी शंकाओं को पूरी तरह दूर किया जाए। 
तेलंगाना की ताजा घटना सरकारों के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि आवासीय परिसरों के आस-पास चलने वाली व्यावसायिक गतिविधियों की निगरानी किस कदर जरूरी है। हालांकि, यह वारदात सामाजिक उदासीनता का भी गंभीर उदाहरण है।

आखिर जब कोई गैर-कानूनी काम या स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक गतिविधि हमारे आस-पास शुरू होती है, तब बतौर नागरिक हम प्रशासनिक अमले की कितनी मदद करते हैं? मौजूदा दौर में शायद ही कोई मुहल्ला या इलाका होगा, जहां के लोग किसी व्यवसाय की प्रकृति और वैधानिक स्थिति से पूरी तरह गाफिल हों, लेकिन नागरिक कर्तव्यों के प्रति बढ़ती उदासीनता ने पिछले कुछ वर्षों में मुनाफाखोर तत्वों के हौसले बुलंद किए हैं।

तंत्र में पैठे भ्रष्ट तत्वों के साथ मिलकर वे धड़ल्ले से गैर-कानूनी कारोबार कर रहे हैं। कोई भी व्यवस्था सिर्फ कायदे-कानून बना देने से प्रभावी नहीं होती, वह अधिकार चेता नागरिकों की बदौलत ही सफल होती है। तरक्की की बुलंदी पर पहुंचने के लिए देश को इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ सजग नागरिक-संस्कृति की भी दरकार है। तभी सिकंदराबाद जैसे हादसों को हम टाल सकेंगे। 

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