धूमधाम से मनी यतीन्द्रनाथ मुखर्जी उर्फ बाघा जतीन की पुण्यतिथि
हमीरपुर। आजादी केअमृत महोत्सव वर्ष के मद्दे़नजर वर्णिता संस्था के तत्वावधान मे विमर्श विविधा के अन्तर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत भारत के क्रातिकारी आन्दोलन का एक बेजोड़ पुरोधा यतीन्द्रनाथ मुखर्जी उर्फ बाघा जतीन की पुण्यतिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये कहा कि बाघा जतीन सही अर्थाे में मां भारती के एक अप्रतिम योद्धा थे, जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, इनके पिता उमेश्चन्द्र और मा शरत शशि थी, जो बंगाली थी, ये बहुत बलशाली थे, इनके बचपन मे ही इनके पिता नहीं रहे, इनकी परवरिश और प्रगति मे बडी बहन विनोदबाला का बडा सहयोग रहा, इनकी शिक्षा इन्टर तक रही, एक बार जंगल से गुजरते हुए इनकी शेर से मुठभेड़ हो गयी, यतीन्द्र ने हंसिए से उसे मार दिया, तबसे ये बाघा जतीन के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
ये सरकारी नौकरी करते थे किंतु दिल देश का था, ये देशभक्ति से आपूरित थे। इनके तीन संतानें थी, किन्तु गृहस्थ जीवन मे लिप्त नहीं हुये, ये शीघ्र ही क्रातिकारी समितियों और संगठन से जुड गये, चारुचन्द्र बोस, वीरेंद्र नाथ दत्त, चित्त प्रियरे चैधरी और भोलानाथ चटर्जी नामक चार ऐसे इनके क्रांतिकारी साथी थे, जो पूरी तरह सरफरोश थे, ये चारों जतीन के चार हाथ थे, जतीन अपने साथियों के साथ क्रातिकारी गतिविधियों को अंजाम दे चुके थे, मेवरिक नामक जर्मन जहाज से अस्त्र शस्त्र उतारने की जिम्मेदारी जतीन की थी।
ये बालासोर मे मित्रों संग साधु के भेष मे रहते थे, पुलिस को इन सभी की पहले से तलाश थी, पुलिस ने इन सभी को मालदीह गाव मे घेर लिया, दोनों ओर से फायरिंग हुई, जतीन सहित पाचों साथियों मे चित्त प्रिय शहीद हो गये थे, दूसरे दिन 10 सितंबर 1915 को घायल जतीन भी बलिदानी बन गये, नीरेंद्र और मनोरंजन को फासी दे गयी, शेष बचे ज्योतिष चन्द्र पाल को 14 वर्ष के काले पानी की सजा मिली।
इस तरह से यह कहा जा सकता है कि इन सरफरोशो के अनुदाय को भुलाया नही जा सकता है, कार्यक्रम में अशोक अवस्थी, रमेशचंद्र गुप्ता, चित्रासु खरे, राधारमण गुप्ता, राजकुमार गुप्ता और अनन्तराम आदि शामिल थे।