मुंह छिपाने की नौबत
नैन्सी पेलोसी ताइवान का दौरा पूरा कर दक्षिण कोरिया पहुंच चुकी हैं। उनकी ताइपे यात्रा को लेकर माहौल जितना गरम था, अब उतनी ही शांति है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ‘प्लेइंग विद द फायर’ (आग से खेलना) जैसे शब्दों से यह आशंका जताई गई थी कि चीन इस दौरे के खिलाफ अमेरिका से पारंपरिक जंग की शुरुआत कर सकता है। उसने ताइवान के आसपास युद्धपोत भी तैनात कर दिए थे।
बावजूद इसके पेलोसी मंगलवार को ताइवान पहुंचीं और बुधवार को वहां से विदा हो गईं। पेलोसी पिछले ढाई दशक में ताइवान पहुंचने वाली अमेरिका की सबसे बड़ी नेता हैं।
प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष होने के नाते उनका कद राष्ट्रपति व उप-राष्ट्रपति के बाद सबसे बड़ा है। देखा जाए, तो उनका यह दौरा अप्रत्याशित था। अभी अमेरिका, चीन और ताइवान, तीनों देश अपनी-अपनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा और खाद्यान्न संकट के साथ-साथ कमजोर होती अर्थव्यवस्था और कोविड दुष्प्रभाव इन सभी देशों के लिए बड़ी समस्या है।
इसके अलावा, अमेरिका जहां बढ़ती महंगाई दर (आठ फीसदी) से भी मुकाबिल है, तो चीन धीमी विकास दर (अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस साल 3.3 फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया है) से उबरना चाहता है। ऐसे में, पेलोसी का ताइवान जाना बहुत आवश्यक नहीं था।
दरअसल, इस दौरे को लेकर तनाव तब बढ़ा, जब एक ‘वर्चुअल मीटिंग’ में शी जिनपिंग ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से कहा कि वह आग से खेल रहे हैं।
जब कोई राष्ट्रपति ऐसे शब्दों का प्रयोग अपने समकक्ष के साथ करता है, तो कूटनीतिक अर्थों में इसे युद्ध की भाषा माना जाता है। बाद में इन्हीं शब्दों को चीन के कई अन्य नेताओं ने भी दोहराया। आखिर उन्होंने पेलोसी के दौरे को इतनी अहमियत क्यों दी?
दरअसल, प्रथम चीन-जापान युद्ध का अंत 1895 में जिस शिमोनोस्की समझौते से हुआ था, उसने ताइवान को जापान के हवाले कर दिया था। यह चीन के लिए लज्जा की बात मानी गई, क्योंकि तब तक वह ताइवान को अपने अधीन करने की योजना बना चुका था।
इस बात की खटास चीनियों के मन में इतनी गहरी है कि आज भी वहां देशद्रोही या गद्दार को लु हुं चेंग (चीन का अंतिम शाही राजवंश किंग का कूटनीतिज्ञ और चीनी नेता) कहा जाता है, जिन्होंने शिमोनोस्की समझौता किया था। यह शब्द उतना ही भयावह है, जैसे अपने यहां जयचंद। चूंकि ताइवान को चीन अब भी अपना हिस्सा मानता है, इसलिए पेलोसी की यात्रा उसे नागवार गुजरी।
अब तमाम धमकी के बावजूद पेलोसी ताइवान से सुरक्षित विदा हो चुकी हैं। हवाई व समुद्री मार्ग बंद करने का चीन का दावा भी खोखला नजर आया। लिहाजा शी जिनपिंग की चिंता यह है कि उन्हें भी कहीं लोग लु हुं चेंग कहकर संबोधित न करने लगें।
अगले चंद महीनों में उनका तीसरा कार्यकाल शुरू होने वाला है। कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे होने पर दिए गए अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा था कि ताइवान में जो कोई दखल देगा, उसका ‘सिर फोड़’ दिया जाएगा।
जाहिर है, पेलोसी की यात्रा को इतना महत्व देने के कारण अब उन पर काफी ज्यादा दबाव बन गया है। चीन की घरेलू राजनीति में इससे उबाल आ सकता है।