तेज होगी आर्थिक प्रगति
महिलाएं भारत के विकास और संपन्नता में बडे़ पैमाने पर योगदान की दिशा में बढ़ रही हैं। देश में कामकाजी उम्र की लगभग 43.2 करोड़ महिलाएं हैं, जिनमें से 34.3 करोड़ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अनुसार, महिलाओं को समान अवसर देकर भारत 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 770 अरब अमेरिकी डॉलर जोड़ सकता है।
हालांकि, जीडीपी में महिलाओं का वर्तमान योगदान 18 प्रतिशत है। अभी भारत में बमुश्किल 10 प्रतिशत उद्यमों या स्टार्टअप का नेतृत्व महिलाएं करती हैं। महिला उद्यमियों को मानसिक व आर्थिक रूप से अधिक मदद देना समय की मांग है।
नीति आयोग के पिछले वर्ष के तथ्यों और आंकड़ों पर ध्यान दें, तो स्पष्ट दिखता है कि स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पोषण, रोजगार से लेकर संपत्ति के स्वामित्व तक जीवन के हरेक क्षेत्र में महिलाओं को असमानता झेलनी पड़ती है। जब फैसला लेने की बात आती है, तब वे पीछे रह जाती हैं।
यह असमानता हर क्षेत्र में है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में महिला साक्षरता दर 65 प्रतिशत है, वहीं पुरुषों में साक्षारता दर 82 प्रतिशत है। अक्सर जब हम लैंगिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, तब भूल जाते हैं कि महिला, पुरुषों के अलावा हमारे बीच किन्नर समुदाय भी है, जिसे समाजिक न्याय की जरूरत है।
किन्नर पहले समाज में सम्मानित सदस्य की तरह रहते थे, पर फिल्मों व अन्य वजहों से उनकी छवि खराब हुई। बदले दौर में हमें महिलाओं को ही नहीं, किन्नर समुदाय को भी बराबरी का हक देना होगा। सतत विकास लक्ष्य 2030 की लक्ष्य संख्या पांच का उद्देश्य सभी प्रकार के भेदभाव, हिंसा और गलत प्रथाओं को समाप्त कर महिलाओं की अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम को महत्व देकर लैंगिक समानता प्राप्त करना है।
यह ्त्रिरयों के लिए राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने के सभी स्तरों पर प्रभावी भागीदारी व समान अवसरों पर भी विचार करता है। जब लैंगिक समानता और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की बात आती है, तो केरल व सिक्किम को छोड़ लगभग सभी भारतीय राज्य रेड जोन में हैं और उन्होंने सौ में से सिर्फ पचास या उससे कम स्कोर किया है।
राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिए नीति आयोग ने छह मानदंडों पर विचार किया है, जिसमें जन्म के समय लिंग अनुपात (प्रति 1,000 पुरुष पर महिला), औसत मजदूरी का अनुपात, 15-49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाओं का प्रतिशत, जिन्होंने कभी पति की हिंसा का अनुभव किया है, राज्य विधानसभा के आम चुनाव में महिलाओं द्वारा जीती गई सीटों का प्रतिशत, महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर का अनुपात और परिवार नियोजन के आधुनिक तरीकों का उपयोग करते हुए 15-49 वर्ष के आयु वर्ग में महिलाओं का प्रतिशत।
हर महिला अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने की हकदार है, पर उसके जीवन में लैंगिक असमानताएं इस वास्तविकता में बाधा डालती हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, असमानता भी बढ़ती है, इसके परिणामस्वरूप हम देखते हैं कि भारत में संगठित क्षेत्र में केवल एक चौथाई महिलाएं हैं।
जन्म के समय लिंगानुपात के मामले में उत्तराखंड का प्रदर्शन चिंतनीय है। वर्ष 2017-19 के बीच राज्य का लिंगानुपात 848 था, वहीं साल 2019-21 में यह घटकर 840 हो गया है, जबकि राष्ट्रीय औसत 899 है, राज्य के लिए यह एक गंभीर और विचार योग्य विषय है।