ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था

जब 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) की शुरुआत की गई थी, तब हमारी सबसे बड़ी चुनौती थी, देश के सुदूर क्षेत्र में रहने वाली अंतिम महिला तक एलपीजी सिलेंडर के साथ पहुंचना।

एक समर्पित कार्यबल और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ पीएमयूवाई की सफलता और सबसे कमजोर लोगों के जीवन पर इसके महत्वपूर्ण प्रभाव से मुझे भरोसा हुआ है कि हम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) को लागू करने के चुनौतीपूर्ण कार्य को पूरा करने में सक्षम होंगे।

इस नीति में शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव की परिकल्पना की गई है, ताकि हमारे देश के छात्र 21वीं सदी की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हो सकें।

भारत सबसे युवा देशों में से एक है, जिसकी 50 प्रतिशत से अधिक आबादी 30 साल से कम उम्र की है। संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा स्पष्ट तौर पर दिखता है। मगर यह क्षमता हमारे पास हमेशा के लिए नहीं रहेगी। इसका लाभ भी हमें अपने आप नहीं मिलेगा। इसके लिए ठोस प्रयास और नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है।

एक साधारण गणना बताती है कि हमारे पास नौजवानों की क्षमता का पूरी तरह दोहन करने के लिए लगभग दो दशकों से थोड़ा अधिक समय है, या जिसका प्रधानमंत्री अमृत काल के रूप में जिक्र करते हैं- स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होनेे से पहले की 25 साल की अवधि। यही वजह है कि हमारे युवाओं की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रणाली में व्यापक बदलाव लाजिमी हैं।
एनईपी-2020 हमारे देश की यात्रा में ऐसा ही एक परिवर्तन है। प्रधानमंत्री के शब्दों में, एनईपी-2020 आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला के रूप में काम करेगी। एनईपी पूर्व-प्राथमिक से उच्च शिक्षा के सभी स्तरों पर हमारी शिक्षा व्यवस्था की पुनर्संरचना करती है और एक कौशल व अनुसंधान इकोसिस्टम के साथ इसका पुनर्गठन करती है।

यह चार सिद्धांतों पर आधारित है- पहुंच, गुणवत्ता, समानता और किफायत। एनईपी का लक्ष्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के स्थान पर एकल नियामक निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) को स्थापित करना और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को वर्तमान के 27.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है।

नई शिक्षा नीति यह सुनिश्चित करेगी कि विनियमन, मान्यता देने, वित्त पोषण और शैक्षणिक मानक-निर्धारण का कार्य स्वतंत्र और अधिकार प्राप्त निकायों द्वारा किया जा रहा है। एनईपी की विभिन्न प्रगतिशील सिफारिशों में शामिल हैं- सभी चरणों में अनुभव से जुड़ी शिक्षा, नवीन और गतिविधि-आधारित शिक्षाशास्त्र, उच्च शिक्षा में प्रवेश/ निकास के बहु-विकल्प, विभिन्न संकायों से जुड़ी शिक्षा, एक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की स्थापना आदि।

इन परिवर्तनों को पूरा करने के लिए नीतिगत सुधारों के साथ भारत की शिक्षा और अध्ययन कार्यक्रमों के अंतरराष्ट्रीयकरण पर भी जोर दिया गया है।
नई शिक्षा नीति 21वीं सदी की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करने के साथ-साथ तात्कालिक चुनौतियों की भी पहचान करती है।

यह नीति आह्वान करती है कि प्रत्येक छात्र तीसरी कक्षा तक मूलभूत साक्षरता व संख्यात्मक योग्यता प्राप्त कर ले। इसके लिए ‘निपुण भारत’ नाम से राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया है, ताकि देश का तीसरी कक्षा का प्रत्येक बच्चा 2026-27 तक यह योग्यता प्राप्त कर सके।

एनईपी-2020 सभी स्तरों पर सरकारों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करती है कि बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए कम से कम पांचवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा/ स्थानीय भाषा में हो। हमारी सरकार उच्च शिक्षा में भी स्थानीय भाषाओं पर ध्यान दे रही है।

स्नातक स्तर और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए स्थानीय भाषाओं में 200 से अधिक तकनीकी पुस्तकें हाल ही में लॉन्च की गई हैं। सरकारआधिकारिक भाषाओं में इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानूनी विषयों की पाठ्य-पुस्तकों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। तमाम प्रवेश परीक्षाओं को भी सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में आयोजित कराने के प्रयास हो रहे हैं, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में अंग्रेजी बाधा न बने।


हमें अपने शिक्षकों को प्रेरित करने के लिए शिक्षण कार्य को फिर से उच्च सम्मान देने की भी आवश्यकता है। हमारी सरकार स्वयं से सुधार और व्यावसायिक विकास से जुडे़ अवसर प्रदान करने पर ध्यान लगा रही है।

न केवल स्कूल, बल्कि कॉलेजों व विश्वविद्यालयों के संकाय भी नवीनतम तकनीक और नवाचारों व शिक्षाशास्त्र के विभिन्न रूपों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। हम देश भर में शिक्षक प्रशिक्षण के विश्वस्तरीय केंद्र बना रहे हैं। वर्तमान बजट में डिजिटल शिक्षक के लिए भी प्रावधान किया गया है, जिसके लिए छह करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।


कोविड-19 के दौरान हमारे शैक्षणिक संस्थानों में कई नए मॉडल सामने आए हैं। यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी समानता और क्षमता प्रदान करने वाली होती है। केंद्रीय बजट में शिक्षा के प्रसार के लिए 200 नए टीवी चैनलों का प्रावधान किया गया है और पांच वर्षों की अवधि के लिए लगभग 930 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।


दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति की दहलीज पर है। एआई, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियां पर्याप्त अवसरों के साथ-साथ चुनौतियां भी पेश करती हैं, क्योंकि इनसे कई पारंपरिक नौकरियां समाप्त हो जाती हैं।

मगर यह मनुष्यों, मशीनों और एल्गोरिदम के बीच श्रम के नए विभाजन से जुड़ी विभिन्न भूमिकाओं को भी सामने लाएगी। लिहाजा श्रमिकों के लिए कौशल विकास करने या फिर से कौशल प्राप्त करने से जुड़ी अवधि छोटी हो गई है, और इस विषय पर तुरंत कार्य करने की आवश्यकता है।


हमारे युवा न केवल नौकरी चाहने वाले, बल्कि नौकरी देने वाले के रूप में भी काम करने की इच्छा रखते हैं। यदि हम उन्हें गुणवत्तापूर्ण ज्ञान व कौशल दे सके, तो भारत को विश्व गुरु बना सकते हैं। एनईपी-2020 को बस यही करने के लिए तैयार किया गया है। हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर रहे हैं। ऐसे में, यह राष्ट्र-निर्माण के प्रति हमारा योगदान होगा।

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