ना हो हिंसा

किसी भी रोजगार योजना का ऐसा विरोध अभूतपूर्व व अफसोसनाक है। किसी योजना से असंतोष अपनी जगह है और उसके खिलाफ आंदोलन या अभिव्यक्ति का अधिकार भी सबको है, लेकिन हिंसा या कानून-व्यवस्था को अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। यह दुखद तथ्य है कि देश में विरोध प्रदर्शनों के चलते सोमवार को 529 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा।

जिन लोगों की यात्रा प्रस्तावित होगी, जिनको कहीं आपात स्थिति में पहुंचना होगा, उन्हें कितनी परेशानी हुई होगी? रेलवे ने यह भी बताया है कि विरोध के मद्देनजर दिल्ली जाने वाली 71 ट्रेनों को भी रद्द कर दिया गया है। खास तौर पर पश्चिमी रेलवे जोन का बहुत बुरा हाल है। पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में विशेष रूप से सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है।

यह विडंबना ही है कि सरकारी नौकरी चाहने वाले युवा सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। क्या विरोध का यही तरीका है? क्या किसी दूसरे शांतिपूर्ण तरीके से विरोध नहीं जताया जा सकता? हालांकि, यह भी अफसोस की बात है कि ऐसे हिंसक विरोध प्रदर्शन के पक्ष में किसी भी पार्टी को क्यों शामिल होना चाहिए? पूरे देश में इस मामले पर स्वाभाविक ही सियासत तेज हो गई है।

ध्यान रहे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों में ही कहा है कि कुछ फैसले और सुधार भले ही शुरुआत में खराब लगते हैं, लेकिन लंबे वक्त में उनसे देश को फायदा होता है। अत: वास्तव में युवाओं को विश्वास में लेने के लिए फायदे गिनाने की जरूरत है। अगर युवाओं को बरगलाया जा रहा है, तो उन्हें रास्ते पर लाने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए।

यह ऐसा समय है, जब सरकारी विभागों को सजग होकर अपने-अपने स्तर पर युवाओं को समझाना चाहिए। जिन राज्यों में हिंसा हो रही है, उनकी सरकारों को कमर कस लेनी चाहिए, ताकि जल्दी से जल्दी सामान्य जनजीवन बहाल हो। इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे देश में समाज का जो चरित्र बन गया है, उसमें किसी भी आंदोलन में असामाजिक तत्व उतर आते हैं। एकाधिक प्रमाण सरकार के हाथे लगे हैं।

रविवार को सरकार ने फर्जी खबरें चलाने वाले 35 वाट्सएप समूहों पर पाबंदी लगाई है। ट्रेन पर पथराव करने व आगजनी के आरोपी युवाओं को गिरफ्तार करना पड़ रहा है। दरअसल, जब कोई हिंसा करता है, तब वह आम लोगों की सहज सहानुभूति को गंवा देता है।

यह दुखद है कि इधर जितने भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उनके साथ आम लोगों की स्वाभाविक सहानुभूति नहीं है। हिंसा करने वालों को अगर आप एक जगह रियायत देते हैं, तो फिर हर जगह रियायत देने की मांग उठने लगती है। अत: राज्य सरकारों द्वारा बरती जा रही कड़ाई को समझा जा सकता है।


बेशक, जो युवा शालीनता से अपनी बात रखना चाहते हैं, उनके प्रति सरकार में ममत्व या अभिभावक का भाव होना चाहिए। भला कौन इनकार करेगा कि युवाओं को रोजगार देना प्राथमिकता होनी चाहिए, लेकिन उन्हें अनुशासन का संदेश देना भी उतना ही जरूरी है।

हिंसा करने वाले युवा को भला कौन नौकरी पर रखना चाहेगा? अनेक युवा आज मानने लगे हैं कि किसी भी प्रकार से मकसद या लक्ष्य हासिल होना चाहिए? यह प्रवृत्ति ही हिंसा के लिए जिम्मेदार है। पिछले वर्षों में यह एहसास भी गहरा हुआ है कि शांति से अपनी बात कहो, तो सरकार नहीं सुनती है। समग्रता में सरकारों को संवेदना और समझदारी से काम लेना होगा, ताकि अमन-चैन बहाल हो।  

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