अग्निवीरों की नियुक्ति

सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए अल्पकालिक भर्ती नीति आखिरकार घोषित कर दी। इस बहुचर्चित योजना को ‘अग्निपथ’ कहा गया है। इसमें 17.5 से 21 साल के नौजवानों को मौका दिया जाएगा। वे चार साल के अनुबंध पर भर्ती किए जाएंगे, जिसके लिए उन्हें 24 से 32 हफ्ते की ट्रेनिंग से गुजरना होगा।

शुरुआत में थल सेना में 40 हजार और वायु सेना एवं नौसेना में तीन-तीन हजार सैनिकों की भर्ती की जाएगी। हालांकि, भविष्य में जरूरत के हिसाब से इस संख्या को बढ़ाया-घटाया भी जा सकता है। यही नहीं, इनमें से 25 फीसदी युवाओं को चार साल के बाद सशस्त्र बलों में स्थायी रूप से शामिल कर लिया जाएगा। इन अग्निवीरों (सैनिकों) को बतौर तनख्वाह हर महीने 30 हजार रुपये दिए जाएंगे, जिसमें सालाना 3,500 रुपये तक की वृद्धि होगी।

इस 30 हजार रुपये में से अग्निवीर कॉर्पस फंड के लिए 9,000 रुपये काटे जाएंगे, और इतनी ही रकम सरकार भी इस फंड में जमा करेगी। चार साल की सेवा के बाद ‘सेवा निधि’ में जमा यह राशि ब्याज सहित अग्निवीरों को वापस लौटा दी जाएगी, जो करीब 11.7 लाख रुपये होगी, हालांकि उनको पेंशन की सुविधा नहीं मिलेगी।

इसके अतिरिक्त, अग्निवीरों का 48 लाख रुपये का बीमा भी कराया जाएगा और ड्यूटी के दौरान वीरगति पाने पर उनके परिजनों को 44 लाख रुपये की अतिरिक्त अनुग्रह राशि दी जाएगी। अक्षमता, यानी शारीरिक विकलांगता के आधार पर मुआवजे का प्रावधान भी इसमें रखा गया है।


जाहिर है, ‘अग्निपथ’ की शुरुआत सशस्त्र बलों में भर्ती की मौजूदा प्रक्रिया में उल्लेखनीय बदलाव है। इसके लिए सरकार के पास बड़ी संख्या में सुझाव भेजे गए थे। तमाम सुझावों पर गौर करने के बाद आखिरकार अग्निवीरों के लिए चार साल का एकल कार्यकाल, उसके अनुरूप बीमा योजना और परिस्थितियों व अनुभव के आधार पर अनुग्रह राशियों का प्रावधान किया गया। इसका तीन महत्वपूर्ण प्रभाव पडे़गा, जिनका विश्लेषण आवश्यक है। 


पहला, चिंता यह जताई जा रही है कि चार साल के बाद अग्निवीरों का आखिर होगा क्या? निस्संदेह, चार साल के बाद ऐसे उम्मीदवारों की बड़ी संख्या होगी, जो सशस्त्र बलों में रहना चाहेंगे, लेकिन सरकार के लिए सबको समायोजित करना संभव नहीं होगा। इसलिए उसने इस योजना के तहत चार साल की सेवा देने वालों के लिए अवसर पैदा करने हेतु ‘समग्र दृष्टिकोण’ की कल्पना की है।

गृह, रेलवे और उद्योग मंत्रालयों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित, अनुशासित और अनुभवी युवा कार्यबल को शामिल करने की अपार संभावनाएं हैं। सशस्त्र बल भी नियोजन में मदद कर सकते हैं। बैंकों को कहा गया है कि वे छोटे कारोबार के लिए करीब 18 लाख रुपये लोन की गारंटी दें। इसलिए इस चिंता का कोई मतलब नहीं है कि चार साल के बाद अग्निवीर बेरोजगार हो जाएंगे या सड़क पर आ जाएंगे।


दूसरा, सवाल उठाया जा रहा है कि अग्निपथ का सशस्त्र बलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेष तौर पर सैन्य जवानों की बहुतायत वाली आर्मी पर और उन इंफेंट्री यानी पैदल टुकड़ियों पर, जो उत्तरी सीमाओं और जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं? चिंता यह भी जताई जा रही है कि अनुशासन की मजबूत डोर से बने इस संगठन में ‘आया राम-गया राम’ की संस्कृति बन जाएगी। यहां हमें यह समझना होगा कि एक इंफेंट्री को साल में करीब 30 से 35 रंगरूट मिलेंगे, जिसका मतलब है कि चार साल में 100 से कुछ अधिक अग्निवीर उसके हिस्से में आएंगे।
इसके बाद, हर साल लगभग 10 अग्निवीर उस यूनिट का स्थायी हिस्सा बन जाएंगे। इसलिए एक इंफेंट्री बटालियन को हर साल 50 अग्निवीरों को खुद में जोड़ने के लिए सक्षम बनना होगा। राष्ट्रीय राइफल्स इसका सबसे उम्दा उदाहरण है। यह इकाई अपनी ऑपरेशनल यानी कार्रवाई संबंधी दक्षताओं में कोई समझौता किए बिना मानव-शक्ति का कुशल प्रबंधन करती है।


ऑल इंडिया-ऑल क्लास (एआईएसी) भी एक मुद्दा है, जो उत्तर भारतीय वर्ग-विशेष वाले रेजिमेंट के लिए चिंता का बड़ा विषय है। जाहिर  है, रेजिमेंट के नाम प्रभावित तो नहीं होंगे। 30 से 35 एआईएसी सैनिक, जिनमें से ठीक-ठाक संख्या एक खास वर्ग से हो सकती है, सालाना इंफेंट्री बटालियन में शामिल होंगे। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, अग्निपथ योजना के तहत अगले 10 वर्षों में करीब 125 एआईएसी सैनिक इंफेंट्री यूनिट में भर्ती होंगे। इतना ही नहीं, चूंकि अलग-अलग रेजिमेंट के मूल चरित्र में कोई बदलाव नहीं आएगा, इसलिए इन यूनिटों को एकजुटता के साथ काम करना पड़ेगा।


तीसरा सवाल, परिस्थिति के मुताबिक सशस्त्र बलों के उपयोग से जुड़ा है। चूंकि जवानों की मौजूदा कमी को पूरा करने की अभी कोई संभावना नहीं है, इसलिए जरूरी है कि संगठन की दक्षता पर काम किया जाए। भारत के दो विरोधी देश हैं, जिनके साथ हमारी सीमा लगती है। आधुनिक युद्ध के लिहाज से निवेश की सख्त दरकार है। रॉकेट या मिसाइल, ड्रोन, काउंटर-ड्रोन तकनीक, साइबर और अंतरिक्ष युद्ध जैसी आधुनिक लड़ाइयों के लिए हमें तैयार रहना होगा। फिर, तीनों अंगों के एकीकरण का भी मसला है।


ऐसे में, सशस्त्र बलों को अपनी युद्ध क्षमता के विस्तार पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए ‘हम कैसे लड़ेंगे’ के सवाल पर संजीदगी से विचार करने की जरूरत होती है। यहां ऐसे सवालों से भी टकराना पड़ता है कि किसके साथ, किस मकसद से और किसके लिए जंग लड़नी है और किस तरह की सेवा व क्षमता की दरकार है। इसलिए, युद्ध संबंधी ताकत का अधिकतम उपयोग महत्वपूर्ण है और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में इसकी रूप-रेखा नजर आनी चाहिए।


साफ है, अग्निपथ के निहितार्थ दूरगामी हैं। सशस्त्र बल हमारे गौरवशाली राष्ट्रीय संस्थान हैं। इसलिए अग्निपथ को लागू करने के लिए एक ठोस और दीर्घकालिक नजरिये की दरकार है। इसके अलावा, इस योजना का लगातार मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए, ताकि अगर कहीं कोई कमी दिखती है, तो उसका जल्द से जल्द निपटारा हो सके। 

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