सीधे चुनाव हो

जनाब सदर, तरमीमें बहुत-सी हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जोर एक बात में दिया गया है कि राष्ट्रपति का चुनाव अडल्ट फ्रेंचाइजी (वयस्कों के मतदान) से हो यानी हर एक शख्स चुनाव में शरीक हो।

एक तजवीज यह है कि नाम राष्ट्रपति के बजाय नेता या कर्णधार हो, एक तरमीम यह है कि प्रेसीडेण्ट या राष्ट्रपति एक दफा उत्तर (भारत) से हो और एक दफा दक्षिण (भारत) से हो। एक तरमीम यह है कि अपर हाउस (राज्यसभा) के सदस्य भी इसके चुनाव में क्यों न शरीक हों। और एक तरमीम यह है, मैं नहीं कह सकता कि यह पेश भी होगी या नहीं, कि प्रेसीडेण्ट एक दफा स्टेट का हो और एक दफा नान-स्टेट का हो।

एक तरमीम यह है कि जिसमें शपथ और निष्ठा का जिक्र है। मुझे अफसोस है कि सिवाय इस तरमीम के हम जहां मेंबर लिखा है, वहां इलेक्टेड मेंबर कर दिया जाए, मैं और कोई तरमीम मंजूर नहीं कर सकता। 


यहां पर इलेक्टेड के अल्फाज से कोई खास बात नहीं पैदा हो जाती है। ड्राफ्टिंग में यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है, लेकिन अगर आप इलेक्टेड के सफा को यहां पर बढ़ाना चाहते हैं, तो मैं उसको मंजूर किए लेता हूं। कुछ शपथ के मुतल्लिक भी कहा गया है।

जाहिर है कि इसका जिक्र कान्स्टीट्यूशन में आएगा। यहां पर इसके जिक्र की कोई खास जरूरत नहीं मालूम होती है। जहां तक इस चीज का सवाल है कि राष्ट्रपति का चुनाव उत्तर-दक्खिन, स्टेट या नान-स्टेट से हो, तो यह गलत उसूल मालूम होता है।

इसलिए कि यह मुनासिब नहीं है कि एक दफा तो हम एक फिरके से प्रेसीडेण्ट चुनें और दूसरी दफा, दूसरे फिरके से, लेकिन कायदा बनाना और कानूनी कायदा बनाना यह एक इन्तिहाई दर्जे की मुनासिब बात मालूम होती है।


जैसा आपने यह फरमाया कि प्रेसीडेण्ट के चुनाव में अपर हाउस (राज्यसभा) के मेंबर क्यों न हों; इस सिलसिले में मैं यह अर्ज करूंगा कि हमारी स्टेट की यूनिट में और प्राविन्सेज (प्रांतों) के अपर हाउस (बाद में विधान परिषद) में बहुत फर्क होगा। मैं नहीं कह सकता कि कहां-कहां अपर हाउस होंगे। 


दूसरी बात यह कि हमारे सूबों में और हमारी स्टेट के सूबों में फर्क होगा। पता नहीं कि उनके उसूल क्या होंगे और सूबों के उसूल क्या होंगे। अगर यह अख्तियार अपर हाउस को दिए जाएंगे, तो इसमें बहुत गड़बड़ होगी।

चुनांचे मेरी राय में यह बात बहुत ज्यादा साफ है कि सेंटर में दो हाउसेज (लोकसभा व राज्यसभा) को हक होगा और सूबों में और यूनिट्स में खाली लोअर हाउस को चुनाव का हक होगा। इसमें एक पेच है, जो साफ नहीं हुआ है, कि यूनिट को ज्यादा हक होगा या लेजिस्लेचर को ज्यादा होगा।

यानी सेंटर लेजिस्लेचर में जो लोग मेंबर होंगे, उनका एक कोर्ट होगा और उनको कितना हक होगा? इसको बराबर-बराबर करना है। यह बात हमारे एडवाइजरों की है कि वह इसको साफ कर देंगे। लिहाजा इस वक्त मेरी राय में, जैसा मैंने अर्ज किया है और जैसा छपा हुआ है, इसको वैसा ही रहने देना चाहिए।

इस बात को मैंने शुरू में भी कहा था और अब भी अर्ज करता हूं और अगर आप भी गौर करेंगे, तो इसी नतीजे पर पहुंचेंगे कि बेहतरीन तरीका यही है कि हम इस चीज को महदूद न कर दें। 


मैं यह बात मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि अडल्ट फ्रेंचाइज जो होगा, वह बहुत जरूरी होगा। यह बात जाहिर है कि जो लोग असेंबली के मेंबरान को चुनेंगे, यह करोड़ों की तादाद में होंगे और माकूल आदमी होंगे।

लिहाजा जब असेंबली के मेंबरान उन्हीं हजारों और करोड़ों आदमियों के वोट से मेंबर चुनकर आएंगे, तो फिर क्या जरूरत है कि प्रेसीडेण्ट का चुनाव अडल्ट फ्रेंचाइज से हो? 


लिहाजा अगर आप चाहते हैं कि हम अपने कांस्टीट्यूशन को जल्द से जल्द पास करके उस पर अमल करने लगें, तो उन पेचीदगियों की वजह से जो पैदा हो रही हैं, हम जल्द से जल्द अपने बनाए हुए कांस्टीट्यूशन पर अमल नहीं कर सकेंगे।

अगर आप प्रेसीडेण्ट का चुनाव अडल्ट फ्रेंचाइज से करना चाहते हैं, तो इसके मानी यह होंगे कि इलेक्शन करने में हमारा बहुत ज्यादा वक्त गुजरे और हम नए कांस्टीट्यूशन पर अमल न कर सकेंगे। इसलिए मेरी ख्वाहिश है कि जिस तरह मैंने इसको आपके सामने रखा है, आप भी इसको इसी शक्ल में मंजूर कर लें।

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