महामारी में बंद हुई बसें दो वर्ष बाद भी बहाल नहीं

बांदा,संवाददाता। जिस रूट पर रोडवेज ने घाटा बताकर अपनी बसें बंद कर दीं उसी मार्ग पर प्राइवेट बसों में यात्रियों को ढूंढे जगह नहीं मिल रही। व्यापारी वर्ग भी प्रभावित हो रहा है। रूटों से बसें हटाने के लिए परिवहन निगम ने कोरोना की आपदा को अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।

अब सबकुछ सामान्य हो गया है उसके बाद भी निगम बसें नहीं चला रहा है। प्राइवेट बसें और डग्गामार वाहन मनमानी किराया वसूल कर यात्रियों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। पहाड़ी से बांदा रोड पर वाया सिंहपुर, ओरन, बिसंडा और बिलगांव होकर पांच रोडवेज बसें स्वीकृत थीं।

इनमें चार का सुचारू रूप से संचालन हो रहा था। दो वर्ष पूर्व लॉकडाउन लगा तो यह बंद हो गईं। अब कई महीनों से महामारी के हालात खत्म हो चुके हैं। यात्राएं बहाल हो गई हैं। लेकिन रोडवेज ने अपनी बसों को बहाल नहीं किया। इसका सीधा फायदा प्राइवेट बसें उठा रही हैं।

इन दिनों शादी ब्याह में यात्रियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। वह प्राइवेट बसों व डग्गामार वाहनों में अधिक किराया देकर जोखिम भरी यात्रा कर रहे हैं। इसी तरह कर्वी (चित्रकूट) से चलकर पहाड़ी, सिंहपुर, ओरन, बबेरू होते हुए दो रोडवेज बसें कानपुर चलती थीं।

पिछले दो माह से इनकी वापसी इस रूट से नहीं हो रही। व्यापारी वर्ग परेशान है। सप्ताह में चलने वाली निजी बसों से कानपुर आ-जा रहे हैं। यहां से बांदा का किराया रोडवेज बस में 35 रुपये लगता था, जबकि प्राइवेट बसें 55 रुपये ले रही हैं। दूरी मात्र 43 किलोमीटर है। प्राइवेट बसें समय भी अधिक ले रही हैं।

बांदा मुख्यालय तक पहुंचने में तीन घंटे लग रहे हैं। इसी तरह ओरन से अतर्रा और बबेरू रूट पर रोडवेज बसें न होने से डग्गामार वाहन यात्रियों से 40 रुपये किराया वसूल रहे हैं। जबकि इन दोनों की दूरी मात्र 20-20 किलोमीटर है।

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