MSP गारंटी के लिए किसान संगठनों ने बनाया नया मोर्चा, हो सकता है आंदोलन

दिल्लीः केन्द्र के तीन विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए हुए आंदोलन के बाद किसानों के एक समूह ने मंगलवार को कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग पर जोर देने के लिए एक नया मोर्चा बनाया है। महाराष्ट्र से दो बार के सांसद एवं स्वाभिमानी पक्ष के नेता राजू शेट्टी ने कहा कि यहां विभिन्न किसान संगठनों की बैठक में ‘एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा’ शुरू करने का फैसला किया गया।

किसानों की बैठक के बाद शेट्टी ने पत्रकारों से कहा, ”हम एमएसपी गारंटी किसान मोर्चा (MSP Guarantee Kisan Morcha) के बैनर तले आंदोलन शुरू करेंगे। अगले छह महीनों में हम एमएसपी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर राज्य के प्रत्येक जिले का दौरा करेंगे।

बैठक में उत्तर प्रदेश से वी. एम. सिंह, हरियाणा से रामपाल जाट, पंजाब से बलराज सिंह, झारखंड से राजाराम सिंह सहित कई किसान नेता शामिल हुए। नेताओं ने कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर वैधानिक गारंटी की मांग करते हुए प्रत्येक ग्राम सभा (ग्राम परिषद) द्वारा एक प्रस्ताव को अपनाने के मुद्दे पर जोर देने का फैसला किया।

शेट्टी ने कहा कि ग्राम परिषद से इन प्रस्तावों को भारत के राष्ट्रपति के पास भेजने का आग्रह किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन की घोषणा के लिए राजधानी दिल्ली में तीन दिवसीय किसान सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। शेट्टी ने कहा कि सभी किसानों को गन्ना किसानों को भुगतान के लिए केन्द्र द्वारा निर्धारित उचित पारिश्रमिक मूल्य की तर्ज पर ही उनकी फसलों के लिए एमएसपी मिलना चाहिए। 

वहीं, संसद की एक समिति ने किसानों की गन्ना आपूर्ति का बकाया अब भी 16,612 करोड़ रूपये होने पर हैरानी व्यक्त करते हुए कहा है कि सरकार बकाया राशि का तत्काल भुगतान सुनिश्चित करने के लिए चीनी मिलों पर दबाव डालकर उचित उपाय करे तथा बंद एवं बीमार चीनी मिलों के पुनरुर्द्धार के लिए नीति बनाए। संसद में मंगलवार को पेश खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, समिति नोट करती है कि ”कुल 16,612 करोड़ रुपया गन्ने का बकाया है। यद्यपि गन्ना मूल्य बकाया काफी कम हो गया है, लेकिन यह अब भी बहुत अधिक है।”

समिति ने हैरानी जताते हुए कहा कि किसानों द्वारा गन्ने की आपूर्ति के 14 दिनों के भीतर गन्ने के मूल्य का भुगतान करने के प्रावधानों के बावजूद यह शायद ही कभी किया जाता है। उसने कहा कि चीनी सीजन 2016-17 और उससे पहले का गन्ना मूल्य बकाया अब भी शेष है।

इसमें कहा गया है कि गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के प्रावधान के अनुसार 15 प्रतिशत की दर से ब्याज सहित गन्ना मूल्य बकाया के भुगतान के लिए चीनी मिलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। समिति महसूस करती है कि समय पर गन्ना बकाया का भुगतान न करना हतोत्साहित करने वाला हो सकता है जो किसानों को गन्ना उगाने से रोक सकता है और उन्हें अन्य फसलों को उगाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, समिति का कहना है कि लाभकारी कीमतों पर तेल मार्केटिंग कंपनियों को इथेनॉल की बिक्री से चीनी मिलों की चल निधि में वृद्धि हुई है इससे चीनी मिलों की ओर से किसानों का बकाया जल्द से जल्द चुकाना और भी जरूरी हो गया है। समिति ने कहा है कि किसानों को उनकी कृषि उपज की आपूर्ति के तुरंत बाद लाभकारी मूल्य का भुगतान करने की आवश्यकता है इसलिए वह खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग को सभी बकाये का निपटारा करने और किसानों का तत्काल भुगतान सुनिश्चित करने के लिए चीनी मिलों पर दबाव डालकर उचित उपाय करने की पुरजोर सिफारिश करती है।

समिति ने इस उद्देश्य के लिए तैयार की गई कार्य योजना एवं विशिष्ट कदमों से अवगत कराने को भी कहा है। रिपोर्ट के अनुसार समिति नोट करती है कि देश में स्थापित 756 चीनी मिलों में से 506 चीनी मिलें ही चालू हैं और 250 चीनी इकाइयां वित्तीय संकट, कच्चे माल की अनुपलब्धता और संयंत्र एवं मशीनरी आदि विभिन्न कारणों से संचालित नहीं हो रही हैं।

इसमें कहा गया है कि गन्ना की बकाया राशि के साथ ही बंद पड़ीं चीनी मिलों की संख्या को ध्यान में रखते हुए समिति ने चीनी मिलों के पुनरुर्द्धार के लिए उन्हें सहायता, आसान और सस्ता ऋण आदि प्रदान करने की व्यापक नीति तैयार करने की सिफारिश की है। उसने कहा कि इससे अतिरिक्त राजस्व सृजित होगा और इस प्रकार गन्ना मूल्य के तेजी से समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा। समिति का यह विचार है कि निकायों के पुनरुर्द्धार का विचार करते समय ऐसी इकाइयों को आंशिक इथेनॉल उत्पादन के साथ जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण कारकों का भी पता लगाया जा सकता है। 

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