टाटा के हुए महाराजा
एयर इंडिया का स्वामित्व हासिल करना जहां टाटा समूह के लिये भावनात्मक जीत है कि इसकी घर वापसी हुई है, वहीं सरकार को इस बात की राहत है कि वह लंबे समय से प्रतीक्षित सौदे को मूर्त रूप दे पायी। टाटा समूह को भरोसे का नाम माना जाता है और उसकी मूल्यों के कारोबारी के रूप में पहचान बनी है, यही वजह है कि भारतीय अस्मिता के प्रतीक एयर इंडिया का इस समूह द्वारा खरीदा जाने पर सरकार ही नहीं आम लोगों का भी सकारात्मक प्रतिसाद मिला।
जहां कई ट्रेड यूनियनों ने इस सौदे का स्वागत किया, वहीं इसके कर्मचारियों ने भी राहत की सांस ली है कि उनके भविष्य का जो भी होगा, बेहतर होगा। महत्वपूर्ण यह भी है कि टाटा समूह के पास एयर लाइन्स चलाने का लंबा अनुभव है और उसकी दो एयर लाइन्स फिलहाल चल रही हैं। वहीं दूसरी ओर इस विनिवेश से केंद्र सरकार को राजकोषीय संतुलन बैठाने में मदद मिलेगी।
दूसरी ओर 68 वर्ष बाद टाटा समूह में इस बात का उल्लास है कि उसके संस्थापक द्वारा शुरू की गई पहली भारतीय एयर लाइन्स की पुन: घर वापसी हुई है। सरकार लंबे समय से एयर इंडिया को बेचने के मूड में थी लेकिन उसे योग्य खरीदार नहीं मिल पाया। हालांकि, कई दशकों से घाटे में चल रही एयर लाइन्स की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना एक बड़ी चुनौती होगी, लेकिन टाटा समूह का कुशल प्रबंधन उम्मीद जगाता है कि यह एयर लाइन्स कुछ ही वर्ष में दुनिया में महारानी बनेगी।
एयर इंडिया के साथ एयर एशिया व विस्तारा का विलय उसे मजबूती ही देगा। निस्संदेह, एयर इंडिया की आय की दो-तिहाई आय अंतर्राष्ट्रीय मार्गों से होती है जो टाटा को एक नया अवसर उपलब्ध कराती है, जिसमें खाड़ी देशों में काम करने वाले लाखों भारतीयों का संबल इसे मिलेगा। टाटा समूह को अपने यात्रियों में विश्वास की बहाली करनी है, सेवाओं में सुधार करके इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना है।
ऐसा भी नहीं है कि टाटा समूह की राह बहुत आसान है। सबसे पहले परिचालन घाटे को कम करने की चुनौती होगी। हवाई जहाजों के बेड़े के आधुनिकीकरण पर बड़ा खर्चा आयेगा। हालांकि सरकार ने पचपन हजार पूर्व कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान जारी रखने का फैसला किया, लेकिन मौजूदा कर्मचारियों की समस्याओं से समूह को जूझना होगा। वैसे तो समूह पहले वर्ष में मौजूदा कर्मचारियों को बनाये रखेगा।
फिर ऐच्छिक सेवानिवृत्ति की प्रक्रिया दूसरे वर्ष में आरंभ होगी। बहरहाल, फिर भी एयर इंडिया को बेहतर डील मिली है, अब जरूरत इसे संवारने की है। जिसको लेकर टाटा समूह उत्साहित भी है क्योंकि एयर इंडिया की साख दुनिया में अच्छी विमानन कंपनियों के रूप में रही है, जिसका प्रतीक चिन्ह महाराजा विमानन सेवा का प्रतीक ही बन गया था। लेकिन यह शासन-प्रशासन के लिये भी आत्ममंथन का वक्त है कि क्यों हम सार्वजनिक क्षेत्र की लाभ दे सकने वाली संस्थाओं को घाटे के कारोबार में बदल देते हैं।
बार-बार सरकार द्वारा वित्तीय पैकेज देने के बाद भी यह घाटे से क्यों नहीं उबरी? क्या घरेलू सेवा इंडियन एयर लाइंस और एयर इंडिया का विलय एक गलत कदम था? क्या राजनीतिक हस्तक्षेप से प्रबंधन की विद्रूपताएं सामने आई? क्या बिजनेस करना सरकारों का काम नहीं है? बहरहाल, अब जब टाटा समूह ने घरेलू विमानन सेवा में सत्ताइस प्रतिशत की हिस्सेदारी पा ली है और वैश्विक मार्गों पर सबसे बड़ी कंपनी होगी, तो दुनिया में एयर इंडिया व भारत की साख निश्चित रूप से बढ़ेगी।
टाटा समूह के परिचालन प्रारूप से तो उम्मीद जगी है कि एयर इंडिया जल्दी ही मुनाफा देने वाली कंपनी बन जायेगी, टाटा समूह में इस डील से उत्पन्न उल्लास तो यही बताता है। कंपनी के पास दुनिया में सबसे अधिक उड़ान अवधि की पूंजी भी है, फिर दोनों लाभदायक एयर लाइन्स इसे संबल ही देंगी। घाटे में चल रही एयर इंडिया को मुनाफे वाली कंपनी में बदलना टाटा समूह की साख के लिये भी एक कसौटी ही है।