चौंकाता खुलासा

पिछले एक दशक में सामने आए पैराडाइज पेपर्स व पनामा पेपर्स की कड़ी में पैंडोरा पेपर लीक में जो 1.2 करोड़ दस्तावेज सामने आए हैं, उसने पूरी दुनिया में कई सत्ताधीशों, कारोबारियों व नौकरशाहों की असलियत को उजागर किया है। इसके जरिये उन्नतीस हजार ऑफशोर कंपनियों व ट्रस्टों के स्वामित्व के विवरण उजागर हुए हैं।

दरअसल, इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स यानी आईसीआईजे की बड़ी खोजबीन में 117 देशों के साढ़े छह सौ खोजी पत्रकारों ने भाग लिया था। इसमें उजागर हुए नामों में कुछ पहले ही मनी लॉन्ड्रिंग व टैक्स चोरी के मामलों में दागदार हैं। यह खुलासा बताता है कि कैसे सत्ताधीश व प्रभावशाली लोग कानून के छिद्रों का इस्तेमाल करके काले धन को सफेद बनाने की कुत्सित कोशिश कर रहे हैं।

यह भी कि अमीर व ताकतवर लोग कैसे समानांतर अर्थव्यवस्था चला रहे हैं। जिन सैकड़ों लोगों के नाम सामने आए हैं उनमें प्रभावशाली राजनेताओं, अरबपतियों, मशहूर व्यक्तियों और धार्मिक हस्तियों ने खरबों डॉलर की संपत्ति का कर बचाने के लिये ऑफशोर विदेशी कंपनियों के खातों का उपयोग किया है। जो बड़े आलीशान भवनों, समुद्र तटीय संपत्ति व जमीनों की खरीद के जरिये अपने निवेश को छिपा रहे हैं।

धन के गुप्त भंडार के खुलासे में जो प्रमुख नाम हैं, उनमें जॉर्डन के शाह, चेक प्रधानमंत्री, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन व पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के सहयोगी शामिल हैं। भारत के भी कुछ समृद्ध हस्तियों के नामों का इसमें खुलासा हुआ है। कुल तीन सौ भारतीयों व सात सौ पाकिस्तानियों के नाम इस खुलासे में सामने आये हैं।

जाहिर बात है कि बड़े पैमाने पर कर चोरी और काले धन को छिपाया जाना सामाजिक व आर्थिक असमानता का हिस्सा ही है। पैंडोरा पेपर का खुलासा ऐसे वक्त में हुआ है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी के संकट से जूझ रही है। इस संकट ने न केवल लाखों लोगों का जीवन छीना है बल्कि रोजगार संकट के चलते अमीर-गरीब के बीच की खाई भी चौड़ी हुई है।

इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि कोरोना संकट के बीच वित्तीय गतिविधियों पर अंकुश के चलते जहां पूरी दुनिया में गरीबी का दायरा बढ़ा है वहीं अमीर और अमीर हुए हैं। ब्रिटेन के चैरिटी समूह ऑक्सफैम इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक हजार सबसे अमीर लोगों ने नौ महीनों के भीतर ही कोविड संकट से हुए नुकसान की भरपाई कर ली है।

वहीं दुनिया के सबसे गरीब लोगों को आर्थिक नुकसान से उबरने में एक दशक से भी अधिक समय लग सकता है। कोरोना के वायरस ने जीवन की क्षति व आर्थिक संकट बढ़ाकर असमानता को और बढ़ा दिया है। बताते हैं कि देश में लॉकडाउन के दौरान अरबपतियों की संपत्ति में पैंतीस फीसदी की वृद्धि हुई है।

सही मायनों में ऑफशोर विदेशी कंपनियों के खातों का उपयोग करके भारत जैसे विकासशील देशों में संपन्न और ताकतवर लोग देश को राजस्व कर से वंचित कर रहे हैं। यह वह धन है, जिसकी देश में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यावरण व अन्य बड़ी परियोजनाओं को मूर्त रूप देने के लिये जरूरत होती है। सरकारों को खुलासे में उजागर लोगों की वित्तीय गतिविधियों की व्यापक जांच करनी चाहिए।

सख्त कार्रवाई ही गलत तरीके से अर्जित बेहिसाब धन के संचय व छुपाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने का काम कर सकती है। यह चिंता की ही बात है कि इस तरह की आर्थिक गतिविधियों के खिलाफ मुहिम चलाने वाले ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर और उनकी पत्नी पर लंदन में ऑफिस के लिये खरीदी गई संपत्ति में स्टैंप ड्यूटी न चुकाने के आरोप हैं।

ऐसे ही दाग रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन, चेक प्रधानमंत्री आंद्रे बबीस, अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम एलीयेव पर संपत्ति खरीद के चलते लगे हैं। ऐसे में जब बड़े सत्ताधीश ही ऑफशोर विदेशी कंपनियों के जरिये काले धन छिपाने और टैक्स बचाने के खेल में शामिल होंगे तो अन्य आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कौन करेगा? जाहिरा तौर पर ये नेता जनता के पैसे का उपयोग अपने परिवार को समृद्ध करने के लिये कर रहे हैं।

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