प्रतिभा को संबल

शिक्षक ने बालक वाल्टर से कॉपी मांगी। उसने सकुचाते हुए कॉपी शिक्षक के आगे रख दी। शिक्षक ने कहा, ‘वाल्टर, तुम अपना काम कभी भी पूरा नहीं करते हो। चलो पीछे कोने में जाकर बैठ जाओ।’ नन्हा वाल्टर सहम कर पीछे बैठ गया।

वाल्टर को गणित, विज्ञान से अधिक साहित्य में रुचि थी। वह साहित्य के विषयों को बहुत ध्यान से पढ़ता था। एक दिन सुप्रसिद्ध कवि रॉबर्ट बर्न्स का उसके घर आना हुआ। एक चित्र के नीचे कविता की बहुत ही सुंदर पंक्तियां देखकर बर्न्स बोले, ‘इन पंक्तियों को किसने लिखा है?’

वाल्टर संकोचवश यही सोचता रहा कि बोले या नहीं। बार-बार शिक्षकों की डांट और विद्यार्थियों के चिढ़ाने से उसका आत्मविश्वास दब गया था।

बर्न्स के प्रश्न दुहराने पर वाल्टर उठा और उन पंक्तियों को पढ़कर अपने मन से आगे की पंक्तियां भी सुनाता रहा। वे पंक्तियां बेहतरीन थीं। बर्न्स वाल्टर को गले लगाते हुए बोले, ‘साहित्य में इतनी संजीदगी और श्रेष्ठता का संगम इतनी कम उम्र में मैंने केवल तुम्हारे अंदर देखा है।

तुम एक दिन स्कॉटलैंड के महान व्यक्ति बनोगे।’ यह सुनकर वाल्टर का हृदय पुलकित हो उठा। आलोचना ने उसके मन में अपने प्रति जो संदेह पैदा कर दिया था, वह छंटने लगा।

अब वह मित्रों व शिक्षकों को प्रश्नों के जवाब देने लगा। एक दिन यही वाल्टर स्कॉट सुप्रसिद्ध इतिहासकार, उपन्यासकार बना।

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