जिनपिंग

बीते सप्ताह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अप्रत्याशित तिब्बत यात्रा ने भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों को चौंकाया है। किसी देश के संप्रभु नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले किसी राज्य में राष्ट्रप्रमुख का दौरा यूं तो सामान्य बात है, लेकिन तिब्बत से जुड़े विवादों के चलते इस यात्रा के गहरे निहितार्थ हैं। किसी चीनी राष्ट्राध्यक्ष की ऐसी पिछली यात्रा वर्ष 1990 में हुई थी।

शी जिनपिंग भी वर्ष 2013 में राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार तिब्बत गये हैं। लेकिन जब भारत व चीन के बीच लद्दाख में टकराव की स्थिति बनी हुई है तो यह यात्रा चिंता पैदा करती है। हालांकि, भले ही चीन ने तिब्बत पर अपनी शक्ति के बल पर अधिकार कर लिया हो, मगर वह कभी तिब्बतियों का दिल नहीं जीत पाया है। यही वजह है कि शी जिनपिंग की यात्रा को गोपनीय रखा गया।

साथ ही शी की यात्रा खत्म होने के बाद ही इसकी घोषणा की गई। जब ल्हासा के स्थानीय दुकानदारों को बाजार बंद करने के निर्देश दिये गये तो उन्हें इतना ही पता था कि संभवत: किसी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता का आगमन हो रहा होगा। लेकिन इस यात्रा का सबसे ज्यादा चौंकाने वाला पहलू यह है कि शी जिनपिंग तिब्बत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी ल्हासा ट्रेन से जाने से पहले अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे न्यिंग्ची रेलवे स्टेशन पहुंचे।

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनातनी के बीच शी जिनपिंग की इस यात्रा ने निश्चित रूप से साउथ ब्लॉक के अधिकारियों की चिंताओं में इजाफा किया होगा। वह भी ऐसे वक्त में जब पश्चिमी सेक्टर स्थित लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। ब्रह्मपुत्र पर चीन की महत्वाकांक्षी सुपर डैम परियोजना के पास स्थित न्यिंग्ची में शी की यात्रा को पूर्वी मोर्चे को निशाने पर लेने की मंशा का संकेत भी माना जा सकता है। हालांकि, इस बारे में स्पष्ट कहना कठिन है लेकिन यह यात्रा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे के बाद शी के उस बयान के बाद हुई है, जिसमें उन्होंने चीन की स्टील की दीवार से टकराने पर गंभीर परिणामों की चेतावनी दी थी।

दरअसल, कहीं न कहीं चीन तिब्बत के बहाने भारत को संदेश देने की कवायद में ज्यादा जुटा है। उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति के इस प्रतिनिधिमंडल में चीन के शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग के उपाध्यक्ष झांग यूक्सिया भी शामिल थे। इतना ही नहीं, शी जिनपिंग को चीनी सेना पीएलए के अधिकारियों की सभा को जोश के साथ संबोधित करते हुए दिखाया गया, जिसे शी जिनपिंग की युद्धप्रियता कहें या फिर भारत, अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया के गठबंधन वाले क्वाड की सक्रियता के प्रतिकर्म में भारत को संदेश देने का प्रयास।

कहीं न कहीं शी जिनपिंग अपने देश के लोगों को भी संदेश देने का प्रयास कर रहे थे। एक वर्ष पूर्व भी शी ने तिब्बत के चीनीकरण का आह्वान किया था। जाहिर है बदले अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम में तिब्बत पर ध्यान केंद्रित करने का चीन का मकसद यह भी है कि यह पूरी तरह उसका अंग है। बहरहाल, इसके बावजूद भारत अपनी सुरक्षा से जुड़े पहलुओं की अनदेखी नहीं कर सकता। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शी जिनपिंग का तिब्बत दौरा ऐसे समय में हुआ है जबकि हिमालयी क्षेत्र में भारत सबसे बड़ी सैन्य तैनाती की चुनौती का मुकाबला कर रहा है।

दोनों देशों के संबंध उस हद तक गिरावट के दौर में हैं कि कोई भी चीनी व्याख्या संदेह पैदा करती है। भारत के पास सैन्य रूप से इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये तैयार रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद हुए क्वाड शिखर सम्मेलन के बाद चीनी प्रतिक्रिया अपेक्षित थी। इसके बाद क्षेत्र में तनाव बढ़ने के कयास पहले से ही लगाये जा रहे थे। शी की इस तिब्बत यात्रा के निहितार्थों के प्रति भारत को सतर्क रहने एवं इस यात्रा के संदेश को गहरे तक समझने की आवश्यकता है।

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