जोर आजमाइश 

गुजरात विधानसभा चुनावों का बिगुल बजने के बाद यहां के सियासी समीकरण की चर्चा शुरू हो गई है। यहां साल 1995 से ही भाजपा वोटों की दौड़ में आगे रही है और वह लगातार मजबूती से चुनाव जीतती रही है। हर बार 182 विधानसभा सीटों में से 100 से ज्यादा सीटें उसके खाते में गई हैं। पिछला 2017 का चुनाव बेशक अपवाद था, जिसमें वह सीटों का सैकड़ा पूरा करने में चूक गई, लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से पूर्व की तरह कांग्रेस और उसमें बड़ा फासला (छह प्रतिशत से अधिक) रहा। दोनों दलों के बीच हर बार वोट प्रतिशत में नौ से 11 अंकों का अंतर रहा है।
फिर भी, कांग्रेस यहां सफल प्रतिद्वंद्वी रही है, क्योंकि किसी तीसरे मजबूत दल का यहां अभाव रहा है। मगर इस बार उसकी राह कुछ ज्यादा कठिन जान पड़ती है, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने यहां सफल दस्तक दी है। इससे यहां का चुनावी समीकरण बदलता दिख रहा है। आप नेता अरविंद केजरीवाल कई महीनों से यहां प्रचार कर रहे हैं, जिसका असर भी दिखने लगा है। गुजरात की जनता से बात करने पर यह महसूस होता है कि आप ने उनके बीच एक पहचान बनाई है। उनसे यदि आप दिल्ली से आने की बात कहेंगे, तो वे तुरंत पूछ बैठते हैं, आप आम आदमी पार्टी की तरफ से तो नहीं आए हैं? झाड़ू वाले तो नहीं हैं? साफ है, आप यहां चर्चा में है, लेकिन वह लोगों का कितना भरोसा जीत पाएगी, यह फिलहाल कह पाना मुश्किल है।

यहां के पिछले उप-चुनाव भी त्रिकोणीय संघर्ष के संकेत दे रहे हैं। मगर इस संघर्ष में एक तरफ भाजपा है, तो दूसरी तरफ आप और कांग्रेस। मौजूदा स्थिति यही तस्दीक करती है कि यहां भाजपा व दूसरी पार्टियों के बीच ठीक-ठाक फासला है। यहां के मतदाता भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित हैं। इसीलिए नजर इस बात पर होगी कि गुजरात चुनावों में दूसरे और तीसरे पायदान पर कौन सी पार्टी कब्जा करती है? हां, स्थानीय निकाय के चुनावों में, खासकर सूरत के इलाकों में आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जिससे उसे नई ऊर्जा मिली है, मगर यह जोश जीत में कितना बदल पाएगा, यह अभी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता।
जाहिर है, कांग्रेस के लिए यहां दोतरफा जंग है। एक तरफ उसे भाजपा से लड़ना है, तो दूसरी तरफ, आप से मिल रही चुनौतियों से पार पाना होगा। बावजूद इसके उसकी चाल सुस्त दिखती है। भाजपा और आप जहां पुरजोर तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं, अमित शाह व अरविंद केजरीवाल जैसे नेता लगातार सक्रिय हैं, वहीं मतदाता कांग्रेस के पास ढंग का नेतृत्व न होने की बात कह रहे हैं। किसी दौर में बेशक कांग्रेस यहां मजबूत दल हुआ करती थी, लेकिन अब वह काफी कमजोर लग रही है। वह घर-घर जाकर अभियान चलाने का दावा जरूर कर रही है, लेकिन इसका असर शायद ही दिख रहा है। उसकी मुश्किल यह भी है कि आप जितना ऊपर उठेगी, कांग्रेस उतना नीचे की तरफ जाएगी। दिल्ली और पंजाब में आप ने कांग्रेस का आधार अपनी ओर खिसकाकर ही सरकार बनाई है, और गुजरात भी इसका अपवाद नहीं दिख रहा। यहां इस त्रिकोणीय संघर्ष के कारण भी भाजपा खुद को मजबूत मान रही है।

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