शिकंजे की सियासत 

अभी कई राज्यों की राजनीति करवट ले रही है, लेकिन लोगों की नजर महाराष्ट्र पर सबसे अधिक है। यहां की राजनीति में उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही, जो पिछले दिनों तब शुरू हुई थी, जब शिव सेना दो हिस्सों में बंट गई थी। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों गुटों में खुद को असली शिव सेना बताने की होड़ है।

इसके लिए वे कभी चुनाव आयोग के पास जाते हैं, कभी अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, तो कभी शक्ति प्रदर्शन का सहारा लेते हैं। दशहरा के दिन दोनों गुटों की अलग-अलग जनसभा शक्ति प्रदर्शन की एक और कवायद थी।


यह सच है कि कौन शिव सेना असली है और कौन टूटा हुआ धड़ा, इसका फैसला जनता के बीच किए गए शक्ति प्रदर्शन से नहीं होगा। यह निर्णय तो नियमों अथवा कानूनी तौर-तरीकों से होगा। अदालत या चुनाव आयोग इस बाबत फैसला करेगा। मगर शक्ति प्रदर्शन से शिव सेना के ये दोनों गुट अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहते हैं।

बगावत के बाद शिंदे खेमे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद हासिल किया। लिहाजा, वह इसे आसानी से नहीं गंवाना चाहते। जबकि, उद्धव ठाकरे अपने परिवार द्वारा स्थापित पार्टी को आसानी से छोड़ने को तैयार नहीं हैं। जहां शिंदे खेमे के पास सरकार में बने रहने और खुद को असली शिव सेना की मान्यता दिलाने की चुनौतियां हैं, वहीं उद्धव ठाकरे के पास पार्टी को बचाने की बड़ी जिम्मेदारी है। 

टूट के समय कई विधायक बेशक शिंदे खेमे में चले गए और उन्होंने सरकार भी बना ली, परंतु संगठन का बड़ा हिस्सा आज भी उद्धव ठाकरे के साथ खड़ा दिखाई देता है। कम से कम जनसभा में उमड़ी भीड़ और पार्टी कार्यकताओं का उत्साह देखकर फिलहाल यही प्रतीत होता है। आखिर अपने गुट को असली शिव सेना साबित करना महाराष्ट्र की राजनीति में क्यों जरूरी है और इसका राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर होगा?


दरअसल, लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र (48 निर्वाचन क्षेत्र) में ही हैं। यह भले कहा जाता रहा हो कि अगर किसी पार्टी को केंद्र की सत्ता चाहिए, तो उसको उत्तर प्रदेश में जीतना होगा, लेकिन संख्या बल के नजरिये से महाराष्ट्र का महत्व भी कुछ कम नहीं है। कुछ पिछली केंद्र सरकारों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाराष्ट्र राष्ट्रीय राजनीति में क्यों महत्व रखता है?


साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में, जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार बनी थी, तब यहां की कमोबेश आधी सीटें संप्रग के खाते में गई थीं। ठीक इसी तरह, साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने यहां की क्रमश: 42 व 41 सीटों पर कब्जा किया, और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में राजग सरकार बनी। जाहिर है, राष्ट्रीय राजनीति में, खासकर 2024 में जिस पार्टी को सरकार बनाने की दावेदारी करनी है, उसके लिए महाराष्ट्र में अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है। 

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