भागवत-इलियासी भेंट 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत मस्जिद में? आप चाहें तो चौंक सकते हैं, पर भागवत गए गुरुवार को अपने तीन वरिष्ठ सहयोगियों के साथ नई दिल्ली में कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित अखिल भारतीय इमाम परिषद के अध्यक्ष डॉक्टर उमेर अहमद इलियासी से मिलने पहुंचे और लगभग एक घंटा बंद कमरे में गुफ्तगू करते रहे। गदगद इलियासी ने मुलाकात के दौरान उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्रऋषि’ करार दे दिया। संघ प्रमुख ने उन्हें विनम्रतापूर्वक टोका भी, पर बाद में उन्होंने एक समाचार एजेंसी को दी गई ‘बाइट’ में इसे दोहराने में संकोच नहीं किया। संघ प्रमुख कुछ देर बाद एक मदरसे में भी पहुंचे, जहां बच्चों ने उनका खैरमकदम वंदे मातरम और भारतमाता की जय के नारों के साथ  किया। बताने की जरूरत नहीं, मुस्लिमों का एक तबका वंदे मातरम का विरोध करता आया है, पर यह अनायास नहीं हुआ। इससे पहले भागवत सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह, पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग, पूर्व सांसद-पत्रकार शाहिद सिद्दीकी और दानवीर सईद शेरवानी से मिल चुके हैं। ये वे हस्तियां हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान किया है। मौजूदा हालात में इस मुलाकात को महत्वपूर्ण मानने में संकोच नहीं करना चाहिए। पिछले तीन दशकों में यह पहला मौका है, जब भारत में बेमतलब के विवाद सुर्खियां बन जाते हैं। हालात कुछ इस कदर बिगड़ रहे हैं कि पिछले महीने आर्थिक रूप से तरक्कीयाफ्ता देशों की सूची में भारत के पांचवें पायदान पर पहुंचने की खबर तक जश्नविहीन रह गई। उन दिनों चर्चा में क्या था? कर्नाटक की स्कूली बच्चियां हिजाब पहन सकती हैं या नहीं! 
एक तरक्कीपसंद मुल्क से कट्टरता की ओर बढे़ ईरान में जहां महिलाएं सरेआम हिजाब उतारकर अपने बाल कतर रही हैं, वहां भारत जैसे खुले लोकतंत्र में इस तरह के गैर-जरूरी विषय विमर्श का हिस्सा क्यों बन रहे हैं? ईरान में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब नाराज लोगों ने इस्लामी राष्ट्र के संस्थापक अयातुल्लाह खोमैनी के  बोर्ड धूल-धूसरित करने की हिमाकत की है। वहां के लोग महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत से गम और गुस्से में हैं। वहां भड़क उठे प्रतिरोध को दबाने के लिए पुलिस तरह-तरह के जुल्म ढा रही है। अब तक वहां 35 से अधिक लोग मर चुके हैं। लोगों को सलाखों के पीछे ठूंसा जा रहा है। धरने, प्रदर्शनों पर लाठीचार्ज हो रहे हैं, आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं, पर आग रुकने की जगह भड़कती जा रही है। पुलिस हिंसा में एक और महिला जान गंवा चुकी है, लेकिन वहां की औरतों का जज्बा कम नहीं हुआ है।
तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में भी महिलाओं की बगावत जारी है। वे आवाज बुलंद कर रही हैं कि हमें जबरन थोपा गया ‘परदा’ मंजूर नहीं। वे पहले की तरह अपने काम पर लौटना चाहती हैं और सामाजिक हिस्सेदारी का दायित्व निभाना चाहती हैं। ऐसा न हो, इसीलिए कट्टरपंथियों का आका समझे जाने वाले सऊदी अरब तक ने आधी आबादी पर थोपी गई पाबंदियां कम की हैं। ऐसे में, हिन्दुस्तान के अंदर घटने वाली घटनाएं चौंकाती हैं। वे कौन लोग हैं, जो इस्लामी दुनिया में पनपते विरोध के बावजूद कर्नाटक की कन्याओं को हिजाब पहनाना चाहते हैं? 

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