गुणवत्ता युक्त हरा चारा पशु स्वास्थ एवं दुग्ध उत्पादन हेतु अति महत्वपूर्णः प्रोण्जीएस पंवार
बांदा। भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के तत्वाधान में शस्य विज्ञान विभाग द्वारा 09 सितम्बर 2022 को खरीफ चारा दिवस का आयोजन बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा0 जी0एस0 पंवार ने की।
इस अवसर पर शोध निदेशालय के निदेशक डा0 ए0सी0 मिश्राए निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्रए डा0 एस0के0 सिंहए अधिष्ठाता स्नातकोत्तरए डा0 मुकुल कुमारए सह अधिष्ठाता सामुदायिक महाविद्यालयए डा0 वन्दना कुमारी व अन्य संकाय सदस्यों ने भी प्रतिभाग किया।
स्वागत अभिभाषण में शस्य विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा0 नरेन्द्र सिंह ने बांदा जिले के विभिन्न ग्रामो से आये हुए लगभग 100 किसानों व छात्रो को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम की उद्देश्य तथा चारा फसलों के महत्व के बारे में बताया।
कार्यक्रम में डा0 जी0एस0 पंवार ने बहुवर्षीय चारों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस प्रकार के चारे एक बार रोपाई के उपरान्त वर्षाे तक हरा चारा उपलब्ध कराते हैं। डा0 पंवार ने बताया कि भारतवर्ष में पशुपालनए कृषि उत्पादन के साथ.साथ ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय रहा है।
पशु स्वास्थ्य सदैव से ही किसानों के लिए एक चुनौती का विषय रहा है। गुणवत्ता युक्त हरा चारा पशु स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि करता है।
खरीफ चारा दिवस वर्ष 2022 से पहली बार पूरे भारतवर्ष में मनाया जा रहा है। भारत सरकार की पहल पर चारा फसलों एवं उपयोगिता पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत चारा फसलों की जागरूकता का यह कार्यक्रम अब प्रत्येक वर्ष 09 सितम्बर को मनाया जायेगा। यह जानकारी परियोजना अन्वेशक डा0 अरूण कुमार ने कार्यक्रम संचालन के दौरान दी।
डा0 मुकुल कुमार ने चारों के पोषण महत्व को रेखांकित किया। निदेशकए बीज एवं प्रक्षेत्र डा0 एस0के0 सिंह ने चारा फसलो के बीज उत्पादन पर प्रकाश डाला। हरे चारे के व्यवसायिक उत्पादन से किसान भारी मात्रा में आर्थिक लाभ कमा सकते हैं। डा0 वन्दना कुमारी ने कृषि उत्पादन में महिलाओं की भागेदारी को रेखांकित किया।
किसानों को सम्बोधित करते हुए निदेशक शोध डा0 ए0सी0 मिश्रा ने बताया कि विश्वविद्यालय चारा फसलों से सम्बंधित शोध को बढ़ावा दे रहा है। ताकि आस.पास के किसानों की पशु सम्बंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। अन्ना प्रथा जोकि बुन्देलखण्ड की एक ज्वलन्त समस्या है। उसको भी दूर करने में चारा फसलों का फसल प्रणाली में समायोजन लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
एक दिवसीय खरीफ चारा कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय में संचालित चारा फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के अन्तर्गत परियोजना अन्वेशक डा0 अरूण कुमार के द्वारा किया गया। डा0 कुमार ने बताकि चारा फसलों से सम्बंधित अनुसंधान पर कई परीक्षण विश्वविद्यालय परिसर की अनुसंधान इकाई में चल रहे हैंए जिनसे आने वाले समय में किसानों को हरे चारे से सम्बंधित तकनीकी ज्ञान व बीज इत्यादि उपलब्ध कराया जायेगा।
कार्यक्रम में पशु स्वास्थ्य से सम्बंधित तकनीकी जानकारी देते हुए डा0 मयंक दुबे ने बताया कि अच्छे स्वास्थ्य एवं दूध उत्पादन के लिए हरा चारा वरदान है। हरे चारे से कटाई उपरान्त हे व साइलेज तैयार किया जा सकता है। जिससे हरे चारे की अनुउपलब्धता के समय में पशुओं को खिलाया जा सकता है। धन्यवाद ज्ञापन डा0 अमित कुमार सिंह ने किया।