संतुलन साध चलते स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के इस बयान से विवाद खड़ा हो गया है कि ‘एक भाषा, एक धर्म और एक संस्कृति को थोपने की कोशिश करने वाले लोग देश के दुश्मन हैं और ऐसी बुरी ताकतों के लिए अपने देश में कोई जगह नहीं है।
’ यह बयान उन्होंने शनिवार को दिया था। हालांकि, इसमें उन्होंने किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लिया, लेकिन यह साफ था कि वह भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर हमला कर रहे थे।
मुख्यमंत्री आखिर ऐसा क्यों कह रहे हैं, जबकि इस बयान से एक दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करते हुए उन्होंने अपनी ऐसी किसी भावना का इजहार नहीं किया?
अलबत्ता, तब वह कहीं अधिक मित्रवत व्यवहार करते दिखे थे। उन्होंने न सिर्फ प्रधानमंत्री की खुद अगवानी की थी, बल्कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के विपरीत सभी प्रोटोकॉल का पालन भी किया था।
प्रधानमंत्री मोदी 44वें शतरंज ओलंपियाड का उद्घाटन करने के लिए चेन्नई आए थे, और उन्होंने भी स्टालिन के साथ समान मित्रता दिखाई था।
उन्होंने यह भी कहा था कि इतने कम समय में मामल्लापुरम में ओलंपियाड आयोजित करने के वास्ते अच्छी व्यवस्था करने में राज्य की सरकार कामयाब रही। उन्होंने तमिल संस्कृति की भी खुलकर तारीफ की थी, जिसके साथ शतरंज काफी करीब से जुड़ा है।
उन्होंने खासतौर पर इसका उल्लेख किया था कि राज्य में इस खेल की वाकई पूजा की जाती है और यहां इस खेल से जुड़ा एक मंदिर भी है। वास्तव में, तिरुवरूर जिले के तिरुपूवनूर गांव में चतुरंग वल्लभनाथर का एक मंदिर है, जहां शतरंज के देवता और उनकी पत्नी राजराजेश्वरी स्थापित हैं।
किंवदंती है कि भगवान शिव तपस्वी के वेश में आए थे और ‘सतुरंगम’ (शतरंज के लिए तमिल में कहा जाने वाला शब्द) जीतने के बाद राजराजेश्वरी से शादी की थी, जो भगवान पार्वती का अवतार हैं।
दिलचस्प यह कि कई विदेशी मेहमानों, यहां तक कि कई शतरंज खिलाड़ियों ने भी प्रतियोगिता में उतरने से पहले इस मंदिर में प्रार्थना की।
स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में कोई विवादास्पद बयान नहीं दिया। उनकी आपसी गर्मजोशी से तो लोगों में यह बतकही भी शुरू हो गई कि क्या स्टालिन केंद्र के साथ नजदीकी बढ़ाने की बुनियाद तैयार कर रहे हैं?
ऐसा इसलिए, क्योंकि भाजपा राज्य में अपना आधार मजबूत करना चाहती है और उनकी वर्तमान सहयोगी अन्नाद्रमुक उसकी मदद करने की स्थिति में फिलहाल नहीं दिख रही है।
दिलचस्प है कि स्टालिन ने सिर्फ भाषा नीति पर केंद्र को नहीं घेरा। उन्होंने यह भी कहा कि वह विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करके और पत्रकारों को गिरफ्तार करके ‘निरंकुश’ व्यवहार का प्रदर्शन कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह देश के स्वतंत्रता सेनानियों को ‘धोखा’ देने जैसा है।
उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन की भी तारीफ की और कहा कि तमिलनाडु में द्रमुक व माकपा के बीच गठजोड़ वैचारिक आधार पर बना है, न कि महज चुनावी जीत के लिए।
आखिर स्टालिन ने इतना कड़ा रुख क्यों अपनाया? इसके कई कारण दिखते हैं। सबसे पहली वजह तो यही जान पड़ती है कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों के विपरीत वह केंद्र की राजनीति में जाने को इच्छुक नहीं हैं।
इसके बजाय वह खुद को राज्य तक सीमित रखना चाहते हैं और केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध के हिमायती हैं, ताकि राज्य के विकास में सुधार की जब कभी दरकार हो, वह उसकी मदद ले सकें।