लापरवाही की हद : निकम्मेपन से सूखे लाखों के कीमती पौधे…
बांदा। हाय राम पौध रोपण के मामले में अधिकारियो का चुल्लू भर पानी में डूब मरने जैसी नौबत है, पर निकम्मापन की हद यह है की एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है तो एक बड़े महाशय जांच कराने का तोता राग अलाप रहें हैं।
दरअसल बुंदेलखंड को हराभरा बनाने के लिए योगी सरकार की भी तमाम कोशिशों को अफसर ठेंगा दिखा रहे हैं। एक छोटा उदाहरण ही व्यवस्था समझने के लिये काफी है।
उसी का उल्लेख यह है की कृषि विभाग द्वारा नूप योजना के तहत मंगाए गए लाखों रुपये के पौधे मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में कूड़े की तरह पड़े-पड़े सूख गए।
इनमें अधिकांश नीम, महुआ, आम, आंवला आदि के पौधे थे। यह पौधे भूमि संरक्षण विभाग की परियोजनाओं में लगने थे। पौधों की कीमत लगभग चार लाख रुपये से ज्यादा बताई गई है।
इस बाबत कृषि विभाग और भूमि संरक्षण विभाग अलग-अलग दलीलें दे रहा है। संयुक्त उप कृषि निदेशक ने जांच की बात कही है।
कृषि विभाग ने पिछले सप्ताह भूमि संरक्षण विभाग की परियोजनाओं में पौधरोपण के लिए नूप योजना के तहत करीब चार लाख 64 हजार रुपये से 16 हजार पौधे एक प्राइवेट कंपनी के माध्यम से आजमगढ़ से मंगाए गए थे।
इनमें नीम, महुआ, आम, आंवला आदि के पौधे ज्यादा थे, लेकिन यह पौधे मिट्टी परीक्षण विभाग की प्रयोगशाला में कूड़े के ढेर की तरह रख दिए गए।
देखरेख नहीं की गई। इस लापरवाही ने पौधों को सुखा दिया। नतीजे में अब पौधों के अवशेष के रूप में सूखी टहनियां और मिट्टी के धेले मात्र बचे हैं।
खास बात यह है कि प्रयोगशाला के ठीक बगल से संयुक्त उप कृषि निदेशक कार्यालय है। भूमि संरक्षण विभाग ने कागजों पर सभी पौधे परियोजनाओं में रोपित करा दिए।
इस संबंध में उप निदेशक (कृषि) विजय कुमार का कहना है कि पौधे भूमि संरक्षण विभाग को रोपण के लिए दिए गए थे।
उन्होंने इन पौधों का क्या किया, उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। दूसरी तरफ भूमि संरक्षण अधिकारी सौरभ यादव का कहना है कि कृषि विभाग से प्राप्त पौधे किसानों को लगाने को दे दिए गए।
प्रयोगशाला में पौधे कैसे सूखे, इस पर दोनों अधिकारी चुप्पी साध गए। संयुक्त उप कृषि निदेशक उमेश कटियार का कहना है कि मामले की जांच कराई जाएगी। यदि पौधों का रोपण नहीं हुआ है तो दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।