आतंक का समाधान 

जम्मू-कश्मीर में जब लोग नए उत्साह से स्वतंत्रता दिवस मनाने में लगे हैं, तब आतंकवादियों की निर्ममता अक्षम्य है। बांदीपुरा में आतंकियों ने बिहार के एक प्रवासी मजदूर की गोली मारकर हत्या कर दी। कायरों ने आधी रात को हमला किया और मधेपुरा निवासी युवा मोहम्मद अमरेज की हत्या कर दी। एक गरीब मजदूर की हत्या कराने वाला यह कौन सा मजहब है?

बिहार से रोजी-रोटी कमाने गए इस मजदूर के भाई के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह भाई के शव को अपने गृहनगर ले जाए। यह बार-बार कहा जाता है कि हिंसक तत्व गरीबों को निशाना इसलिए बनाते हैं, क्योंकि इससे बाकी प्रवासियों में दहशत फैलती है।

देश में किसी को भी किसी राज्य में रहने और रोजी-रोटी कमाने का हक है, पर कश्मीर में बचे हुए आतंकी नहीं चाहते कि बाहर से लोग कश्मीर में आएं। ऐसे आतंकियों के सफाए के अलावा और क्या रास्ता है? घाटी में नई परिस्थितियों में बाहर से लोगों का आना बढ़ेगा, आर्थिक सक्रियता बढ़ेगी, श्रम बल बढे़गा, इसे अब रोकना मुश्किल है। 

अत: सरकार की जिम्मेदारी लगातार बनी हुई है। वहां बहुत हद तक हिंसा में कमी आई है, लेकिन इधर जो हमले हुए हैं, उनका मकसद 15 अगस्त के माहौल को खराब करना है। कश्मीर में जिस तरह से विभिन्न स्कूलों और संस्थाओं से अमृत महोत्सव के आयोजन की खबरें आ रही हैं, उससे आतंकी बौखला गए हैं।

उनकी ताजा कायरता का हिसाब जरूर होना चाहिए। गौर करने की बात है कि फरवरी 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में सेना के शिविर पर बुधवार को पहला फिदायीन हमला भी हुआ है। ऐसे हमलों को रोकने के लिए सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

केवल पाकिस्तान के आंशिक बहिष्कार से काम नहीं चलने वाला, जिस तरह से चीन आतंकियों को बचाकर उनका दुस्साहस बढ़ा रहा है, उस पर भी सरकार का ध्यान जाना चाहिए। ताजा मामले में चीन ने गुरुवार को जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकी रऊफ असगर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में आने से बचा लिया।

कागज पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले देश किस तरह से सभ्यता या मानवीयता की धज्जियां उड़ा रहे हैं, कितनी बेशर्मी से आतंकवाद का बचाव कर रहे हैं? चीन तो लगातार ही ऐसा कर रहा है? क्या वह यह नहीं सोच रहा कि भारत पर क्या असर पड़ेगा?

भारत सरकार और विदेश मंत्रालय को इस मामले में समाधान पर मंथन करना चाहिए। तकनीकी आधार पर अगर दुनिया के कथित जिम्मेदार देश अब भी आतंकियों को बचाएंगे, तो दुनिया का क्या होगा? यह सवाल चीन से दोटूक पूछना चाहिए।

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