महंगाई और न बढ़ा दे जीएसटी

पैकेट बंद आटा, चावल, दही, लस्सी जैसे खाद्य पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद इन तमाम उत्पादों के दाम बढ़ गए हैं।

अभी तक हम महंगाई को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक के पैमाने पर नापते रहे हैं, मगर अब लगता है कि इसमें जीएसटी का तीसरा मापक भी जोड़ देना चाहिए और यह पता करना चाहिए कि जीएसटी से कितनी महंगाई बढ़ी है?

इससे यह धारणा भी टूटेगी कि महंगाई बढ़ने की बड़ी वजह किसान हैं, क्योंकि सरकार की तरफ से कथित तौर पर उन्हें कई तरह के समर्थन दिए जाते हैं।

चूंकि अब जीएसटी के दायरे में गेहूं, धान, राई, बार्ली, ओट्स ही नहीं, बल्कि लस्सी, दही, छाछ, पनीर जैसे तमाम उत्पाद आ गए हैं, इसलिए उपभोक्ताओं को यह जानने का हक होना ही चाहिए कि इस टैक्स व्यवस्था ने उनके घर का बजट कितना बिगाड़ा है?


असल में, जीएसटी किसानों के लिए भी परेशानी का कारण है। इससे उनके कृषि उपकरण तो महंगे हो ही गए हैं, उनकी लागत बढ़ गई है। विशेषकर हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन करने वाले किसान तो इसलिए आंदोलित हैं, क्योंकि फलों के डिब्बे पर भी जीएसटी लग गया है।

जाहिर है, दुग्ध उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद डेयरी उद्योग पर भी तमाम तरह के संकट आएंगे। मगर विडंबना है कि इस मूल्य-वृद्धि से किसानों को कोई लाभ नहीं होने वाला।

 देश में जब जीएसटी की शुरुआत हुई थी, तब राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) की एक रिपोर्ट के हवाले से दावा किया गया था कि इससे सभी सेक्टर को फायदा होगा।

मगर उस वक्त भी मैंने यह अंदेशा जताया था कि सारी मलाई उद्योग जगत चट कर जाएगा, और उपभोक्ताओं के हिस्से कुछ नहीं आएगा। आज हम साफ-साफ देख रहे हैंकि जीएसटी का फायदा मूलत: उद्योग जगत को ही मिला।

एक्साइज ड्यूटी, वैट, लग्जरी टैक्स, सेल टैक्स जैसे तमाम कर या तो खत्म कर दिए गए या जीएसटी में शामिल कर दिए गए। इससे कारोबारी घराने फायदे में रहे, पर तमाम करों का बोझ उपभोक्ताओं के कंधे पर आ गया।


जीएसटी के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि यह देश के 160 देशों में लागू है, लेकिन सच यह भी है कि इससे ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ जैसी अर्थव्यवस्थाएं संकट में हैं और ऑस्टे्रलिया, कनाडा जैसे तमाम देशों में महंगाई बढ़ी है।

दावा किया जाता है कि जीएसटी से महंगाई कुछ समय तो बढ़ती है, पर दीर्घावधि में इसका फायदा होता है। मगर यह भी सिर्फ शब्दों की बाजीगरी है, क्योंकि आज अगर जीएसटी के कारण महंगाई में तेज उछाल आती है, तो आने वाले दिनों में इसमें स्थिरता ही आएगी, जिसकी वजह से महंगाई का आधार बढ़ जाएगा।

जाहिर है, उपभोक्ताओं को जीएसटी से राहत मिलने के शब्द बस आश्वासन हैं, इनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं। जीएसटी में हुए नए बदलाव के बाद अब देश का हर नागरिक किसी न किसी रूप में टैक्स चुकाने को मजबूर है।

पहले कहा जाता था कि वेतनभोगी तबका ही कर देता है, जिससे देश चलता है, मगर आज स्थिति यह है कि कोई मजदूर यदि एक जोड़ी चप्पल भी खरीदता है, तो उसे पांच फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता है। इसका अर्थ है कि टैक्स की नई व्यवस्था ने सभी के लिए कर चुकाना अनिवार्य बना दिया है।


इसके समर्थक यह भी कहते हैं कि इससे किसानों को फायदा होगा। यह बात भी सही नहीं है, क्योंकि एक उद्योगपति जब टैक्स चुकाता है, तो कहीं न कहीं उसकी ‘रिकवरी’ कर लेता है, किसानों को यह सुविधा हासिल नहीं होती।

कृषि उपकरण से उनकी फसल-लागत जरूर बढ़ गई है, पर उनके पास ऐसा कोई माध्यम नहीं कि वे इस लागत की भरपाई कर सकें।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker