मजबूर जॉनसन

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हालात के सामने आखिर घुटने टेक दिए। उन्होंने कहा, ‘कंजर्वेटिव पार्टी की यह स्पष्ट राय है कि पार्टी का एक नया नेता होना चाहिए और इसलिए एक नया प्रधानमंत्री भी।’

जॉनसन की विदाई के समय हम यह सहज याद कर सकते हैं कि कैसे कांड-दर-कांड का सिलसिला चला और जॉनसन ने 2019 के चुनावों में जो राजनीतिक पूंजी अर्जित की थी, वह धीरे-धीरे गायब होती गई। उन्हें जो व्यापक जनादेश मिला था, उसका फायदा वह नहीं उठा पाए, क्योंकि जो अनुशासन उनके प्रशासन में होना चाहिए था, वह कमोबेश नदारद रहा।

जिस तेजतर्रार तेवर के साथ जॉनसन ने ब्रेग्जिट अभियान को अपने हाथों में लिया था और उसके बाद 2019 के आम चुनाव में जीत हासिल की थी, उस तेवर को वह बरकरार नहीं रख पाए।

इसी वजह से विगत कुछ महीनों से उनकी कंजर्वेटिव पार्टी को लगातार झटके लगते आ रहे थे और नौबत यहां तक आ गई कि अनेक मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया।  जॉनसन के खिलाफ शिकायतों की लंबी सूची है।

जब कोरोना की लहर चल रही थी, देश में लॉकडाउन लगा था, तब प्रधानमंत्री के आवास 10 डाउनिंग स्ट्रीट में पार्टी या उत्सव का आयोजन हो रहा था। इसे पार्टीगेट स्कैंडल नाम दिया गया। आरोप लगा, तो शुरू में जॉनसन ने पार्टी के आयोजन से ही इनकार कर दिया, लेकिन बाद में उन्होंने गलती मान ली और जुर्माना भी चुकाया।

डिप्टी चीफ ह्वीप पद पर क्रिस पिंचर की नियुक्ति को लेकर भी विवाद हुआ। जॉनसन जानते थे कि पिंचर पर यौनाचार संबंधी आरोप हैं, फिर भी उन्हें नियुक्त किया। आरोप लगने के तुरंत बाद उन्होंने सच नहीं स्वीकारा, पर बाद में कागजों से पता चल गया कि पिंचर के बारे में प्रधानमंत्री को पूरी सूचना थी, प्रधानमंत्री को फिर गलती माननी पड़ी।

  खैर, मई में जब उपचुनाव हुए, तो जॉनसन की कंजर्वेटिव पार्टी अपनी पारंपरिक सीटों पर भी हार गई। तब से जॉनसन के खिलाफ अभियान में तेजी आई, कंजर्वेटिव पार्टी के नेता सोचने लगे कि जॉनसन के रहते पार्टी चुनाव नहीं जीत पाएगी। वैसे भी अभी ब्रिटेन में आर्थिक स्थिति खराब चल रही है।

यह धारणा भी है कि जॉनसन के नेतृत्व में जो ब्रेग्जिट हुआ, उसकी वजह से पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह धारणा भी मजबूत हुई कि ब्रिटेन को कुशल नेतृत्व की जरूरत है, जो प्रधानमंत्री नहीं दे पा रहे हैं।


 ताजा जनमत सर्वेक्षण यदि आप देखें, तो सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव के मुकाबले लेबर पार्टी अभी अच्छा प्रदर्शन कर रही है। जिस लेबर पार्टी की जीतने की संभावना नहीं थी, आज ऐसा लग रहा है कि अगर चुनाव हों, तो वह जीत जाएगी। अत: कंजर्वेटिव चिंतित हो गए हैं।

उनकी तमाम चिंताओं को अगर जोडें़, तो जॉनसन की ईमानदारी पर बात आ जाती है। क्या उन पर विश्वास किया जा सकता है? क्या वह इतने सक्षम नहीं हैं कि सही ढंग से प्रशासन संभाल सकें और मुश्किल समय में देश का नेतृत्व कर सकें? ब्रिटेन की जनता क्या किसी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा कर सकती है, जो बार-बार झूठ बोलते पाया जा रहा है?

बोरिस जॉनसन ने एक के बाद एक ऐसे अनेक फैसले लिए हैं, जिनसे ऐसा लगता है कि उनकी या तो कुशल प्रशासन में रुचि नहीं है या फिर वह इतने अनुशासित नहीं हैं कि ब्रिटेन का नेतृत्व कर सकें। 


जब पिंचर वाला मामला गरमाया, तब जॉनसन की पार्टी पर जो पकड़ थी, वह 24 घंटे में ही खत्म हो गई। वह मजबूर हो गए हैं। कल तक वह कह रहे थे कि मेरे इस्तीफा देने का कोई सवाल नहीं उठता। लोगों ने साल 2019 में मुझे भारी जनादेश दिया है, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि उनके पास जनादेश भी नहीं है, कंजर्वेटिव पार्टी का समर्थन भी नहीं है। उनके करीबी भी बोलने लगे थे कि उन्हें सत्ता छोड़ देनी चाहिए। 


अब ब्रिटेन की राजनीति में बड़ा बदलाव आने की संभावना है, इसमें लेबर पार्टी का जो उभार आ रहा है, हो सकता है कि उसके नेता चुनाव जीत जाएं। सत्ता स्थानांतरित होती दिख रही है। दो दशक से कंजर्वेटिव ने सत्ता पर कब्जा किया हुआ था, लेकिन अब सत्ता लेबर की ओर जाती दिख रही है।

कंजर्वेटिव के अंदर जो विभाजन हैं, वे बढ़ते नजर आ रहे हैं। जॉनसन अगले प्रधानमंत्री के चुने जाने तक प्रधानमंत्री रहना चाहते हैं, लेकिन सवाल है कि क्या उनकी पार्टी उन्हें यह मौका देगी? तय है, आने वाले दिनों में कंजर्वेटिव के बीच विवाद बढ़ेगा। 

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