आग न लगाएं
धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, ‘पॉवर टु पूअर’ देश की रीढ़ हैं, ‘बैक बोन’ हैं। राष्ट्रीय मोर्चा ने 1989 के अपने घोषणापत्र में भी यही कहा था।
उसके पहले जनता पार्टी में जब थे, तब उस समय भी हम लोगों ने मांग की थी कि 15 अगस्त, 1947 को आप एक रेखा खींचें, जिसके मुताबिक मंदिर, मस्जिद के जो विवाद हैं, उनको सदा के लिए खत्म किया जाना चाहिए। आज यह विधेयक लाने की आवश्यकता इसीलिए पड़ी कि इस देश में विभिन्न तरह के धर्म के लोग हैं।
हमारा देश एक फुलवारी की तरह है। इस फुलवारी में किसी एक फूल को ही खिलने का मौका नहीं मिलेगा। यहां सब तरह के फूलों को खिलने का अवसर दिया जाएगा। हर धर्म के लोग हैं, हर संप्रदाय के लोग हैं। इस देश में बाबर आया, तो कौन-सा हिंदू राज था? बाबर आया, तो इब्राहिम लोदी राज कर रहा था।
बाबर के पहले कौन लोग आए? उस समय कहां हिंदू-मुसलमान का झगड़ा चला था? धर्म में जो लोग विश्वास करते हैं, देवता व दानव का युद्ध हुआ था, समुद्र मंथन हुआ था। कौन थे देवता, कौन थे दानव? विष्णु और शंकर में क्या युद्ध हुआ था? यदि इतिहास में हम जाने का काम करेंगे, तो इस देश की एकता-अखंडता कभी सुरक्षित नहीं रह सकती।
इसलिए कहीं न कहीं इस अध्याय को बंद करना पड़ेगा। हमारे सामने अन्य समस्याएं हैं। भुखमरी की समस्या है, हमारे सामने बेरोजगारी की समस्या है, हमारे सामने शिक्षा की समस्या है, गांवों में पानी कैसे पहुंचाया जाए? यह देश इसी के लिए नहीं लड़ता रहेगा कि यहां मंदिर बनेगा या मस्जिद बनेगी? मंदिर को तोड़ो, मस्जिद को तोड़ो, यह नहीं चल सकता।
इसलिए कह रहा हूं कि मैं किसी धर्म के संबंध में भी नहीं कहना चाहता हूं। हमारे पास लोग आए थे, इसी राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के संबंध में और आपको मालूम है कि डॉक्टर आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर ने कहा कि वह मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं, वह बौद्ध स्थल है। अब हम वहां जाएंगे कि यह बौद्धस्थल है या किसी ने कहा कि फलां स्थल है।
मैंने अपने भाषण के दरम्यान किसी राजनीतिक पार्टी का नाम नहीं लिया है, किसी नेता का नाम नहीं लिया है और न नाम लेने का काम करूंगा। धर्म का मतलब होता है ज्योति देना, रोशनी देना। दीये से घर में रोशनी भी दे सकते हो और आग भी लगा सकते हो। आज हम रोशनी देने के बजाय आग लगाने का काम कर रहे हैं। हमको गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा।