रोड़ा न बनें नियम

जो लोग यह मानते हैं कि भारत का विकास आज से पहले ऐसे संभव नहीं था, वे अक्सर देश के विशाल नियामक और अनुपालन (नियम-पालन) तंत्र को लेकर निराश भी दिखते हैं। कभी-कभी वे नाराज और क्रोधित भी हो जाते हैं।

ऐसा इसलिए, क्योंकि यह व्यवस्था भारत के तेज विकास की कहानी में अड़चन और रुकावट पैदा करती है। माना यही जाता है कि कई बेईमानों, ठगों और प्रत्यक्ष धोखेबाजों केचलते खूब रुकावटेंपैदा होती हैंऔर हमारा विशाल तंत्र भारत में कारोबार को किसी दु:स्वप्न सरीखा बना देता है।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) द्वारा हाल ही में जारी की गई ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट में चौंकाने वाली 69,233 तरह की अद्वितीय मंजूरियां और औपचारिकताएं सूचीबद्ध की गई हैं।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट गौतम चिकरमने और अवंतिस रेगटेक के सह-संस्थापक व सीईओ ऋषि अग्रवाल द्वारा तैयार यह रिपोर्ट बताती है कि 26,134 मंजूरियों या औपचारिकताओं की पालना अगर न हो, तो बतौर दंड कारावास तक की सजा हो सकती है।

सबसे अधिक नियम-पालन पर जोर देने वाले राज्यों में से जिन पांच सूबों में सर्वाधिक कारावास संबंधी प्रावधान हैं, वे हैं- गुजरात (1,469), पंजाब (1,273), महाराष्ट्र (1,210), कर्नाटक (1,175) और तमिलनाडु(1,043)। मगर निराशाजनक है कि सख्त अनुपालन व्यवस्था के बावजूद, जिसमें तमाम नियम मौजूद हैं व कठोर धाराएं भी लगाई जाती हैं, लेकिन असली अपराधी कानून के लंबे हाथों से बार-बार बचते दिखाई पड़ते हैं।


भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के विकास की इन बाधाओं से पूरी तरह परिचित हैं। 21 अप्रैल को आयोजित 15वें सिविल सेवा दिवस के कार्यक्रम का इस्तेमाल उन्होंने न सिर्फ लोक प्रशासन में उत्कृष्ट काम करने वाले नौकरशाहों को पुरस्कृत करने के लिए किया, बल्कि यह संदेश भी घर-घर पहुंचा दिया कि हमारी नौकरशाही अपने जटिल प्रशासनिक व्यवस्था के कारण भारत के विकास में एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी द्वारा साल 2013 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नाम की घोषणा होने के बाद अपने शुरुआती अनुभवों को याद करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा, जब मेरी पार्टी ने पहली बार 2013 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मेरे नाम की घोषणा की थी, तब मुझे दिल्ली में कारोबारी समुदाय ने बुलाया था।

मैंने उनके बीच एक भाषण दिया। तब 2014 के आम चुनाव होने में चार से छह महीने की देरी थी। जब उन्होंने मुझसे पूछा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मैं क्या करूंगा, तब मैंने कहा, मैं हर दिन एक कानून खत्म करूंगा, कोई नया कानून मैं नहीं बनाऊंगा। यह सुनकर वे चौंक गए थे। और, अपने पहले पांच वर्षों में मैंने 1,500 कानून खत्म भी किए।


बिना किसी लाग-लपेट के प्रधानमंत्री ने कहा, यह आप जानते ही हैं कि इस तरह के सैकड़ों कानून अपने देश में रहे हैं, जिनको मैं भारत के नागरिकों के लिए बोझ समझता हूं। आप मुझे बताइए, आखिर हमें ऐसे कानूनों को क्यों ढोना चाहिए? आज भी मेरी यही राय है कि इस तरह के कई कानून, जो बेकाम हो चुके हैं, उनके खिलाफ हम कुछ पहल क्यों नहीं करते? उनको खत्म क्यों नहीं कर देते? देश को इस गैर-जरूरी जाल से बाहर निकालना ही होगा।


कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की मंच पर मौजूदगी के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नागरिकों से नियम-पालन की अंतहीन मांग करने वाली इस व्यवस्था पर बोलना जारी रखा। उन्होंने कहा, इसी तरह, हम नागरिकों से सभी प्रकार के नियम अनुपालन की मांग करते रहते हैं।

मैंने कैबिनेट सचिव से कहा कि जब तक हम बाकी दुनिया के लिए (अपने सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी आउटसोर्सिंग के माध्यम से) काम करने की कोशिश कर रहे हैं, आपको इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि देश इन नियमों के पालन से मुक्त होगा; नागरिकों को हमें आजाद करना ही चाहिए।

आजादी के इस 75वें वर्ष में आप नागरिकों को इस जाल में क्यों फंसा रहे हैं? और, एक कार्यालय में छह लोग काम करने बैठे होंगे, हर टेबल वाले को काम की पूरी जानकारी होगी, फिर भी वे अलग से पूछेंगे, टेबल की साइड से वे कुछ नहीं करेंगे।


यहां मैं फिर से ‘जेल्ड फॉर डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट पर लौटता हूं। इसकी सामग्री को पिछले सात वर्षों में टीम लीज और रेग टेक ने शिद्दत से जमा किया है। इसके मोनोग्राफ में श्रम, वित्त व कराधान, पर्यावरण, स्वास्थ्य व सचिव के कार्य को लेकर सुरक्षा, वाणिज्यिक, उद्योग-केंद्रित और सामान्य क्षेत्र जैसे सात व्यापक श्रेणियों में रिपोर्ट के नतीजे बांटे गए हैं।

नियामक न सिर्फ अतिरिक्त लाभ कमाने वाले, बल्कि गैर-लाभकारी संस्थानों की राह में भी बाधाएं उत्पन्न करता  है। यही वजह है कि भारत में न केवल कोई कारोबार करना या नया संस्थान शुरू करना कठिन है, बल्कि उसे बंद करना तो कहीं ज्यादा दुरूह काम हो जाता है।

जैसा कि टीम लीज के अध्यक्ष मनीष सभरवाल भी कहते हैं, भारत में नियोक्ता संबंधी अनुपालनों का अत्यधिक अपराधीकरण भ्रष्टाचार को जन्म देता है, औपचारिक रोजगार को कुंद करता है और न्याय में जहर घोलता है।


यह रिपोर्ट तमाम तरह की सिफारिशों से भरी हुई है, जिनमें व्यावसायिक नियमों और विनियमों को युक्तिसंगत बनाना, आपराधिक दंड को नियंत्रित करना और व्यापक नीतिगत सुधार शामिल हैं।

देश के अनुपालन तंत्र या आम लोगों को सेवा देने वाली व्यवस्थाओं के पुनर्गठन से न केवल भारत में सामान्य कारोबारी माहौल बेहतर बन सकेगा, बल्कि इससे विभिन्न तरीके से पैसे कमाने वाले, नवाचार में विश्वास रखने वाले, उद्यमी और बड़े-बड़े उद्योगपतियों की गरिमा भी सुरक्षित रहेगी।


सिविल सेवकों के लिए प्रधानमंत्री का यह आह्वान केंद्र सरकार के साथ-साथ, देश के विभिन्न राज्यों, उनके विभिन्न मंत्रालयों व विभागों और पूरे देश के लिए एक व्यापक सुधार प्रक्रिया को शुरू करने का बेहतर मौका दे रहा है। यह निश्चय ही भारत को समृद्धि और खुशहाली की नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।

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