हमारा मुल्क

पिछले दो साल सभी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहे हैं, पूरी दुनिया के लिए। महामारी की मार से अभी भी जूझती दुनिया जब साल 2022 में खड़ी है, तब नजारा हर तरफ अलग दिख रहा है।

एक तरफ अर्जेंटीना जैसे देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। वहां मुद्रास्फीति दर 50 फीसदी को पार कर चुकी है। अफ्रीका के कुछ देश भी इसी कतार में खड़े हैं। जबकि ऐसे देश भी हैं, जिन्होंने हालात को काफी हद तक संभाल लिया है। कुछ की अर्थव्यवस्था पुराने सदमों को पीछे छोड़ पटरी पर लौट आई है।

महामारी के बाद से किस देश में कैसी स्थितियां हैं, कुछ लोगों ने इसका वर्गीकरण भूगोल के हिसाब से भी करने की कोशिश की है। भूगोल के लिहाज से दुनिया की ऊंच-नीच तय करने के पैमाने अतीत में भी हमेशा ही खारिज हुए हैं, इस बार भी वे बेदम ही दिखते हैं। 


इसका सबसे अच्छा उदाहरण है भारतीय उपमहाद्वीप, यानी भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल आदि। ये सभी देश एक ही भूगोल का हिस्सा हैं और अगर पिछले सात-आठ दशक को छोड़ दें, तो ये मोटे तौर पर एक ही इतिहास से निकली सभ्यताएं हैं। बहुत से भेद गिनाए जा सकते हैं, लेकिन इनकी सांस्कृतिक अंतरधाराएं भी एक समान दिखती हैं।

लेकिन आज ये देश दो अलग तरह की कहानियां कहते दिख रहे हैं। एक तरफ श्रीलंका है, जहां मुद्रास्फीति महीना भर पहले ही 15 फीसदी पार कर गई थी। वहां बाजारों में या तो हर तरफ महंगाई है या जरूरी चीजों का अभाव। यह सब तब हो रहा है, जब पिछले दो साल में इस द्वीप के सबसे बड़े कारोबार पर्यटन पर ताले लगने के कारण बहुत से लोगों के पास कमाई का कोई जरिया ही नहीं बचा है।

भुखमरी के हालात हैं और सरकार कह रही है कि लोग अपना पेट काटकर हालात से निपटने में उसकी मदद करें। लेकिन लोग सड़कों पर उतर आए हैं। लगता है, वे कुछ और नहीं कर सके, तो सरकार को तो निपटा ही देंगे। 


पाकिस्तान में तो एक सरकार को निपटा ही दिया गया है। प्याज, टमाटर की महंगाई से शुरू हुए असंतोष ने इमरान खान सरकार की बलि ले ली है। सरकार के गिरने से समस्या का समाधान नहीं होगा, यह सभी जानते हैं। बढ़ती महंगाई के बीच लोगों का सुलगता असंतोष कौन सा गुल खिलाएगा, इसे लेकर पाकिस्तान के असली शासक यानी फौजी हुक्मरान भी परेशान हैं। इसी पाकिस्तान से आधी सदी पहले अलग हुए बांग्लादेश में भी हालात अच्छे नहीं हैं।

महामारी ने उसकी अर्थव्यवस्था को भी झझकोरा है, लेकिन इस बीच बांग्लादेश ने एक ऐसे उद्योग को विकसित किया है, जो उसे हालात को काबू करने का निरंतर आत्मविश्वास दे रहा है। दूसरी ओर,  पाकिस्तान और श्रीलंका के पास ऐसा कोई आत्मविश्वास नहीं है। 


महामारी का सबसे बड़ा झटका भारत को लगा था। लगना भी था, क्योंकि आंधियों में सबसे ज्यादा नुकसान उसी पेड़ को होता है, जिस पर सबसे ज्यादा फल हों। लेकिन जमीन उपजाऊ  हो, तो पेड़ को भरोसा रहता है कि अगली बहार फिर से उसकी होगी।

जो मुश्किलें आई थीं, भारत अभी भी उससे पूरी तरह नहीं उबर सका है, लेकिन दुनिया में यह कोई नहीं कह रहा कि भारत संकट में है। चाहें तो इसे भी उपलब्धि माना जा सकता है, लेकिन ऐसा न मानने में ही भलाई होगी।

पर सोचना होगा, ऐसा क्या है कि एक ही भूगोल और तकरीबन एक ही इतिहास में विकसित हुए चंद देशों में एक ही संकट से इतना बड़ा अंतर आ गया?


कारणों का पुलिंदा बहुत लंबा है, जिनकी शुरुआत तभी हो गई थी, जब ये देश आजाद होकर खुद-मुख्तार हुए थे। तब भारत ने जो रास्ता अपनाया और पाकिस्तान व श्रीलंका ने जो रास्ता अपनाया, वह अलग-अलग था।

भारत ने शुरू से ही अपने बीच एक ऐसी मुख्यधारा बनाने की कोशिश की, जो सबको एक साथ जोड़े, सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं, समुदायों और क्षेत्रों को। जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका में देश, संविधान और सत्ता ने खुद को मजहब और जातीयता विशेष से जोड़ दिया। वे ऐसे मुल्क बन गए, जो अपनी सारी ऊर्जा विभाजनकारी नफरत से ही हासिल करते रहे।

जबकि भारत अपने ऊर्जा स्रोत की तलाश में लगातार अपनी इमारत रचता रहा। इस बीच उसने समाजवाद और पूंजीवाद के ढेर सारे प्रयोग भी किए। 
आज से तीन दशक पहले शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के दौर में जब भारत बदलती दुनिया के बीच खुद को नए तरह से अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश कर रहा था, तब पाकिस्तान और श्रीलंका को इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस हो रही थी।

वे तब भी राजनीति और अर्थनीति के अपने पुराने मुहावरे पर ही कायम थे। हालांकि, बांग्लादेश ने जरूर इसे समझा और जल्द ही वह न सिर्फ अपने पांवों पर खड़ा हुआ, बल्कि इन दोनों देशों से आगे निकल गया। 


पाकिस्तान और श्रीलंका की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उन्हें अपने पांवों पर खड़े रहने की आदत कभी नहीं रही। जिन्हें अपने पैरों पर भरोसा होता है, वे किसी ठोकर के बाद लड़खड़ाएं भले ही, लेकिन फिर वे आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन जिन पैरों ने खुद अपनी ताकत से चलना सीखा ही न हो, ठोकरें उन्हें सीधे मुंह के बल ही गिराती हैं।

महामारी की ठोकर के बाद श्रीलंका को तो अहसास होने लगा है कि चीन की जिस आर्थिक मदद को उसने अपना संबल मान लिया था, वही अब उसकी दुर्गति का एक बड़ा कारण बन रही है। पाकिस्तान तो खैर अभी भी यह स्वीकार करने की हालत में नहीं है।
नि:संदेह इस भूगोल में भारत बेहतर स्थिति में है, लेकिन नक्शे पर हम थोड़ा जूम आउट करें, तो स्थिति ऐसी नहीं दिखती। एशिया के बहुत सारे देश हैं, जो इस समय भारत से ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। सच तो यह है कि हम जिस स्थिति में हैं, हमें पाकिस्तान और श्रीलंका से अपनी तुलना छोड़ देनी चाहिए।

दक्षिण कोरिया और चीन को अगर छोड़ भी दें, तो पिछले दो-तीन दशक में वियतनाम जिस तरह से आगे बढ़ा है, यह उस पर ध्यान केंद्रित करने का समय है। और हां, यह अपने बीच लगातार बढ़ रही उन नफरतों को खत्म करने का समय भी है, जो हमारा रास्ता बदल सकती हैं।

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